लेपटॉप बाबा के आश्रम "कबीर कुल" में पत्रकार Navodit Saktawat
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भाषा और समझ के स्तर पर पत्रकार होना और व्यक्ति, भाषा, दुनियावी समझ के साथ धर्म, राजनीति और व्यवहार के स्तर पर पत्रकार होना एकदम भिन्न है। संगीत की अदभुत जानकारी, माइकल जैक्सन से लेकर कर्कश कुमार उर्फ किशोर कुमार , लता मंगेशकर और बाकी सबके बारे में तर्क और विश्लेषण करने वाले नवोदित इन दिनों इंदौर में काम कर रहे है। जीवन की दूसरी नौकरी करने वाले इस युवा की दुनिया, साहित्य और मीडिया को लेकर गहरी पैठ और समझ है। वे कहते है कि बार बार नौकरी बदलना भी एक तरह का प्रोफेशनल प्रोसटीट्यूशन है इसलिए बारह साल भास्कर में काम किया और अब नईदुनिया जागरण में संतुलन बनाकर नौकरी कर रहे है।
पिछले तीन चार वर्षों से इस आभासी दुनिया में दोस्ती थी पर मिलना आज हुआ जब वो घर आये और बहुत तसल्ली से देर तक अनुभव बाँटते रहे बतियाते रहे। राजनीति पर आकर बातचीत ख़त्म तो नही पर आगे मिलने और विस्तृत विश्लेषण के वादे पर रुकी। जाते समय मेरे कमरे की तारीफ़ इतनी की और फोटो खींचे कि मैं लगभग शर्मिंदा हो गया और इतना ही कहा कि अपनी जरूरतों का सामान भर है और जैसे तैसे सफाई कर लेता हूँ कभी खुद कभी किसी की मदद से बाकि तो कुछ लक्ज़री नही है। पर नवोदित को यह "कबीर कुल" अच्छा लगा, मैंने भी कह दिया जब मन करें यहां आ जाना यह जगह सबके लिए है और आओगे तो अच्छा लगेगा। आज हम दोनों ने अपने कार्य क्षेत्र से लेकर निजी जीवन के दुख दर्द भी बांटे तो समझ आया कि हम सब लोग बहुत संघर्ष कर आये है और शायद हम अब सोचते है तो विश्वास भी नही होता कि ये सब दास्ताँ इतनी पीड़ादायी थी और फिर भी हम कर गुजरे।
शुक्रिया नवोदित, जो तुमने जो कहा था याद रहेगा कि हम कमजोर के साथ पूरी विनम्रता के साथ है हमेशा, पर अक्खड़, गंवार, चतुर और धूर्त को जब तक ध्वस्त ना कर देंगे तब तक चैन से नही रहेंगे। राजनीति में लोग कभी अच्छे हो ही नही सकते - चाहें ये हो या वो और हमें दो खराब में से थोड़े बेहतर को चुनना है, बस - बाकि सबका कोई अर्थ नही है, इसलिए हम जहां है वही से उसके साथ खड़े हो जो उपेक्षित और दुखियारा है और सबके जुल्मों का मारा है।
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