इमारतों का अपना दर्द होता है ठीक किसी मनुष्य की तरह कि कोई आये, दुलारे, सुनें और फिर आहिस्ते से पुचकार कर चल दें ! पर ठहरना वही है सदा के लिए, जड़ हो जाना है और एक अवचेतन में चले जाना है ताकि कही से कुछ और फिर ना दोहराया जाये।
यह जीवन, यह सांस का सफर, यह संताप, यह शुष्कता और इस सबमें एक देह का सफर और एक यातना की त्रासदी भी शायद इमारत के पुराने आख्यान की तरह है।
इन इमारतों से गुजरना किसी खोखली देह से सटाक से गुजर जाने जैसा है यायावर की तरह और फिर बचे रहना है किसी मंजर की तरह।
(लक्ष्मीपुर, जिला पन्ना, मप्र का किला जिसे पन्ना के
पूर्व महाराज लोकेंद्र सिंह के पिता ने दो सौ साल पहले बनवाया था, बाद में बुन्देलखण्ड के प्रसिद्ध डाकू मूरत सिंह को सुधारने के लिए इस किले को खुली जेल में तब्दील कर दिया गया था। आज यह किला अपने वैभव के साथ खड़ा तो है पर खामोश है। सरकारी चौकीदार मुड़ी सिंह रैकवार ने बताया कि कुछ करिये साहब लोग सब उखाड़ कर ले जा रहे है यहां से, मैं क्या करूँ ?)
#MPTourism ध्यान दें।
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छतरपुर - मप्र, की बात है, एक आदिवासी महिला का बच्चा कुपोषित था वह पोषण पुनर्वास केंद्र लेकर आई, डाक्टरों ने कहा कि कुछ नही हो सकता और इसे ग्वालियर ले जाओ। डाक्टर ने भगा दिया और अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली, बच्चे की हालत बिगड़ी तो फिर एक संस्था की मदद से पुनः उस माँ को समझाया कि बच्चे को पोषण पुनर्वास केंद्र ले आये, बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद वह तैयार हुई और वह दोबारा बच्चे को पोषण पुनर्वास केंद्र लेकर आई।
बड़ी मुश्किल से पांच सौ के दो नोट उधार लेकर आई थी। जब बच्चा भर्ती था तो केंद्र में किसी ने उससे कहा कि नोट बंद हो गए है, कर्ज में डूबी में वह महिला घबरा गई और बगैर किसी को बताए वह रात में बच्चे को लेकर चुपचाप गाँव चली गई। अगले दिन वह बच्चा इलाज के अभाव में मर गया।
नोट बंदी का असर सिर्फ शहरों, एटीएम और नगदी तक ही नही पड़ा है - बहुत गहरे तक इसने नुकसान किया है देश में, ये कहानियां कही नही दर्ज होंगी क्योकि ये भुगतने और बर्दाश्त करने वाले बड़बोले और वाचाल नही है, वे चौराहों पर रो नही सकते !!!
ये अबोध बच्चे किसी की नजर में नही आएंगे क्योकि एक तो वे मूक है, दूसरा दलित आदिवासी है, तीसरा इनका कोई माई बाप नही है।
क्या आपके पास कोई ऐसी कहानियां है, क्या आपको ये परेशान करती है, क्या आपको इसमें कोई राज -समाज और सत्ता का चरित्र नजर आता है, क्या आपको इसमें मेरा मोदी विरोध नजर आता है, क्या आपको दिल - दिमाग के किसी भी कोने में कुछ महसूस होता है, क्या आपके बच्चे को आपने हाल में जेब खर्च के लिए दस बीस या सौ रुपये दिए तो कुछ ऐसे लोगों या वंचित समुदाय के लिए ख्याल आया ? हाँ या नहीं ? तो क्या आगे करना है अपने इस महान देश का ?
देश सच में बदल गया है।
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