Shashi Bhooshan केंद्रीय विद्यालय में हिंदी पढ़ाते है। मेधावी है और बहुत करीबी मित्र और अनुज है उन्हें तब से जानता हूँ जब वो इंदौर में एम ए कर रहे थे फिर नौकरी, उत्तर पूर्व के स्कूल में काम, उनका लिखा , कहानियाँ और त्वरित की गई टिप्पणियाँ आदि का मुरीद हूँ। रीवा विश्वविद्यालय के होनहार छात्र है और अब हिंदी में स्थापित युवा चेहरा। मेरी आदत है कि लेखक को छेड़ा जाए और पूछा जाए कि पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है। यह सबको पूछता हूँ। पर शशि ने एक अलग संदर्भ में बेहद संश्लिष्ट और घ ोषणापत्र की तरह जवाब दिया है जिसे पढ़ा जाना चाहिए। एक शिक्षक मैं भी रहा और आजीवन रहूंगा क्योकि ये संस्कार और पेशा मुझे माँ से मिला था। सारे संघर्षों को याद करता हूँ तो लगता है कि यही वो जगह थी जहां मैं संतुष्ट था और मनोनुकूल कार्य कर पाता था। एक शिक्षक को सतही तौर पर ही नही विचार और प्रतिबद्धता के स्तर पर भी स्पष्ट होने की जरूरत है और यह सिर्फ काल्पनिक नही घोषित तौर पर व्यवहार में भी परिलक्षित हो तो ज्यादा फायदेमंद होगा दुर्भाग्य से हम शिक्षकों ने गत 70 सालों में एक नाकारा, उज्जड, भ्रष्ट और हरामखो...
The World I See Everyday & What I Think About It...