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Khari Khari, Drisht kavi, Dilip Chinchalkar and Bihar Elections. Posts from 12 to 24 Nov 2020

 "दो नई कविताएँ लिखी है - आप कहें तो सस्वर वाचन कर दूँ " - वही अपने लाइवा का फोन था

" अबै, तू टीवी देख बिहार के रिजल्ट देख, फालतू बात मत कर, नही तो अभी सुशील मोदी को छोड़ दूँगा तेरे पीछे, साला कभी तो कविता को बख़्श दें " - मैंने कहा
" जी, सुशील मोदी, तेजस्वी, नीतीश से लेकर सभी पर कविता लिखी है श्रृंगार से लेकर वीर रस में - बताईये आप किसकी सुनेंगे" - लाईवा का जवाब था
" तू सुधरेगा नही - तेरी तो, ठहर ........"
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श्रीराम चन्द्र कृपालु भजमन
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अरविंद केजरीवाल अक्षर धाम मन्दिर में 14 नवम्बर को पूजा करेंगे - बिल्कुल करना चाहिये , हर भारतीय को करना अनिवार्य होना चाहिये भले ही वो किसी भी जाति मज़हब का हो - क्योंकि दीवाली बड़ा त्योहार है और जोश होश का भी, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम प्रभु का 14 वर्ष के वनवास के बाद घर लौटने का यह त्योहार आशा जगाता है और उमंग भरता है
शायद अरविंद को यह ध्यान होगा ही कि कोई भी संविधानिक पद पंथ निरपेक्ष होता है - जब किसी राज्य का प्रधान ही हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई या सिख हो जाएगा तो वह अन्य लोगों को किस तरह से ट्रीट करेगा - दिक्कत यह है कि अरविंद जो तथाकथित कई तरह के काम , जिसमे सामाजिक विकास भी शामिल है, करके इस पद पर पहुँचे है उनकी इतनी छोटी समझ और बुद्धि होगी कि वे ना मात्र पूजा करेंगे, लाइव करेंगे पर आज से विज्ञापन भी करने पर उतर आये है
समाज के नागरिक होने के नाते पूजा करना, प्रदर्शन करना, लाइव करना या विज्ञापन करना कोई गुनाह नही , धर्म को मानने की सबको छूट हैं, परन्तु संविधान की शपथ लेकर इस तरह के स्टंट करके वे क्या हासिल करना चाहते है - यह सार्वजनिक प्रदर्शन कितना भौंडा विचार है इसकी कल्पना है किसी को, जबकि आज़ाद भारत गत 74 वर्षों से इसी सबसे जूझ रहा है और अभी अयोध्या में मन्दिर निर्माण की शुरुवात के बाद अब थोड़ी शान्ति है
क्या सुप्रीम कोर्ट या राष्ट्रपति स्वतः संज्ञान लेकर इस तरह के विज्ञापन पर रोक लगाएंगे कम से कम
सत्ता पाने और बनाये रखने के लिए एक आदमी कितना नीचे गिर सकता है यह अरविंद से सीखना चाहिये इसलिये बिहार के नतीजे चौकातें नही और इस देश के लोगों पर अब तरस भी नही आता - हम सब लोग तमाम दिक्कतों, अपमान, जलील होने के बाद, भुखमरी, पलायन , ना स्वास्थ्य , ना शिक्षा और घृणित जिंदगी के बावजूद भी इसी तरह के घटिया लोग ही नेतृत्व के रूप में डिज़र्व करते है, इसलिये मुझे अब ना इन दिखावटी गरीबों से सहानुभूति है और ना ही इनकी मदद करने का जज़्बा शेष है - अफसोस यह हो रहा कि कोरोना काल मे सबसे ज़्यादा मदद जिन पलायन कर रहे लोगों की, की थी - वे ही उस ग़रीबी भुखमरी को बनाये रखकर एन्जॉय करना चाहते है - इससे ज़्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है
इस तरह का उदाहरण प्रस्तुत करके वे बहुत ही गलत परम्परा स्थापित कर रहें है और यदि वे अमित शाह और योगी को पछाड़कर प्रधान मंत्री बनने का शार्ट कट खोज रहे हो तो फिर कुछ नही कहना है - इश्क, प्रेम और चुनाव जीतने के लिए सब जायज है
जय जय श्रीराम
दीवाली की अग्रिम शुभ कामनाएँ मित्रों
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बेबी को बेब पसंद है
अर्थात
अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता
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जो लोग लोकतांत्रिक तरीकों से हमारा विरोध नही कर पा रहें वे अफवाहें फैलाते है
लॉक डाउन में कृषि बिल से लेकर रेलवे बेचने तक के ढेरों काम करने वाला भारत देश दुनिया का पहला देश बना
- मोदी, कल विजयोत्सव में
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लोकतंत्र की बात तो आप करो ही मत - जस्टिस लोया हो या गोधरा कांड - खुलवा लो फिर से पर पहले सुप्रीम कोर्ट के जज बदलो, एक अर्नब के लिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या क्या कह दिया अपने ही हाई कोर्ट को या आपकी पार्टी और पितृ संगठन में कितना लोकतंत्र है जरा झांक लीजिये पहले
दूसरा, वही तो हम कह रहे है पूरे देश को बंधक बनाकर आपने सारा देश बेच दिया,मनमाने ढंग से बिल बनाकर पास करवा लिये, प्रश्नोत्तर काल ही बन्द कर दिया और गत आठ माह में देश बर्बाद कर दिया - स्वास्थ्यगत अव्यवस्थाओं ने ना मात्र निर्दोष नागरिकों की जान ली बल्कि व्यापक स्तर पर प्रशासन ने भ्रष्टाचार करके अरबों रुपयों का घालमेल किया, करोड़ो लोगों को आपके अदूरदर्शी निर्णयों से पैदल चलें और सड़कों पर मरें
सरकारों का प्रदर्शन बेहद निम्न स्तर का रहा इतना कि जीडीपी ऋणात्मक हो गई और आप शून्य पर लाने के लिए पसीना बहा रहें है - निकम्मे और अयोग्य मंत्रिमंडल के साथ, ट्रम्प के झूठ तो गिने जा सकने योग्य थे पर आपकी सरकार ने तो मानव सभ्यता में अब तक के रेकॉर्ड तोड़ दिए है
देश तालियों और लुभावने भाषणों से नही चलता और ना ही नीतीश जैसे कमज़ोर, योगी जैसे अयोग्य व्यक्ति या शिवराज जैसे तिकडमी या अरविंद जैसे षडयंत्रकारी को सहयोग देने से चलता है
पहले कार्यकाल में पाकिस्तान के नाम पर और अब डेढ़ साल से चीन के नाम पर उल्लू बनाया जा रहा है कितना मजेदार है कि बिहार चुनाव के परिणाम आते ही दोनों देशों के कमांडरों ने अपनी अपनी सेनाएं पीछे लेने का निर्णय लिया सरकार लोगों को बेवकूफ समझती है या खुद बेवकूफ है यह बात मेरी समझ से परे है पर दिक्कत इस देश के लोगों में भी हैं ना वे ताली बजाने में यकीन करते हैं वे भूल जाते हैं कि उनकी कितनी बेइज्जती हुई है - सड़कों पर मरे हैं या उनकी पत्नियों ने सड़कों पर प्रसव पीड़ा झेली है, जब लोग मूर्ख हो तो कुछ नहीं किया जा सकता - ताजा चुनाव इस बात का सबसे बड़ा सबूत है, जिस बिहार के तथाकथित बुद्धिजीवी देश भर में अपनी बुद्धि से ज्ञान के रायते बांटते थे वही बुद्धिजीवी बिहार में जाकर अपनी थोथी अकल का प्रदर्शन कर बैठे इन पर क्या भरोसा किया जाए इन्हें सिर्फ ताली बजाना ही आता है और यही हाल कमोबेश पूरे देश का है
देश लोगों से चलता है, जिस धन्यवाद बिहार के बहाने कल जो लच्छेदार भाषण दिया उसका लब्बो लुबाब आपकी निजी छबि बनाना था जो 6 माह में अब तक 7 बार मन की भड़ास सुनाने , थाली कटोरी बजाने से बर्बाद हो चुकी थी - प्रशासन पर दबाव बनाकर दस सीट ज्यादा लाकर सरकार बना लेना वो भी नीतीश जैसे अयोग्य आदमी के साथ कोई बड़ी बात नही - यह आपकी नही तंत्र की कमज़ोरी है और व्यवस्थागत दिक्कत, वरना तेजस्वी आज भी 112 के साथ बराबरी पर खड़ा है इतने बिहारियों का क्या करेंगे - जिन्होंने आपको और नीतीश को नकार दिया सिरे से
आपको तालियाँ सुनने की आदत है और आपके भाण्ड वो सब कर देते है - शामियाने से लेकर ताली बजाने वालों की फौज खड़ी करना और मीडिया तो बिकाऊ है ही, पर एक बार सड़क पर निकलकर किसी से पूछना, किसी मजदूर चौराहे पर जाना, किसी महिला से पूछना कितनी सुरक्षित हुई वो, किसी किसान से पूछना कि दो हजार मिलें या कैसे ज़िन्दा है उसका परिवार, किसी युवा से पूछना कितना ख़ुश है वो बेरोजगार होकर
बहुत खुश हूं कि घड़े भर रहें है - यह जादू ज़्यादा नही चलेगा और अंत में अपनी एंटायर पॉलिटिक्स की किताब में फिर से पढ़ना कि "लोकतंत्र क्या है"
( भक्त कूड़ा ना परोसे यहाँ - उसके लिए आईटी सेल ने वाट्सएप्प विवि खोल रखा है )
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अभी जब एक कार्यक्रम में मैंने मनोज को पूछा कि ये दिलीप चिंचालकर है क्या, तो मनोज ने कहा कि इसका मतलब सच में वे गम्भीर है और बहुत बदल गए है - मैं पहचान नही पाया इतने कमज़ोर हो गए थे वे इधर
इतने प्यारे व्यक्ति और इतने सहज, अपने काम में निपुण और पारंगत, गुरुजी स्व विष्णु चिंचालकर जी के बाद इतने कम समय में - यही कहूँगा, दिलीप दा का यूँ गुजर जाना दुखद है
कला की समझ गुरुजी से सीखी, देवास जिले के ही थे गुरुजी, बाद में उनके साथ मृत्यु पर्यंत रहा बच्चों के साथ बालमेले करते गुरुजी, और कलापिनी कहती कि मत ले जाया करो रे गाँव खेड़ों में, वे अब बुजुर्ग हो गए पर गुरुजी कहाँ मानते थे, वे कहते "तू क़ाय अइकतो तिचं, चल आपण चलू दोघ जन" - घर जाने पर दिलीप दा से बातें तब वे नईदुनिया की प्रिंटिंग और साज सज्जा देखते पर ढेर किताबों और विषयों पर बातचीत, कमाल के व्यक्तित्व और गौरैया तो बहुत ही छोटी थी
किस्मत अच्छी थी मेरी कि राहुल बारपुते जी, बाबा डीके, गुरुजी विष्णु चिंचालकर जी और पंडित कुमार गंधर्व जी का बचपन से सानिध्य मिला और इनके साथ बड़े कलाकार और लोगों को देखने सुनने का मौका मिला, आज उस कड़ी में दिलीप दा का जाना अखर गया
गुरुजी की कला की दुनिया वैविध्य से भरी पड़ी थी जहाँ कबाड़ से लेकर बारीक रेखाओं का संयोजन था, वही दिलीप जी की कला व्यापक थी - वे सिर्फ ब्रश और रँगों तक सीमित नही थे, लेखन अनुवाद और चकमक से लेकर प्लूटो, सायकिल जैसी पत्रिकाओं और देश का पर्यावरण जैसी ढेरों किताबों के ले आउट में भी लगातार नया करके रंगों को नया अर्थ दे रहें थे, दिलीप दा का जाना मालवा में ही नही, मप्र भर में ही नही - बल्कि सम्पूर्ण कला क्षेत्र में एक शून्य निर्मित हो गया है, संवाद नगर इंदौर का गौरैया कुंज खाली हो गया है, स्व गुरुजी की स्मृतियों के साथ दिलीप दा की स्मृतियां अब उस घर को और सघन कर देंगी
दीवाली पर यह खबर मनहूस ही नही - दुखद और पीड़ा पहुंचाने वाली भी है, हम सबने एक निजी आत्मीय व्यक्ति खो दिया है जिसकी कमी कोई कभी नही भर पायेगा
नमन , ओम शांति

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दीपावली सच में एक प्रकोप है और भयानक प्रदूषण का कारण
लग ही नही रहा कि देश मंदी में है, देश कोरोना से निकला है और अभी भी जूझ रहा है, रोज मौतों का आँकड़ा सुनकर, भुगतकर भी हम जश्न मना रहे है - कितने नीच है और किस घटिया स्तर पर आ गए है हम - बोलने का मतलब ही नही है अब - हम सब सच में अफीम के गहरे नशे में है
सबसे बड़े पाखंडी, ढोंगी और मक्कार है हम, हम कोई ना मदद चाहते है ना ठीक होना, मूल रूप से उत्सव प्रेमी, ऐय्याश, उज्जड़, गंवार और विशुद्ध मूर्ख लोग है हम
एक तरह के मनोरोगी और यह रोग दिनों दिन बढ़ते ही जा रहा है
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सड़क से ज़्यादा फूल पत्तियों और पोस्टर्स का कचरा तो मोबाइल में इकठ्ठा हो गया है
सुबह से हजारों चित्र डिलीट कर चुका हूँ
मेरे प्यारे पिरधान जी, इसके लिए भी एक गड्डी भेज दो
"गाड़ी वाला आया जरा मोबाइल निकाल"
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कायर और नपुंसक व्यवस्था जनता को ही मारती है अंततः
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किस राम या श्रीकृष्ण ने कहा कि पटाखे फोड़े जाये, किस कुरान या हदीस में लिखा है सुबह सारे मुल्ले एक साथ कर्कश आवाज़ में अज़ान पढ़ने लगें - सवाल यह है कि हर साल हल्ले और लिखा पढ़ी के बाद, सुप्रीम कोर्ट की नसीहतों के बाद और सरकारी आदेशों के बाद भी पटाखा व्यापारी जनता के रूपये लूटकर जनता को ही बीमारियां बाँटते है और 40 से 50 % तक का मार्जिन कमाकर आठ दस दिन के खेल में लखपति बन जाते है और इस लूट के खेल में सब सिरे से शामिल है
देश में निर्णयन बॉडी सरकार है इन कमीने पटाखों बनाने वालों पर ही रोक लगा दें , इनकी फैक्ट्रियां ही भस्म कर दें तो हमेंशा का झंझट मिट जायेगा, जब तक लायसेंस सामग्री, बनाने , सप्लाय और बेचने के काम खत्म नही होंगे तब तक देश को ये हरामखोर लोग नर्क बनाते रहेंगे
इतना भयानक प्रदूषण और हल्ला कर रखा है कि समझ ही नही आता किससे कहें, समझदार पढ़े - लिखें लोग भी मूर्ख और गंवारों की तरह से बहस करते है, अब यदि सरकार इस तरह के काम धन्धों पर पूर्ण प्रतिबंध जब तक नही लगाएगी तब तक कुछ नही होगा - तुरन्त आवश्यकता है इन पर रोक लगाने की और इसके लिए किसी को भी कोई छूट नही होना चाहिये - चाहे अजान के भोंगे हो, मंदिरों में बजने वाले भजन, प्रवचन, गुरुबाणी, चर्च के घड़ियाल या किसी घटिया मंत्री की टटपुँजिया सभा या प्रधानमंत्री की आमसभा - मतलब हद है यार जब देखो तब भोंगे और आवाज़ों का शोर और ये पटाखे तो डेसिबल के मानक तोड़कर बाहर निकल जाते है, कलेक्टर एसपी या स्थानीय न्यायाधीश भी कुछ नही कर पाते उन्हें दीवाली पर मिठाई के पैकेट में छुपे नोट की मिठाई गिनने से फुर्सत मिलें तब ना, हर जगह जिला एवं सत्र न्यायाधीश से लेकर सिविल न्यायाधीश स्वतः संज्ञान लेकर प्रशासन के कान पकड़ लें तो ये सब इतने निम्न स्तर पर जा ही नही सकेंगे - अभी तुरन्त रोक लगाने की जो जरूरत है वो मुझे लगती है -
◆ लाउड स्पीकर पर
◆ तम्बाखू, गुटखा और सिगरेट पर
◆ पटाखों पर
◆ एसिड पर
◆ प्लास्टिक
◆ शराब पर
आप इस सूची को पूरा कर सकते है मित्रों
यदि कोई सरकार बहादुर यह कर पाए तो सच मे समूची सभ्यता पर एहसान होगा पर सवाल यह है कि इस खेल में सबसे ज़्यादा सरकार ही शामिल है
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The Road not Taken
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तमाम ढकोसलों और प्रपंच के बाद ना अजीम प्रेम, ना सत्यमूर्ति, ना रतन टाटा, ना राजू, ना अम्बानी, ना अडानी, ना लक्ष्मीकांत मित्तल और ना माल्या अपनी निजी संपत्ति से हटे या ना ही उन्होंने किसी को अपना उत्तराधिकारी बनाया, सब CSR का नाटक करते है जमकर - बिल गेट्स के नाटक को हम देख ही रहें है कि सब त्यागकर भी जोंक की भांति चिपका हुआ है अपनी धन संपत्ति से - यह सब सही भी है - क्यों छोड़े सब निजी मेहनत और लम्बी दूरदृष्टि का परिणाम है आज का विशाल साम्राज्य पर इन्होंने लोगों को नौकरी दी, अमीर बनाया और देश को नौकरी का ढाँचा बनाकर रोज़गार का मॉडल दिया आज करोड़ों लोग इनके मुलाजिम है और पेट पाल रहें है
तो इन सबमें और नीतीश में फर्क क्या है - नीतीश ने बिहार को अपने बाप की जागीर समझ रखा है और वे भी मरने तक जोंक की भांति चिपके रहेंगे और खून पीते रहेंगे सबका - नीतीश ने क्या किया कोई बताये
बताईये सातवीं बार शपथ लेने वाले मुख्य मंत्री के राज्य में कुपोषण, पलायन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य की बदहाली चरम पर है, अपहरण और अपराध चरम पर है और फिर भी वही घटिया आदमी सुशासन के नाम पर छल बल से पुनः उसी पद पर आसीन हो रहा है तो क्या राज्य के लोग विशुद्ध मूर्ख नही है और यह आदमी दूसरी बार चरण चाट कर अपनी औलादों के लिए सबसे घटिया रोल मॉडल पेश कर रहा है
सातवीं बार कोई विधायक भी है तो यह लोकतंत्र तो नही है कम से कम, यह सिर्फ और सिर्फ अनाचार, व्याभिचार और अत्याचार है जनता को दबाने की कोशिश और तानाशाही का द्योतक - जिसके कुशासन ने राज्य के नागरिक को देश का सबसे बड़ा मजाक या बकैती करने वाला रिक्शा चालक, मजदूर या कोरा निपट अज्ञानी बुद्धिजीवी बना दिया वह आदमी ही 30 साल से मुख्यमंत्री है मतलब आज़ादी की आधी मलाई खा गया वह फिर से - शर्मनाक नही तो और क्या है रे बिहारियों
रुकिये जरा
अबकी बार यह ताजपोशी अल्पावधि की है जब भाजपा ने मप्र में उमा भारती को निपटा दिया था तो नीतीश को इत्ती सी सीट के आधार पर पांच साल रहने देगी - ओ मेरी महबूबा वाला गाना याद है ना कश्मीर की वादियों में जो गूंजा था, और उसी महबूबा को लव जिहाद में नजरबंद रखा एक साल
खैर , अबकी बार जो आज शपथ ले रहा है वह नीतीश नही सिर्फ एक कठपुतली है जो रिंग मास्टर के इशारों पर नाचेगा - आरा हिले छपरा हिले, या पूरबिया बिदेसिया गायेगा विरह का - भाण्ड और चारण सिर्फ मनोज तिवारी थोड़े ही है बिहार में
सात बार एक ही पद पर - छि सुनकर ही घृणा होती है कि कितना नाकारा और अकर्मण्य होगा यह सत्ता की हवस का पुजारी , पर बिहारियों को यही पसंद है - वे जीते ही दो छोरों पर या प्रथम श्रेणी के जॉब या सड़कछाप मजदूरी बीच का जो रास्ता है वह कही नही जाता
[ भक्त और बिहारी मेधा समझकर कमेंट करें - आपके कहने से सच्चाई छुपेगी नही ]
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यदि आप सामाजिक रीतिरिवाज़ों में यकीन करते है और उनका अनुसरण करते है तो अच्छे से उसी तरह निभाइये जो मान्य है अन्यथा ढोंग और पाखंड का नाम देकर उन्हें तोड़ मरोड़कर अपनी सुविधा अनुसार इस्तेमाल मत करिये
मसलन राखी पर बहन भाई के घर जाती है और भाई दूज पर भाई को "अपने ही घर" बुलाती है तो इसी परंपरा को आगे बढ़ाइए - बेवकूफी में नवाचार करके समाज को कलुषित मत करिये - होटल और दूसरे के घर, अपने माँ - बाप के घर भौंडे आयोजन करके परम्परा को बर्बाद मत करिए
आजकल यह बहुत ज़्यादा बढ़ गया है फैशन और दिखावे की आड़ में आप संस्कृति का बंटाधार कर रहें है या तो फिर सब बन्द कर दीजिए - राखी, भाई दूज, या होली, दीवाली ईद, क्रिसमस भी और बिंदास जीवन जिये, फिर किसी से ना राखी की उम्मीद रखें , ना रुपये / गिफ्ट की और ना भोजन पार्टी की और ना ही शादी ब्याह में लेनदेन की, बुलावे और व्यवहार की - ना लो, ना दो और ना किसी रिश्तेदारी टाईप की मूर्खता में पड़ो - इमोशनल अत्याचार करके दूसरों को बेवकूफ ना समझे सभी गेहूँ की ही रोटी खाते है गोबर की नही और पुट्ठे पर एक लात मारकर होशियारी एक झटके में झाड़ना सब जानते है - आप प्रगतिशीलता के नाम पर कोई तुर्रे खाँ नही है अकेले संसार में
***
" दीवाली विशेषांक निकालने वाले सम्पादकों को सालभर अमूल का मख्खन लगाया, वे अपनी मर्जी से लिस्ट बनाते है - छापने वालों की और फिर विशेषांक निकाल लेते है - दीवाली के बाद मालूम पड़ा कि उनकी घटिया पोस्ट्स पर लाईक और कमेंट करने और उनके ऊटपटांग संग्रह खरीदने के बाद भी विशेषांक निकल गया और मेरी एक लाइन नही छपी, मेरी कवि जाति के करोड़ो रचनाकार बेचारे अतृप्त रह गये है - इस दीवाली की गंगा में डुबकी लगाने से तो जीने का अर्थ नही है - लिहाज़ा अब जीवन खत्म कर रहा हूँ - लंबे चौड़े कोरोना काल में एक लाइव नही हुआ और अब ये आस भी टूट गई जीने के संधान ही नही बचें अब
भगवान की कसम से आज यह लिखकर मैं गंगा में कूद रहा हूँ - मेरे बाद मेरे परिवार को दोषी ना ठहराया जाये, ना परेशान किया जाये, मेरी आत्महत्या के पीछे दीवाली विशेषांकों के सम्पादक जवाबदेह है "
- इलाहाबाद/भोर का अंतिम पहर
कार्तिक शुक्ल/तृतीया/विक्रम शके/१९४२
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मृत कवि का सुसाइडल नोट अभी मिला मेल पर मुझे - जो कवि ने कूदते समय प्लास्टिक में लपेटकर कान पर जनेऊ से बांध रखा था
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BCI भी लॉ के छात्रों की पुनः परीक्षा लेने पर अड़ी है जबकि एक बार सभी ओपन बुक से छात्र परीक्षा दे चुके है, जाँचने के नाम पर मक्कार प्राध्यापक गण औपचारिकता निभा चुके है - भारतीय नीतिकारों से ज्यादा मूर्ख कोई है नही
BCI के इन बेवकूफी भरे निर्णय के कारण विवि परिणाम घोषित नही कर रहें है - मसलन विक्रम विवि ने कभी से परिणाम ही नही दिये, ना आगे की पढ़ाई का रास्ता खुल रहा और ना कुछ स्पष्टता है किसी को, प्रोफेसर्स को दो लाख फोकट की तनख्वाह मिल रही है पिछले आठ माह से - मुश्किल से 5 % लोगों ने ऑन लाईन कक्षाएँ ली होंगी बाकी सब हरामखोरी में व्यस्त है - जरा इनसे पूछा जाये कि क्या किया सिवाय कुर्सी तोड़ने के आठ माहों में और जो नई खेप आई है वो तो और भी बड़े वाले है - काम ना धाम, जय श्रीराम - बस मजे लो और फेसबुक वाट्सअप चलाओ दिनभर
मप्र शासन का उच्च शिक्षा विभाग भी नमूनों का अड्डा बन गया है, तीन चार खब्ती किस्म के प्रोफेसर्स वहां बैठे है जो विश्व बैंक परियोजना से लेकर गुणवत्ता बढ़ाने का रायता फ़ैलाते रहते है और नतीज़ा यह है कि उच्च शिक्षा सड़क पर पड़ी सुअरनी हो गई है जिसके दो दर्जन बच्चे यानि नवाचार और कूड़ा कचरे का खामियाजा छात्र भुगत रहे है
ऐसे में कैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के महाविद्यालय और विवि बनाओगे - पर कोई क्यों बोलें - उच्च शिक्षा की जरूरत ही क्या है और वो भी गुणवत्तापूर्व वाली
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"उम्र सबसे जालिम है, सड़न इसलिए है - क्योंकि है, कमजोरी इसलिए है कि कमजोरी है - चेहरे पर सड़न, गंदगी और षडयंत्र साफ दिखता है, और मैं कलाकार हूँ - जो दिखेगा वही बताऊंगा और बनाऊंगा, ना तो मैं आँखें बंद कर सकता हूँ और ना सच को छुपा सकता हूँ , आप किसी बात से लड़ रहे है तो उसका ताल्लुक मुझसे नही - अपने आप और आपके लोगों से है और अपने अंधेपन से है
मुझे दोष देने से पहले आप खुद अपना स्वमूल्यांकन कर लें, यह तस्वीर साम्राज्य और सत्ता में घुन लगे नेतृत्व की है - जिसे मैंने हूबहू बनाया है - यदि आप इसे स्वीकार ना करना चाहे तो आपकी मर्ज़ी है पर सच्चाई सामने है - यह ढीला ढाला, झुका हुआ मजबूर आदमी ही ब्रिटिश सत्ता पर बरसों से जमा बैठा शख्स है जो वर्षों में कुछ नही कर पाया "
The great artist Southerland who portrayed a great potrait of then Prime Minister Sir Winston Churchill and after unveiling Churchill abused him like any thing. He said above and quit the room.
Later Churchill confessed to his wife that - "He is right - I am that man in the painting - wretched and decaying"
#Crown - series I love on Netflix
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कोरोना फैल रहा है, रात के कर्फ्यू से सब ठीक हो जायेगा, मास्क लगाने के लिए पुलिस फिर अपनी शानदार भूमिका में आ गई है
दीवाली मना ली, चुनाव हो गये, सरकारी राहत, कर्मचारियों को दस हजार का ऋण मिला तो आर्थिक स्थिति ठीक हो गई, जीडीपी दस पे आ गई
पर कोरोना तो फैल ही रहा है क्यों - क्योंकि
दुनिया भर में कोरोना की वैक्सीन तैयार है, हमारे यहाँ भी करोड़ो डोज़ तैयार है - नये साल के शुभ मौके से खपत भी शुरू करना है - डर का, ख़ौफ़ का साया पसारना शुरू करो - जनता जितना डरेगी माल उतना खपेगा
बिल गेट्स से लेकर अम्बानी और बाकी सब डॉन जो बैठे है जिन्होंने महामात्य को हवाई जहाज से लेकर झबले, लंगोट दिए - चुनाव में रुपया दिया, अभी फिर बंगाल में देंगे - वो बेचारे भरपाई कहां से करेंगे, उधर अमेरिका से भी लेना पड़ेगी वैक्सीन क्योंकि बाइडन के सामने भी तो झांकी जमानी है उदार, भूखे नँगे और जगत गुरु की छबि वाली
आईये कोरोना कोरोना खेलें और इस सबमें सबसे बड़े ठग अरविंद केजरीवाल का नाटक देखिये - बिहारियों को छठ और चुनाव के बाद दिल्ली में आकर कमाने से रोकने और अपने अस्पतालों को सुधारने का इससे सुनहरा मौका मिलेगा , मुम्बई से कामगारों की स्थाई विदाई हो ही गई है लगभग - "आमची मुम्बई" का नारा बुलंद होने में समय कम है
जय कोरोना देवा

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