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Khari Khari, Drisht kavi and Posts from 3 to 11 Nov 2020

 श्रीराम चन्द्र कृपालु भजमन

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अरविंद केजरीवाल अक्षर धाम मन्दिर में 14 नवम्बर को पूजा करेंगे - बिल्कुल करना चाहिये , क्योंकि दीवाली बड़ा त्योहार है और जोश होश का भी, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम प्रभु का 14 वर्ष के वनवास के बाद घर लौटने का यह त्योहार आशा जगाता है और उमंग भरता है
शायद अरविंद को यह ध्यान होगा ही कि कोई भी संविधानिक पद पंथ निरपेक्ष होता है - जब किसी राज्य का प्रधान ही हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई या सिख हो जाएगा तो वह अन्य लोगों को किस तरह से ट्रीट करेगा - दिक्कत यह है कि अरविंद जो तथाकथित कई तरह के काम , जिसमे सामाजिक विकास भी शामिल है, करके इस पद पर पहुँचे है उनकी इतनी छोटी समझ और बुद्धि होगी कि वे ना मात्र पूजा करेंगे, लाइव करेंगे पर आज से विज्ञापन भी करने पर उतर आये है
समाज के नागरिक होने के नाते पूजा करना, प्रदर्शन करना, लाइव करना या विज्ञापन करना कोई गुनाह नही , धर्म को मानने की सबको छूट हैं, परन्तु संविधान की शपथ लेकर इस तरह के स्टंट करके वे क्या हासिल करना चाहते है - यह सार्वजनिक प्रदर्शन कितना भौंडा विचार है इसकी कल्पना है किसी को, जबकि आज़ाद भारत गत 74 वर्षों से इसी सबसे जूझ रहा है और अभी अयोध्या में मन्दिर निर्माण की शुरुवात के बाद अब थोड़ी शान्ति है
क्या सुप्रीम कोर्ट या राष्ट्रपति स्वतः संज्ञान लेकर इस तरह के विज्ञापन पर रोक लगाएंगे कम से कम
सत्ता पाने और बनाये रखने के लिए एक आदमी कितना नीचे गिर सकता है यह अरविंद से सीखना चाहिये इसलिये बिहार के नतीजे चौकातें नही और इस देश के लोगों पर अब तरस भी नही आता - हम सब लोग तमाम दिक्कतों, अपमान, जलील होने के बाद, भुखमरी, पलायन , ना स्वास्थ्य , ना शिक्षा और घृणित जिंदगी के बावजूद भी इसी तरह के घटिया लोग ही नेतृत्व के रूप में डिज़र्व करते है, इसलिये मुझे अब ना इन दिखावटी गरीबों से सहानुभूति है और ना ही इनकी मदद करने का जज़्बा शेष है - अफसोस यह हो रहा कि कोरोना काल मे सबसे ज़्यादा मदद जिन पलायन कर रहे लोगों की, की थी - वे ही उस ग़रीबी भुखमरी को बनाये रखकर एन्जॉय करना चाहते है - इससे ज़्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है
इस तरह का उदाहरण प्रस्तुत करके वे बहुत ही गलत परम्परा स्थापित कर रहें है और यदि वे अमित शाह और योगी को पछाड़कर प्रधान मंत्री बनने का शार्ट कट खोज रहे हो तो फिर कुछ नही कहना है - इश्क, प्रेम और चुनाव जीतने के लिए सब जायज है
जय जय श्रीराम
दीवाली की अग्रिम शुभ कामनाएँ मित्रों
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"दो नई कविताएँ लिखी है - आप कहें तो सस्वर वाचन कर दूँ " - वही अपने लाइवा का फोन था
" अबै, तू टीवी देख बिहार के रिजल्ट देख, फालतू बात मत कर, नही तो अभी सुशील मोदी को छोड़ दूँगा तेरे पीछे, साला कभी तो कविता को बख़्श दें " - मैंने कहा
" जी, सुशील मोदी, तेजस्वी, नीतीश से लेकर सभी पर कविता लिखी है श्रृंगार से लेकर वीर रस में - बताईये आप किसकी सुनेंगे" - लाईवा का जवाब था
" तू सुधरेगा नही - तेरी तो, ठहर ........"
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◆ अप्रवासी बेटी आज अमेरिका के सर्वोच्च घर में पहुंची है
--- बाइडन
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◆ डायन, चुड़ैल, इटली की वेट्रेस, विदेशी, जासूस और ना जाने क्या क्या
---देश भक्त आईटी सेल के आवारा मुंह मारते श्वान और शूकर देव
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फर्क पड़ता है पढ़ाई, डिग्री और एक्सपोज़र का - नीच और नालायक देश भक्तों से देश भरा पड़ा है, पर अब शुरुवात हुई है - याद रखिये - बिहार चुनाव में किसी ने नही कहा कि हमारा मुद्दा 370, कश्मीर, अयोध्या, मन्दिर, नक्सलवाद, आतँकवाद, चीन, पाकिस्तान, कालाधन, मोब लिंचिंग, गाय, बलात्कार, हाथरस, लव जेहाद, सुशांत मौत की सीबीआई जांच या कुछ और है - सिर्फ मुद्दा था कि हमें रोज़गार चाहिए बस और अमन चैन से जीने दो
ये जाएंगे अब क्योंकि सब समझ रहें हैं लोग इसलिये तो लव जेहाद पर कानून बनाने को उतर आए है - मैंने कहा था कि अब क्या बचा है इनके पास सिर्फ भड़काऊ काम, अतिरंजित व्याख्याएं और अनर्गल प्रलाप
इनका टाईम आयेगा - नीतीश को जनता दरबार में आकर कहना ही पड़ा कि अब और नही
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एक नवी पास युवा तेजस्वी ने नीतीश जैसे बुढ़ऊ को सन्यास लेने पर मजबूर कर दिया
विश्व में इस समय सबसे ज़्यादा युवा, [ लगभग 55% ] भारत में है और अधिकांश शिक्षित और दीक्षित है
सब एक साथ खड़े हो जाये और संविधान प्रदत्त रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और गरिमा के साथ जीने के अधिकार की मांग करें तो इन सब जुमलेबाजों को नरक में भी जगह नही मिलेंगी - भागते फिरेंगे और इन सबको सड़क पर दौड़ा - दौड़ाकर मारेंगे
सच में इस समय एक अवतार की जरूरत है जो इन दो तीन लोगों को खुले आम चुनौती दें और इनकी ऐसी पोल पट्टी खोलें कि ये लोग खुद ही जनता की अदालत में आकर समर्पित हो जाये घुटने के बल, काश ! पर मेंढकों को तराजू में तौलेगा कौन और कैसे
गौर फरमाइए इस शेर पर ज़रा
"ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उनमें जा कर मगर रहा न करो"
● मुनीर नियाज़ी
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"आज के दिन मत मारिये, इन्हें छोड़ दीजिए, प्लीज़ छोड़ दीजिए " - दुल्हन के वेश में साढ़े तीन किलो मेकअप और डेढ़ किलो नकली जेवरों से लदी फदी एक सौ बीस किलो वजनी औरत चिल्ला कर रोते हुए विनती कर रही है मल्टी की छत पर सबसे
" छोड़ देंगे भाभीजी, छोड़ देंगे, पर इस कमीने को समझाओ ना, आज भी यह आपकी छलनी के सामने खड़ा रहने के बजाय, बीस पच्चीस लोगों की भीड़ देखकर कविता सुनाने लगा - साला हरामखोर, जी करता है हाथ पांव तोड़ दें, पर आपको दिन भर का भूखा देखकर छोड़ रहे हैं, पर फिर कभी इसने इस मल्टी में कविता सुनाने या पेलने का नाम लिया तो अगली करवा चौथ आप देख नही पाएंगी - समझ लेना " - एक युवा सॉफ्ट वेयर इंजीनियर अपनी बीबी को नीचे ले जाते हुए समझाकर बोल गया
लाइवा कवि हाथ में कविता की डायरी और छलनी लेकर खड़ा था उदास
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अर्नब की गिरफ़्तारी से सुधीर, रजत, दीपक, अंजना, रोहित सरदाना और यहाँ तक कि रवीश कुमार भी नही सीखें तो चौथा स्तम्भ होने का अब कोई अर्थ नही बचेगा
लोगों को सिर्फ न्यूज चाहिये, आपके बायस्ड आंकड़े, विचार, घटिया कहानी और विश्लेषण की आवश्यकता नही हमें - समझ रहें है, मीडिया के गुरु घण्टाल और विवि के माड़साब भी सीख लें कुछ इससे और छात्रों को तो समय रहते कोर्स छोड़कर राजमिस्त्री या बढ़ईगिरी सीख लेना चाहिये क्योंकि असली उपद्रवी यही बनेंगे - हम पाठक और दर्शक आपसे ज़्यादा समझ रखते हैं साथ ही आपके बुने संजाल को भी बेहतर समझते है - बकवास करना मीडिया नही - समझ रहें है ना
इसके साथ समानांतर मीडिया के धुरंधरों के लिए भी यह एक गम्भीर चेतावनी है जो वायर, प्रिन्ट, स्क्रॉल से लेकर फेसबुक और ट्वीटर पर जबरन के स्कैण्डल बनाकर घटिया किस्म की राजनैतिक सनसनी फैलाते है, टेलीग्राफ से लेकर इंडियन एक्सप्रेस, वीक, डाउन टू अर्थ या भास्कर, जागरण, अमर उजाला जैसे प्रिंट के अखबार और पत्रिकाएँ भी समझ लें कि अब उल्लू बनाने का धंधा नही चलेगा
बेहतर होगा इन्हें अपनी सूची से बाहर करें
प्रेस, अभिव्यक्ति और चैनल्स के धंधे को पुनः परिभाषित करना होगा, माखनलाल विवि से लेकर IIMC जैसे संस्थानों में वामी, संघी, कुटिल और निहायत अवसरवादी और चाटुकारों की नियुक्तियों पर अविलंब रोक लगना चाहिये , हाल ही में IIMC में हुई नियुक्तियां या माखनलाल में कुठियाला जैसों की नियुक्ति इस बात का सबूत है कि हम सिर्फ अर्नब से लेकर रवीश ही प्रोड्यूस कर रहें है और अकूत सम्पदा के ढेर पर खड़ा यह मीडिया उद्योग कितना अश्लील, घिघौना हो गया कि आज लीडिंग चैनल के एक जोकर और सत्ता की कठपुतली को गिरफ़्तार करना पड़ा

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