पसीने से भरा मई – उम्मीद के सफ़र के लिए सुनो पुकार संदीप नाईक सूरज लगता है सातवें घोड़े पर सवार होकर भुनसार में ही निकल पड़ता है अपने रथ पर सवार होकर वो गर्मी से त्रस्त और पस्त लोगों को सुबह - सुबह ही आंखें मलने पर मजबूर कर देता है , लोगों की नींद जैसे तैसे अभी अभी लगी ही थी कि किसी जमींदार की ठसक में अकड़े सूरज बाबू खबर लेने पहुंच जाते है , हाथ में तीखा ताप है और चहूँ ओर तपिश अपनी रश्मि किरणों के कौड़े लगाते वे सबको अपने प्रकाश से चुंधियाते हुए उठा देते है लोग हैरान है कि क्या हुआ , अभी तो रातभर के संघर्ष के बाद हवा के ठंडे झोंको को तरसते हुए आंख लगी ही थी कि नींद उचट गई , अलसाते हुए आंखें मलकर उठ बैठते है और याद आता है कि पानी नही है , बगैर कुल्ला और ब्रश किये निकल पड़ते है हाथों में बाल्टी , ड्रम , हंडे , गगरे और वो सब उठाकर जो पानी समेट सकेगा - नल सूखे पड़े है , कभी टपकते है तो भीड़ लग जाती है , बोरिंग की जगह पर सुबह तीन बजे से लाईन लगी है - ऊंघते अनमने लोग सायकिल के कैरियर पर सिर टिकाए खड़े अपनी बारी की बाट जोह रहे हैं , दो ड्रम पानी इस समय रोज़गार , रोटी और बी...
The World I See Everyday & What I Think About It...