कोविड के नाम पर जो मौतें हो रही है भारत में - कम से कम वह प्रायोजित सामूहिक नरसंहार है
जब राज खुलेगा तब इसकी भयावहता नजर भी आयेगी और मानवता के असली दुश्मनों की पहचान भी होगी
अफसोस सिर्फ इतना है कि हत्यारे तब तक कूच कर चुके होंगे सब कुछ कमा धमाकर
अभी एक परिचित जो कल तक भले चंगे थे अस्पताल उन्हें गम्भीर बता रहा है और उन्हें वेंटिलेटर पर रख दिया है कल रात, उनका कोविड का इलाज किया जा रहा है जबकि चार दिन बाद रिपोर्ट अभी तक आई नही है और आज अस्पताल कह रहा है कि स्थिति बिगड़ गई है
मुझे और बहुत लोगों का यह ख्याल है कि इस सबके पीछे बड़ा षड्यंत्र और अंग व्यापार की भी आशंका है - जिस पर तुरन्त ध्यान देने की जरूरत है
[ सम्पादित - अभी अभी खबर मिली कि आखिर उनकी मृत्यु हो गई है, बहुत ही दुखद ]
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ओम शांति
नमन और श्रद्धांजलि
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गृह मंत्री अमित भाई शाह को कल देर रात पुनः अस्पताल में भर्ती किया गया , एक डेढ़ माह में वे तीसरी बार भर्ती हुए है
उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूँ - तारीफ इस बात की है कि वे विदेश अभी तक नही गये है इलाज के लिए
सुझाव यह है कि वे पूर्ण रूप से ठीक हो जाये, पूरा आराम करें और तब तक गृह मंत्रालय का प्रभार किसी अन्य को दे दिया जाये - मोदी जी खुद सम्हाल लें, वैसे भी पूरी सरकार वो अकेले ही चला रहे हैं - एक भावी प्रधान को इस समय सख्त आराम की जरूरत है और देश को उनके जैसे सख़्त, त्वरित निर्णय लेने वाले और हर हार में जीत लेने वाले जुनूनी व्यक्तित्व की आवश्यकता है
देश में आंतरिक स्तर पर देखें तो हालात बेकाबू हो गए है - कोरोना की बात हो , किसानों की, कृषि की या कमाई धमाई की
पुनः अमित भाई के लिए स्वस्त्तिकामनाएँ और दुआएँ
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एक वृद्ध व्यक्ति जो उम्रदराज होकर अपना मानसिक संतुलन खो बैठा है और अपनी बेटी के साथ बाज़ार जाता है और गुम हो जाता है फिर उसे खोजने में बेटी दामाद क्या क्या नही करते और उस पिता के जवानी की किन किन कहानियों से पाला पड़ता है यह देखना समझना बहुत ही रोचक और शैक्षिक है
मनोविज्ञान, धर्म और दर्शन में गुँथी हुई यह फ़िल्म देखना अपने आप को बेहद संत्रास से गुजारना और जीवन की वास्तविकताओं से रूबरू होना है, बहुत ही कसा हुआ निर्देशन और उच्च शिक्षित परिवारों में बुजुर्गों की स्थिति का बेहद आत्मीय और करुण वर्णन है
अमेज़ॉन पर मराठी भाषा में उपलब्ध यह फ़िल्म जरूर देखी जानी चाहिये - मोहन आगाशे जैसे कलाकार सदियों में जन्म लेते है, इरावती हर्षे ने अपना सम्पूर्ण कौशल निचोड़ दिया है, सुमित्रा भावे की कथा का निर्देशन सुनील सुकथनकर और सुमित्रा भावे ने किया है; मराठी रंग मंच के कलाकारों की परिपक्वता संदिग्ध ही होती है - वे कब आपके दिल दिमाग़ में पैठ कर जाते है , पता ही नही चलता
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दालों की पौष्टिक इडली
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● मूंग, मसूर, उडद और चने की दाल एक एक कटोरी की मात्रा में रात को पानी मे भिगो दें
● एक अलग कटोरी में चावल भिगो दें
● सुबह सबको मिक्सर में दरदरा पीस लें - चार हरी मिर्च और डेढ़ इंच अदरख और छह लहसुन की छिली हुई कलियों के साथ
● अब इस मिश्रण में नमक, लाल मिर्च का पाउडर, भुना जीरे का पाउडर, चार छह बारीक कूटी हुई काली मिर्च मिला कर शाम तक के लिए रख दें
● शाम को खमीर आने पर इडली पॉट में हल्के हाथों से तेल लगाकर स्टीम कर लें दस से पंद्रह मिनिट
● फिर ठंडे होने पर इसे एक प्लेट में सजाएं ऊपर से तेल, राई, कढ़ी पत्ता, सफ़ेद तिल और हींग से बघार लगायें
● दही, टमाटर कैचअप, नींबू का रस और चाट मसाला डालकर खाएँ
● अप्रतिम पौष्टिक और स्पॉन्जी इडलियाँ तैयार है - घर में तुअर दाल के अतिरिक्त कोई और दाल ना खाने वालों को अन्य दालों की भी जरूरत होती है - ये इडली पोषण से भरपूर है, पीसते समय दरदरा पीसे ताकि पोषक तत्व समाप्त ना हो
● जाईये बनाईये - क्या पढ़ रहे हैं - मुंह में पानी दिख रहा है , ध्यान रहें यह एक समय का फुल डाइट है
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Life in Town
सुबह की शुरुवात प्रातः 530 करेले के ज्यूस, फिर 630 चिरायता के पत्तों का पाउडर एवं गिलोय के काढ़े से, 8 बजे प्रोटीन और एक औषधीय फ़्यूल से होते होते जिंदगी रात दस बजे इन्सुलिन के इंजेक्शन पर आकर ठहर जाती है
दिनभर मस्ती, ठिठोली, इंजेक्शन, गोली, दवाई और काम धाम - लिखना पढ़ना शामिल है ही और फिल्में देखना
कुल मिलाकर भोत बढ़िया चल रिया है
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अभी एक सज्जन ने सुबु बोला Good Day तो उनकू जवाब ठेल दिया अपुन का ई दिन शुभ क्यों हो , बे मालवा के गरिष्ठ है डेढ़ किलो जलेबी, एक किलो रबड़ी और 100 गुलाब जामुन एक बैठक में पेलने वाले है , 21 से कम कचोरी नही खाते - सोचा सतर्क कर दूँ - अब वो भी 45 के हो गए है
कभी हम भी इन्हीं राहों के मुसाफिर थे - तुम्हे याद हो कि ना याद हो
बहरहाल, आपका दिन शुभ हो
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"दिन खाली खाली बर्तन है
और रात है जैसे अंधा कुँआ
इन सूनी अन्धेरी आँखों में
आँसू की जगह आता हैं धुँआ
जीने की वजह तो कोई नहीं
मरने का बहाना ढूँढता है ....."
एक अजनबी सा अपने ही घर और शहर में आबोदाना ढूँढता है - एक सूने बरसाती दिन में हम अपने घर और अपने आप में यूँ खो जाते है कि ढूँढ़ ही नही पाते बरसात की बूंदें टप टप गिरती है - आहिस्ता आहिस्ता पूरे अस्तित्व को भिगो देती है और सूखने को कोई दयार नही मिलता कही - हम अपने जिस्म में खुद को खोजते है जबकि रूह तो कही दूर बरसात में झूम झूमकर नाच रही होती है - पता नही स्वप्नों को देखकर मन मयूर क्यों उदास हो जाता है, ये भीगना ही शनै शनै खत्म हो जाना है जैसे सूख जाएगी एक नाचती हुई बूँद एक झटके से
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बहुत चिंता में थे - फोन आया,मैंने पूछा " हुआ क्या है, क्यों बीपी शुगर बढ़ा रहें हो, घर मे हो - आराम से रहो "
"बो सब तो ठीक है पर 14 कूँ हिंदी दिवस है - कवि सम्मेलन तो दूर, साला लाईब का बी न्यौता नई आया अब्बी तक - मुझे हिंदी की चिंता है और आज जो बिश्ब फलक पे हिंदी की दुर्दसा हो रई हेगी उसके मारे नींद ही नी आ रई है - साला स्टेट बैंक वाले शॉल नारियल देते है, अबकी बार उनका बी फोन नी आया अब्बी तक......."
मैंने फोन रख ही दिया हिंदी की दुर्दसा सुनके
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कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने की भाजपाई शिवसैनी चाल
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138 करोड़ लोगों की मूर्खता का सबूत इससे बड़ा क्या होगा कि रोज़ी - रोटी, शिक्षा - स्वास्थ्य की सुविधाएं मांगने के बजाय सुशांत, रिया, कंगना में उलझे है - धूर्त सत्ता और जोकर्स उन्हें पाकिस्तान, 370, तीन तलाक, रोहिंग्या मुसलमान, तब्लीगी जमात और अब चीन का डर दिखाकर बेवकूफ बना रही है
सबसे मजेदार यह है कि जिस मीडिया के कर्मचारियों को मालिकों ने सलीब पर टाँग कर रखा है, 35 से 50 % तनख्वाह काटकर जूते तक साफ करवा रहें है, जो चैनल कंडोम से लेकर ठगाचार्य भ्रष्ट सलवारी बाबा के प्रोडक्ट का विज्ञापन लेकर सबसे तेज़ न्यूज़ दौड़ा रहे है वे कमबख्त नैतिकता और ड्रग माफिया से देश को मुक्ति दिलवाएंगे पहले मार्च से पेंडिंग पड़ी तनख्वाह तो ले लो पत्तलकारों
जो कस्बों के पत्रकार थाने से लेकर पटवारी से 70 रुपये के देशी पव्वे के लिए बिक जाते है - वे ससुर बहस कर रहें है, कलेक्टर से लेकर विधायक, सांसद और मुहल्ले के लफंगे पार्षदों की प्रेस वार्ताओं में दो से दस गुलाब जामुन भकोसने वाले शादी ब्याह के वीडियो बनाने वाले फ़िल्म इंडस्ट्री के हाल बता रहे है उजबक, दसवीं पास भी नही और गुटखा थूकने का भी शउर नही
यह ठीक ऐसा ही है जैसे बगैर डिग्री वाले देश के कचरा विश्वविद्यालयों को विश्व में श्रेष्ठ रैंकिंग दिलाने की बात करें, देश अम्बानी अडानी को बेचकर आत्म निर्भरता की बात करें
जो जेंडर वादी रिया और कंगना और सुशांत के जेंडर पर बात कर रहे हैं वे भूल रहे है कि वे अरबपति है और तुम ससुरों डेढ़ जीबी रोज फ्री में खत्म कर ज्ञान बघार रहें हो, इन दो महिलाओं पर टसुए बहाने वाले भूल रहे है कि कंगना को आखिर दो सौ - ढाई सौ में पीवीआर का टिकिट खरीदकर तुमने ही ऊपर पहुँचाया
कहां से लाते हो कमीनो इतना दोगलापन - तुम पैदा ही नही होते तो कितना भला होता, मीडिया वालों सबसे ज्यादा तुम अपनी औकात देखो - अभी भी संडास से लेकर रायगढ़ में मजदूरी दिलवाने के नाम पर स्वदेश या ऐसे ही रॉनी स्क्रूवाला जैसे लोगों के साथ या यूनिसेफ के साथ 50-50% का धंधा कर ऑन लाईन चंदा वसूल रहें हो इसका हिसाब तो दे दो - पतंजलि से न्यूज या प्राइम टाइम स्पॉन्सर करवाने में लज्जा नही आती और बात कर रहे है बड़ी बड़ी
कैमरा उठाकर घूमने वालों अपने मीडिया के बाप से पहले 100 % तनख्वाह तो ले लो फिर न्याय दिलवाना सुशांत, रिया या कंगना को और बाकी जनता जनार्दन तो अभिशप्त है ही मोदी - मोदी - मोदी करने को
तो बोलो - सौंगन्ध राम की खाते मन्दिर वही बनायेंगे
जै - जै सियाराम
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5 सितंबर को बेरोजगार युवाओं ने निकम्मी सरकार के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन किए
ये लड़की मात्र 21 - 22 साल की है मप्र लोकसेवा आयोग की आरंभिक परीक्षा दो बार पास कर चुकी है मुख्य परीक्षा का इंतज़ार है
5 सितंबर को कोरोना का रिस्क उठाकर और अपना रुपया खर्च कर भोपाल गई थी प्रदर्शन में पर बर्बरता देखिये - 5 फीट और मात्र 48 किलोग्राम वजन की इस युवा लड़की को मप्र के शिवराज सरकार की पुलिस ने कितने अमानवीय तरीके से उठाया और जेल में ठूँसकर रखा - पुलिस के 4 लोगों ने - मतलब डरा कौन लड़की या सरकार
निर्लज्ज सरकार है और शर्मनाक है यह सब
मैं इसलिए इसे जानता हूँ कि यह "जयश्री सोलंकी" है जो मेरे साथ लॉ की कक्षा में सहपाठिनी है - इसकी हिम्मत और जज़्बे को सलाम और सरकार के नाम पर एक थू
जब कुछ नही कर सकते तो अत्याचार तो कर ही सकते है - धिक्कार है
बेटी पढ़ाओ और अत्याचार करो - वाह रे लाड़ली लक्ष्मियों के दुलारे मामा
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"सुनिये, जरा अंदर आईये ना " - कवयित्री की गली से गुज़रते हुए लाइवाकवि ने आवाज़ सुनी तो चहक उठा और फुर्ती से घर में घुस गया
ये हिंदी का पीजीटी भी था किसी केंद्रीय विद्यालय में, पर भड़कता शोले टाइप था - जो कॉलेज की नौकरी ना मिल पाने के गम में कुंठित हो गया था हिंदी की तमाम फर्जी डिग्रियाँ होने के बाद भी और जमकर कविता लिखता था
" कहिये आज आखिर आपने कविता सुनने के लिए बुला ही लिया " - मन समर्पित, तन समर्पित के भाव थे ललाट पर, कवि के
" नही असल में मेरे फूफा ससुर का श्राद्ध है आज, कोई बामण नही मिल रहा - वर्किंग ड़े है ना आज, फिर गाय भी नही आई, कुत्ते भी नही दिख रहे सुबह से और भोग की थाली फोटो के सामने रखी है - आप खाना यही खा लिजिये , ग्यारह रुपये वही नीचे है थाली के - ले लीजिए और निकलिये क्योकि 'ये' लंच में आयेंगे अभी एक बजे " कवयित्री ने थाली की ओर इशारा किया जो स्व सवाईलाल अनोखेलाल शर्मा के सामने रखे रखे सूख रही थी
कौव्वें और काला पानी कहानी कवि को याद आ रही थी - स्साला निर्मल वर्मा भी अभी ही याद आना था - कवि ने मन ही मन कहा
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पक्के बेशर्म है - एक लाश पर चुनाव जीतेंगे, ढीट है - एक अभिनेता की लाश पर जो कर्जदार था, नशेड़ी था और तमाम अनैतिक काम करता था, जिसने आत्महत्या की है - वह इनका रोल मॉडल है और बिहारी इंटेलेक्ट को भी यह सब भायेगा क्योकि बिहारी अस्मिता है ना इस मसाले में
ये असली संस्कृति इनकी, ये संस्कार जो बरसों से गली आंगन में कोमल दिमागों में बो रहे है , देश का प्रधान एक नशेड़ी के फोटो पोस्टर लेकर खड़ा प्रचार में उतरा है, (कु)सुशासन का खलनायक इसे अपनी जीत कह रहा है
हम टैक्स पेयर्स का रुपया सीबीआई, नारकोटिक्स और आई बी के गधों को पालने पोसने में बर्बाद हो रहा है जो संविधान के प्रति समर्पित ना होकर इन घटिया राजनेताओं के चरणोँ में लोट लगाते है
मीडिया आपको रिया से रनौत तक उलझाकर रखता है - युवाओं को क्या चाहिये - डेढ़ जीबी डाटा, रिया, रनौत, मन्दिर और पोर्न - बस हो गया
याद है ना मणिशंकर अय्यर
[तस्वीर देखिये गौर से - कला एवं संस्कृति प्रकोष्ठ - इनको हिंदी सीखाओ बै कोई ]
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फेसबुक पूछता है "आपके दिमाग में क्या है"
आपके दिमाग में क्या चल रहा है, इसका अर्थ यह है कि किसी विषय के बारे में, किसी मुद्दे के बारे में किसी किताब के बारे में, किसी लेखन के बारे में आपके दिमाग में क्या चल रहा है, पिछले दिनों कुछ काम किया तो मुझे लगा कि संबंधित विषय और व्यक्ति से बात कर लेना चाहिए - परंतु बहुत प्रयास करने के बाद भी मुझे लगता है कि मैं सफल नहीं हो पाया और जब तीन-चार दिन बहुत परेशान रहा तो अब समझ में आ रहा है कि फेसबुक का यह वाक्य कि "आपके दिमाग में क्या चल रहा है" - बहुत महत्वपूर्ण है - क्योंकि आपके दिमाग में जो है वह मेरे दिमाग में नहीं आ सकता
मेरी अपनी क्षमताएं हैं, मेरी अपनी सोच है, मेरा अपना अनुभव है और मैंने एक विचार बनाया है जो मेरे परिवेश, परिस्थिति और शिक्षा से उपजा है - इसलिए यदि मैं चाहूं कि आपके दिमाग को हूबहू कॉपी करके उसे ले आऊँ शब्दों में बोकर किसी लेख, कहानी या कविता का या किताब का स्वरूप दे दूं - वह शायद मुश्किल होगा - यह बात आप भी समझते हैं, मैं भी समझता हूं और हम सब समझते हैं परंतु उपलब्धियां, सच, जानकारी और अनुभव और इस पूरी प्रक्रिया से गुजरने में जितना आपके दिमाग ने समय लगाया है उसको मैं चाह कर भी एक जन्म तो क्या दस जन्मों तक पूरा नहीं कर पाऊंगा, कभी समझ ही नहीं पाऊंगा कि वह सब क्या था जो छूटता रहा
मैंने अपनी समझ से जितना बेहतर हो सकता था करने की हमेशा कोशिश की और उसके बाद भी मैं खुला हूं कि अभी भी यदि कोई संभावनाएं होती है तो उस पर मेहनत की जा सकती है ; गौतम बुद्ध कहते थे मैं एक बात कहता हूं लोग उसे अपने अपने तरीके से समझते हैं - बौद्ध लामा या भिक्षु अलग समझेगा, कोई गणिका अलग समझेगी, नगर सेठ अलग समझेगा, आम्रपाली अलग समझेगी, अंगुलिमाल अलग समझेगा, प्रिय शिष्य आनंद अलग समझेगा - क्योंकि सबका परिवेश, भाषा, संस्कृति अलग है और लालन-पालन अलग - अलग तरीके से हुआ है
इसलिए हम शिक्षा में जब बात करते हैं कि "क्या समझ गए हो" - तो अक्सर छात्र कहते हैं - "जी गुरु जी" बावजूद इसके कि एक कक्षा में 50 बच्चे मतलब 50 भिन्न प्रकार की मानसिकता, संस्कृति और परिवेश है बावजूद इसके यदि कोई समझाने में सफल हो जाता है और बच्चे वही उत्तर पुस्तिका में लिखते हैं जो उस शिक्षक के दिमाग में था तो निश्चित ही शिक्षक की तारीफ तो है परंतु यह घातक भी है कि हमने 50 मेधावी छात्रों को एक डंडे से हांक दिया और भिन्नता को खत्म कर दिया और कहने की माफ़ी पर यह एक जैसा जवाब देना और किसी के कहे को ज्यों का त्यों समझकर जवाब दे देना कम से कम शिक्षा नही है और मेरे लिए शिक्षा का मतलब है comprehension यानि किसी बात को आत्मसात करके अपनी भाषा,अपने अनुभवों को जोड़कर नया रचना और बुनना है, हो सकता है मैं गलत हूँ पर अब यह गलती अच्छी लगती है भले ही नाकारा, निकम्मा कहलाऊँ कोई फर्क नही पड़ता, नोबल पुरस्कार की चाह तो नही कम से कम
बहरहाल, शिक्षकों को शिक्षक दिवस की बधाई - इस पीड़ा के साथ कि यदि आप सच में अपना काम सही अर्थों में करते तो 74 वर्षों में देश के यह हालात ना होते और इसमें मैं भी शामिल हूं बल्कि सबसे बड़ा गुनहगार मैं हूं - जिसने अपने जीवन के लगभग 10 वर्ष सीधे शिक्षण और शिक्षा के प्रबंधन में लगाएं हैं, 20 वर्ष शैक्षिक नवाचार और शोध में लगाए हैं इसलिए इतिहास में देश की इन परिस्थितियों के लिए मुझे जिम्मेदार माना जाए
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कवि किसी प्रांत की राजधानी में रहता था जहां कुएँ, बावड़ी और तालाब बहुतायत में थे
सरकार ने एक नाट्य दल को सांस्कृतिक आदान प्रदान के तहत फ्रांस भेजने का निर्णय लिया तो कवि के मन में उमंगे हिलोरे लेने लगी उसने नाट्य दल प्रमुख के चरण पकड़ लिए और बोला - " उस्ताद ले चलो भले ही भाला पकड़कर नंगा खड़ा कर देना स्टेज पर "
दल प्रमुख ने बंसी बजाई चैन से और जवाब दिया - " मेरा होलडॉल और ब्रीफकेस भी उठाना पड़ेगा तो बोल मंजूर "
" हाँ , उस्ताद मंजूर " कवि ख़ुश था
बस फ्रांस से लौटा कवि अब प्रातः स्मरणीय है और कविता की हत्या करके चैन से बंसी बजाता है इन दिनों, हर जगह लाइव में नजर आता है और पुरस्कार भी बटोरता है
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