Skip to main content

मध्य प्रदेश स्थापना दिवस 1 नवम्बर, लोकतंत्र और 1 नवम्बर की पोस्ट्स



यह आस्थाओं, विश्वासों और मूल्यों के चूक जाने का विक्षप्त समय है जहां लोकतंत्र में मुझे अपने ही मत और मत देने के अधिकार पर अब शक शुबहा होने लगा है और मैं कुछ बेहतर या किसी से थोड़ा ठीक मानकर सरकार को चिन्हित करता हूँ, लोग चुनकर आते है, संविधान की कसम खाते है जो कहता है कि जाति, धर्म, उम्र और लिंग के आधार पर भेदभाव रहित समता मूलक समाज के निर्माण के लिए जनता के चुने प्रतिनिधि कार्य करेंगे और वैज्ञानिक चेतना के प्रसार में संविधान के दायरे में रहकर यथा कार्य, न्याय पालिका और विधायिका को सशक्त करने ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

पर अब मेरी जब से यह समझ बनी है कि सरकार, संविधान और लोक क्या है, पंथ निरपेक्षता क्या है - तब से सारी प्रक्रियाओं पर से विश्वास उठ सा गया है। एक ओर मेरा देश है जो करोड़ो साल पुराना सुसंस्कृत और ज्ञान विज्ञान से भरपूर है वही कोलम्बस के द्वारा खोजा गया अमेरिका है या दूसरे छोटे देश है जहां लोकतंत्र में इतना खुलापन, पारदर्शिता और धैर्य है कि हरेक नागरिक को कम से कम अपनी बात कहने सुनने की पूरी आजादी है।
चुनाव में हमने नोटा का भी प्रयोग करके देखा, राइट टू कॉल बेक का भी विकल्प खोजा - परंतु हम आगे बढ़ नही पाये है, यह बेहद दुखद है।
अगली बार मुझे किसी भी ऐसी प्रक्रिया में जाने से पहले सोचना भी होगा और शायद मैं अपने आपको हर जगह से विथड्रा भी कर लूं क्योकि नक्कारखाने में तूती की आवाज का अब कोई अर्थ भी नही है। बहुत धीर गम्भीर होकर यह बात मैं अपने आपको समझाने की कोशिश कर रहा हूँ, देखिये कहाँ तक हो पाता है।

*****
दरअसल में पार्टियों के अन्दर इतना ज्यादा प्रतिस्पर्धी माहौल हो गया है कि बने रहने के लिए, आने वाले चुनावों में अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए हरेक को जो प्रयास करना पड़ रहे है वह बेहद चिंतनीय है और प्रमोशन तो दूर की बात यही पद और प्रतिष्ठा भी (यदि अगली बार सरकार बनती है तो) बनी रहें तो भी बड़ी बात होगी. इस तारतम्य में सभी के लिए अपने आका और पार्टी सुप्रीमो के सामने किसी भी तरह से बने रहना है और इसके लिए आज जब सत्ता हाथ में है, तन्त्र और ताकत हाथ में है तो वे कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है और कहते है ना "कुछ भी करेगा" और इस खेल को हम लोकतंत्र के अदने से पिछलग्गू लोग देश के कमोबेश हर क्षेत्र में, राज्य में और पार्टी में देख रहे है, दुर्भाग्य तो सिर्फ इतना है कि लोकतंत्र में चुनने वाले इसके लिए बलि के बकरे बन रहे है नीचे से ऊपर तक और दाए से बाए तक बाकी तो सब ठीक ही है और सब चलता है. आज एक पार्टी और नेता को दूसरी पार्टी या नेता से उतना खतरा नहीं है जितना उसे अपने अन्दर के बेहद करीबी, विश्वासु - जिज्ञासु और निष्ठावान लोगों से है इसलिए वे बेहद शातिराना तरीके से सारे ताने बाने बुन रहे है. आप मुलायम -अखिलेश से लेकर तमाम तरह के नेताओं के आचार - व्यवहार और इन दिनों का आचरण देखकर इस सरल सी बात को समझ सकते है और इसके बाद अपना स्यापा बंद कर सकते है. बहुत सारे मित्र कह रहे है कि ताजा घटनाओं पर कुछ लिखो कुछ लिखो पर मेरी अल्प बुद्धि में तो यही समझ आया, सो लिख दिया बाकी आप लोग ज्ञानी ध्यानी है.

*****
"दो आँखे बारह हाथ"
क्या फिल्म है, गजब ....
और वो प्रार्थना जो फ़िल्मी इतिहास में गाई गयी तीन श्रेष्ठ प्रार्थनाओं में से एक है --------

हे मालिक तेरे बन्दे हम ऐसे हो हमारे करम
बाकी दो प्रार्थनाएं है ......
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें (गुड्डी फिल्म से)
इतनी शक्ति हमे देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना (अंकुश)

*****

1 नवम्बर मप्र का स्थापना दिवस है। यशस्वी मन्त्रीमण्डल, यशस्वी राज्यपाल, यशस्वी अधिकारी और यशस्वी मीडिया के पैरोकारों को दिल से बधाई कि सच में इन सबके श्रम से हमारा एम पी अजब है सबसे गजब है।
दशहरे पर एक बहादुर महिला आय ए एस ने खुलेआम दिन दहाड़े खण्डवा में ही - जो सिमी का गढ़ है, में बंदूकें दागी थी और सरकारी शस्त्रागार का पूजन कायम करके शानदार परंपरा को जारी रखा और जीर्णोद्धार किया, और दीपावली पर एक आय पी एस के कुशल नेतृत्व में कल असुरों का संहार किया।
प्रदेश के नव नियुक्त मुख्य सचिव भी आज चार्ज लेंगे विधिवत और उनसे हम सब गरीब लोगों और प्रजाजनों की आशा है कि वे इसी तरह से ब्यूरोक्रेसी को चुस्त दुरुस्त और तंदुरस्त रखें।

आने वाले 2018 के चुनाव में हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री का ताज बना रहें और वे उत्तरोत्तर प्रगति करें। मप्र के निवासी जो प्रदेश, देश और विदेश में फैले है, उन सभी इन्वेस्टर्स को जो सालों से यहां इन्वेस्ट करके प्रदेश का भाग्य संवार दिए है को और आप सबको जो हमारे हितैषी है, लख लख बधाईयां और अशेष शुभकामनाएं।
आमीन !

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही