Skip to main content

Posts of III Week March Shrinidhi, Vidit and Khander , PHIA Foundation,

ये तरबूज, खरबूज, आम, शहतूत, रसीले रँग बिरंगी शरबत, कच्चे कैरी के पने, कैरी पुदीने की हरी कच्च चटनी, कच्ची मीठी इमली, बर्फ के गोले, लस्सी, मटका कुल्फ़ी और खूब ठंडी आईसक्रीम का मौसम है
बाजार सज रहें है , श्रीखंड खाने की चैत्र प्रतिपदा आ रही है गौरी पूजा के बाद चने की दाल को भीगोकर जो दाल बनाई जाती है पूजा में उसकी पदचाप ने मन पागल कर दिया है, सिर्फ चावल और खट्टी मीठी दाल या दही बड़े खाने को ही मन करें बजाय भारी गरिष्ठ भोजन के तो समझो आ गए दिन गर्मी के
शाम को घास और बगीचों की ओर रुख है और सूनी पटरियों के किनारों से डूबते सूरज को विदाई देने की बेला आ गई है छत पर पड़े हुए शीतलता को ओढ़ने की रात और भोर से आँख मलते सूरज की चुंधियाती रश्मि किरणों को हटाकर छाँव में भागने के दिन आ गए है
यह सब इसलिये कि सनद रहें गर्मियों में जितना क्षोभ, अवसाद, संताप और आलस है उतना ही मीठा, खट्टा और जीवन को वरदान देने वाले प्रलोभन भी है कि इन्हीं के सहारे गुजर जाएगा यह सब भी
***
अब लेखकों को सामने आकर अपनी प्रतिबद्धता और विचारधारा भी दिखाना होगी, बहुत छुप लिए कविता, कहानी, आलोचना और उपन्यास के पीछे और सरकारी नौकरी की डुगडुगी भी बहुत बजा ली तुम सबने - अपनी नौकरी, बीबी, बच्चे और पद, सत्ता सम्हालकर रखों और समाज से क्रांति की अपेक्षा करों, कहां से लाते हो बै इतना प्यारा माल
दब्बू, कायर और गुलाम किस्म की मानसिकता और देर रात महिलाओं से वाटस एप पर चुहल करने के बजाय यहां आकर अपनी चाल ढाल और रँग रूप प्रदर्शित करें अन्यथा उजबक और बौड़म तो बहुत है दुनिया में और तुम भी उसमे शामिल हो जाओ एक नकारा और डरपोक कौम के हिस्से बनकर
फिर 23 मई के बाद विश्लेषण करते और बकर करते कोई दिखा ना तो सड़क पर जनता लाएगी और लगाएगी फांसी उल्टा करके - याद रखना
याद है ना "समय लिखेगा उनके भी अपराध" वाली पँक्ति
***
पिछले माह एक संस्था में गया था कुछ फेलोशिप की बात करने, ये डूबती हुई संस्था थी जिसने "गरीबों में सबसे गरीबों" के साथ 10 साल काम करके संस्था को ही खा गए और अब किसी मुर्गे को बेवकूफ बनाकर अपनी सुख सुविधाएं बरकरार रखने के लिए दूसरों को जोखिम में डाल के यानी फेलोशिप बांटकर खुद ससुरे कम्फर्ट ज़ोन में ही रहना चाहते है - दिल्ली या भोपाल में - मक्कार कही के
उन लोगों ने विज्ञापन, लम्बा चौड़ा फॉर्म भरवाकर व्यक्तिगत रूप से बात करने बुलाया था , अरे जब सीनियर लोग नही पचते तो बुलाया क्यो , दो माह तक मेरे फॉर्म को पढ़कर समझ नही आया क्या कि 32 साल का अनुभव है , पर्याप्त पढ़ा लिखा हूँ और समझ भी ठीक ठाक है
फॉर्म में सारी जानकारी ले ली थी जो पूछी ना भी जानी थी, फिर पूरी प्रक्रिया से गुजरकर ही बुलाया था - क्यों भाई , अक्ल घास चरने गई थी क्या तुम सबकी , काम करने वाले चाहिए थे या तुम्हारी भड़ास झेलने वाले और उंगलियों पर नाचने वाले गुलाम
वहां जाने पर तीन चार पुराने सड़े गले सेवफल दिखें जो बदबू मारने लगे है अब, कुछ दिल्ली के कूड़ा घर थे जो हर कही नजर आ जाते हैं और हवाई यात्रा और मानदेय से ही ज़िंदगी चला रहे है
बात निकली तो पता चला कि ये कार्पोरेट्स का रुपया है, दलितों के साथ संविधान पर काम करवाना चाहते है और एक साल में रेडिकल चेंज कर लेना चाहते है , इस चयन समिति में कार्पोरेट्स के सरगना और गुलाम अजीम प्रेम का राज्य प्रमुख भी था और दो पुराने कामरेडी तत्व जो अब ठेठ पूंजीपति है, बाकी दो तीन जबरन की भीड़ थी कोरम पूर्ति के लिए
कहने लगें आप तो सीनियर हो, इससे क्या होगा राशि कम है, क्या रेडिकल बदलाव करेंगे और जब दलित मुद्दों की बात निकली तो कसम से इन लोगों की सांसें रुक गई और गंदी भाषा में कहूँ तो मुद्दे सुनकर नानी मर गई और ****** गले में आ गई
और जब बोला कि मैं काम कर रहा हूँ , साल के अंत में यह सम्भावित है तो सब चुप हो गए, कार्पोरेट्स के गुलाम और सवर्ण मानसिकता के इन पूंजीपतियों से क्या उत्थान की उम्मीद करेंगें
डेढ़ माह बाद रिग्रेट लेटर आया है कि बहुत मुश्किल है मेरे जैसों का चयन होना - अबे उल्लू के पठ्ठों , चूतियों तुम जैसे लोग जो जीवन भर टाटा बिड़ला और अब अजीम प्रेम का फेंका हुआ टुकड़ा खाकर नकली साम्यवाद की चाशनी में डूबे हो तो तुमसे क्या उम्मीद, तुम लोग साले दोस्ती के नाम पर भी कलंक हो और इंसान तो तुम हो ही नही, मुझे लगा था कि शायद तुममे कुछ मूल्य या तहजीब बची होगी पर तुम लोग तो और घटिया हो गए ज्यादा रुपया और ताकत पाकर - शर्मनाक
भोपाल के बीचोबीच दस बीस साल में टाटा बिड़ला से लेकर दुनियाभर के कार्पोरेट्स और ससुरालजन की संपत्ति हड़पकर बंगले बना लिए, गाड़ियां खड़ी कर ली और दलितों और गरीबों के भले के नाम पर ज्ञान का रायता फैला रहे हो और दलित उत्थान की बात करते हो तुमसे यही उम्मीद थी क्योंकि तुममें से 2,3 के साथ तो लंबे समय काम किया है इसलिए तुम्हारी ब्यूरोक्रेटिक सामंतवादी प्रवृत्तियों से वाकिफ हूँ भली भांति, तुम्हारी औकात दो कौड़ी की है यदि अभी लिख दिया ना कुछ ज्ञात अज्ञात सम्पत्ति के बारे में तो सब खुले आम नंगे हो जाओगे
अब ये बताओ कि जो किराया देने का वादा किया था वो डेढ़ माह भी नही दे पाएं हो अभी तक , उस टेबल पर 6 लोगों के लिए जो खाना रखा और बाद में फेंका गया होगा या हवाई यात्रा देकर भोपाल के थ्री स्टार में जिन लोगों को रोका गया था 3- 4 दिन उनसे तो हम गरीबों का किराया खर्च 1% ही होगा लगभग, दस बार फोन भी कर दिया और कह दिया पर बेशर्मों को फर्क नही पड़ता कोई
एनजीओ से बड़ा रुपया दबाने वाला कोई नही इनके प्राधिकारी, सीएजी से अपने को बड़ा मानने वाला एवं फर्जी काम को सही करने वाला भ्रष्ट अकाउंटेंट और हस्ताक्षर कर्ताओं से बड़ा लफ्फाज कोई नही , एक छोटी सी राशि को दबाकर बैठ जाते है
ख़ैर, कुल मिलाकर बात यह है कि कार्पोरेट्स के दल्ले और पूंजीपति अंदर जॉकी ऊपर से खादी के झब्बे पहनकर विदेशी सिगार उड़ाते हुए बकर करते है और साम्यवादी होने का ढोंग कर सुविधाएं भकोसते है
सावधान रहिये इन बकैतों से चुतियाओं और शिक्षित हरामखोरों का गिरोह है ये
किसी को नाम पते जानना समझना हो तो सम्पर्क करें निज तौर पर
***
म. गा. मेडिकल कॉलेज, सेवाग्राम, वर्धा, महाराष्ट्र के तीन युवा डाक्टर जो अब पढ़ाई कर सेवा - सह - प्रैक्टिस के लिए मैदान में उतर रहे है
अभी अभी एम बी बी एस पूरा किया है जोश, जज़्बे और हिम्मत से भरे हुए ये युवा डाक्टर गज्जब के डाक्टर है जो शहीद अस्पताल, छग से लेकर मेलघाट और गनियारी तक घूम आएँ है और कम्युनिटी मेडिसिन के साथ अपना हुनर दिखाने को अब तैयार हैं, इंटर्नशिप के लिए दूरस्थ आदिवासी इलाकों के अस्पतालों में जा रहें है
इसके पहले कल देवास में घर पर मिलने आये मुझसे और हम सबने लम्बी बात की और देवास के आकर्षण टेकड़ी पर हम घूमें
विदित इंदौर से, श्रीनिधि पूना से और मोहम्मद खांडेर त्रिचनापल्ली से है
फेसबुक ने दुनिया के बेहतरीन लोग दिए है तोहफ़े में, इन तीनों से गत वर्ष विनोबा आश्रम, पवनार में मुलाकात हुई थी मात्र 20 मिनिट और हम मित्र बन गए थे, मैंने कहा था कि ये पढ़ाई पूरी होने के बाद मिलने आना, और ये भी इतनी दूर मिलने आये - कौतुक हुआ मुझे - कितने संवेदनशील लोग होते है - शुक्रिया बच्चों
बहुत सुकूनभरा दिन बीता, ख़ुश रहो प्यारे और होनहार बच्चों - स्वास्थ्य का क्षेत्र बहुत अच्छा भी है और गंदा भी, बस अपनी अच्छाई बनाएं रखों, खूब सीखो और फिर पीजी करने जाओ
देवास में जल्दी आने का वादा याद रखना

Image may contain: 4 people, including Shrinidhi Datar, people smiling, people standing, outdoor and close-up

एक शहर में जब सूने आसमान में चाँद शबाब पर आता है तो जीवन को रिक्त कर जाता है
अपने शहर की सबसे ऊंची जगह से चाँद को कुछ यूं कैद किया तो जमीन से आसमान तक सब कुछ बुझ गया
खामोश रहकर जज्ब करता रहा और रात हो गई - पुकारता रहा पर सदा ना आई
जीवन लुनेटिक हो गया हो मानो !

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...