मनोज पवार- मालवा का रंगीन चितेरा कलाकार
देवास संस्कृति का एक बड़ा केंद्र रहा है और यहां के लोग जिसे प्यार करते हैं उसे पूजते हैं उसके बंधुआ बन जाते हैं और अपने आशीष से हमेशा नवाजते हैं. होली के अवसर पर चौराहे चौराहे पर होलिका दहन के साथ रंगोली बनाने का बड़ा रिवाज है एक जमाने में स्व. प्रोफेसर अफजल, रमेश राठौर आदि जैसे लोग यह काम किया करते थे कालांतर में धीरे-धीरे यह परंपरा सिमट गई और गिने चुने लोग ही इस काम को करने लगे. यूं तो देवास में विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले भी कम नहीं हैं जो लकड़ी का बुरादा इस्तेमाल कर पानी पर फेंक देते है, पानी पर रंगोली बनाने की बात करते हैं और उन्हें विश्व रिकॉर्ड बनाने के खेल में महारत भी हासिल है परंतु उसका वह मजा नहीं है जो वास्तव में सड़क पर बड़ी सी रंगोली बनाने का होता है.
मनोज पवार मूल रूप से चित्रकला के अध्येता है और वरिष्ठ चित्रकार हैं देश में इनकी अनेक जगहों पर प्रदर्शनी लग चुकी हैं, पेशे से शासकीय सेवा में हैं और रंगोली बनाने का उनका जुनून होली आने के बहुत पहले से शुरू हो जाता है, और असली काम 10 दिन पहले से शुरू हो जाता है. गत कई वर्षों से वह लगातार देवास के एकमात्र कलाकार बने हुए हैं जो इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं इस वर्ष भी उनकी रंगोली कल का सबसे बड़ा उत्सव था, जहां एक और उन्होंने मांडव के जहाज महल को बहुत बारीकी से उकेरा - वही श्रीदेवी से लेकर कैडबरी चोकलेट को भी बनाया. एब बच्चे को आकाश में निहारते हुए बताना उनकी सामाजिक चिंता का भी द्योतक है जहां वे कह रहे है कि आज हमारे बच्चे आसमान को देखना ही भूल गए है और बचपन से ही मोबाइल में आँखें गड़ाकर प्रकृति, चाँद सितारों को देखना ही भूल गए है. दो नायिकाओं के साथ इस बार वे रंगोली में उपस्थित है जहां एक आत्म्मुग्ध है वही दूसरी की चुनर इतनी झिलमिल है कि रंगोली के रंगों से देखने में आपको आश्चर्य लग सकता है. अंग्रेज महिला के गोर रंग को बारीकी से देखना हो और बिल्ली के बालों को रेशा रेशा देखना भी बहुत रोमांचक है. इस बार उन्होंने स्थानीय सामग्री से एक समुद्र तट को बनाकर भी एक नया सफल प्रयोग किया जो बेहद आकर्षक और प्रेरक है.
मनोज का काम देखने शहर ही नहीं वरन आसपास के क्षेत्र से लोग बड़ी तादाद में जुटते है और सराहते है, उतनी ही विनम्रता से वे सबसे मिलते है और होली की मुबारकबाद भी देते है. कल उन्होंने मुझे अपने साथ पूरी रंगोलियाँ दिखाई. अपने बचपन के साथी को इस तरह प्रतिबद्धता से हर वर्ष यह श्रमसाध्य करते देखना कौतुक ही नहीं बल्कि प्रशंसा का भी काम है. हम लोग सन 1970 से सखा है और मै उनका बड़ा मुरीद हूँ.
मुझे लगता है कि इस शहर में कला संस्कृति के नाम पर काफी सफल प्रयोग हुए है परन्तु नए युवा इस क्षेत्र में अभी नहीं दिख रहें जो इस काम को आगे ले जा सकें अस्तु आवश्यकता है कि अब नए लोगों को इसमे थोड़ा ध्यान देकर इस हुनर को सीखें और इस समृद्ध परम्परा को आगे बढायें इस काम में निश्चित ही मनोज पवार, राजेश जोशी, जय प्रकाश चौहान, डाक्टर सोनाली पिठवे, आदि वरिष्ठ जन उन्हें मार्गदर्शन देंगे इसमें कोई शक नहीं. बहरहाल मनोज का यश और फैलें और वे पूरी तन्मयता से नया नित सृजन करें यही शुभेच्छाएं है.
यकीन मानिए ये सब रंगोली से बनें है और यदि आप इन्हें देखना चाहते है तो यह प्रदर्शनी आज और भर है देवास में.
कल ब्रजेश भाई और भाभी से मिलना भी बहुत सुखद था इस समागम में बहुत ही अच्छी शाम बीती. अग्रज अमिताभ जी को मिस कर रहा था यहाँ कल शाम.
आप सबको होली की अशेष शुभकामनाएं.
होली 1 मार्च 2018
Comments