50 % काली कमाई को आयकर विभाग में जमा करो सुबह 11 बजे जाकर, प्रमाणपत्र लो
250 रूपये में मॉल के पी वी आर में राष्ट्रगीत सुनकर "सैयाजी से ब्रेक अप कर लिया" " मैं कमली हो गयी यार" "जग घूमिया थारे जैसा ना कोई" टाइप गाने का लुत्फ़ उठाओ डेढ़ बजे
घर लौटो दो चार कुत्तों को कुचलते हुए और लाईंन में खड़े टुच्चे नागरिकों को देखते हुए शाम को
सच कहता हूँ एकदम राष्ट्रभक्त टाइप फीलिंग आती है भगवान कसम रात को
थ्री चीयर्स फॉर सरकार राज !!!
29/XI/16
आमात्य जी
जी महामात्य ?
ये काला धन 50-50 तर्ज पर इकठ्ठा कर रहे हो क्या राम मंदिर बनवाया जा रहा है ?
महामात्य, सीमा में रहे और चुपचाप अपना बुढ़ापा काटें, फ़ालतू बात ना करें आप लोग, अंदर जाईये, पूज्य अम्बानी जी और अडानी जी उष्ण पेय पर अर्थ और अर्थ नीति की चर्चा करने आते ही होंगे, मुझे राजधर्म का पालन करने दें।
रघुकुल रीत, राम और एक वचन की बात करने वाले इतनी बार रोज बदलेंगे कि खुद को भी याद नही रहता कि क्या कहा था थोड़ी देर पहले। और यह 50 - 50 का बंटवारा किसी ठग या दलाल से कम है क्या और एक लोक कल्याणकारी राज्य में कितनी बेशर्मी से और किस मुंह से यह लागू कर रहे है ? यार संविधान खत्म कर दो साला टंटा ही खत्म, हम जैसे लोग मान लेंगे कि अबकि बार धंधेबाज सरकार। वैसे भी देश बेच ही दिया है अपने दामादों को, रॉबर्ट वाड्रा ने तो एनसीआर और हरियाना में जमीन हथियाई थी आप तो देश ले बैठे हो माई बाप !!!
हम अपने किशोरों, युवाओं और शोधार्थियों को इस तरह की चार सौ बीसी करके क्या शिक्षा दे रहे है, क्या मूल्य स्थापित कर रहे है। मनमोहन सिंह ने तो खुलेपन की नीति में देश का सोना गिरवी रख दिया था और आज हमारी चुनी हुई सरकार और हमने देश के मूल्य, ईमानदारी और न्याय बेच दिया। बार बार राम और रघुकुल रीत में वचन की दुहाई देने वाले रोज़ बदले ही नही वरन् धूर्तता से देश में ऐसी परम्परा डाल दी कि अब हम कभी अपने किशोरों, युवा और बच्चों को नैतिकता और ईमानदारी की बात नही कर पाएंगे।
हम हमेशा से व्यापारियों को गलियाते आये है पर सरकार से बड़ा व्यापारी कोई नही हो सकता। सिर्फ इस सरकार की बात नही इतिहास उठाकर देख लें। इन्होंने सिर्फ खुलकर दिखा दिया कि ये काले धन को सरकारी तरीक़े से सफ़ेद करके देंगे क्योकि कोई और फायदा उठाये इससे बेहतर है कि खुद ही धंधा करें और कमाई करें, और पूरी बेशर्मी से अपने इरादे जाहिर कर दिए है और अब क्रियान्वित भी कर रहे है। बस यही बात इन्हें भारत के इतिहास में सबसे धूर्त सरकार कहा जा सकता है।
50% in 50 DAYS
Good Going Sarkar Raj
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वादे भूला दे कसम तोड़ दे वो
हालत पे अपनी हमे छोड़ दे वो
*नोट बदलने का काम ठीक से इसलिए नहीं हो पा रहा है, क्योंकि इसमें अध्यापकों को नहीं लगाया गया है....*
चुनाव,
जनगणना,
पशुगणना,
पेड़गणना,
मकानगणना,
पल्स पोलियो,
नसबंदी.....
जैसे हर राष्ट्रीय अभियानों में हमारी सेवा सरकार ने ली है लेकिन इस बार हमें याद ही नहीं किया गया...
*बेइज्ज़ती टाइप फीलिंग आ रही है....*
शिक्षक/अध्यापक/ गुरूजी संघ
भक्तों को अब विपश्यना में जाना चाहिए ताकि वे "सेल्फ हीलिंग" से थोड़े ठीक हो सकें, कुतर्कों की सीमा और देशप्रेम में इतने बड़े वाले हो गए है कि उन्हें अपने खुद के अस्तित्व में होने, इंसान होने या परिवार या वृहद समुदाय का हिस्सा होने का भी भान नही है।
ईश्वर इन सब मृतात्माओं को गहरी शान्ति दें ।
ॐ शान्ति !!!
22 जुलाई को गुम हुए विमान का क्या हुआ ?
देश के जे एन यू में अध्ययनरत युवा नजीब का क्या हुआ?
पेटीएम करूँ ?
पिछले डेढ़ माह से सफर में हूँ और याद नही पड़ता कि किसी भी जगह ढंग से लगातार नेट कवरेज तो दूर, मोबाइल का कवरेज भी मिला हो। दूरस्थ इलाकों में सुधीर चौधरी और रजत शर्मा को देखा नही तो मनोरंजन से भी वंचित रहा और देश गान भी नही सुना
पे टी एम करो
क्या खाक नेट बैंकिंग करूँ, जाते समय जो पांच कड़क सौ के पत्ते मित्र Chandrakant Goure ने इंदौर में पकड़ाये थे उसे अपने खाते से जोड़ भी नही पाया हूँ क्योकि नेट नही, स्पीड नही और देश बदल रहा है, भक्त कहते है !
जियो क्यों बेचा , अब समझे ठाकुर
घर से, दूकान से, परिवार से, देश से और अब उस इमारत से जिसकी देहरी को चूमा था !
कब तक भागोगे ठाकुर ?
(सन् 2019 में निर्मित होने वाली सुपर फ्लॉप फिल्म शोले का डायलॉग)
जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई
आप क्यों रोये
किसी देश में एक जमींदार था जो अपनी जहागिरदारी में किसी मुश्किल के आने पर रो देता था और इस तरह वह अपनी प्रजा की नजरों में जमींदारी अगली बारी के लिए सेट कर लेता था।
(पाषाण युग के सिंधु घाटी सभ्यता से निकली मुग़ल कालीन कथा)
जब अकबर की प्रजा राजमुद्रा बन्द होने से दुखी हुई और त्राहि त्राहि मची तो अकबर ने पूछा अपने सभी नवरत्न और बीरबल से तो सबने कहा राजन एक सर्वे करवा लो, अकबर तैयार हो गया।
बीरबल ने ऐसी प्रश्नावली बनाई कि उसके जवाब भरने से अकबर भी खुश, प्रजा भी खुश और नवरत्न भी खुश, क्योकि जवाब अकबर के पक्ष में ही थे और कोई नकारात्मक जवाब दे ही नही सकता था। बस दुखी तो सिर्फ मेहनतकश थे जो दिन में मजदूरी के बदले राजकोष के सामने खड़े असहाय थे और घर में रोज मौत देख रहे थे।
(पाषाण युग में सिंधु घाटी से निकले देश में मुगल बादशाहों की परती परिकथा)
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