मुझे याद है जब मैं प्राचार्य था तो एक अधिकारी मेरे पास आये वे बोले कि मेरे बच्चों के छात्रवृत्ति के फ़ार्म फॉरवर्ड कर दो , तो मैंने कहा सर ये तो अनुसूचित जाति के है और आप तो सवर्ण है , बोले नही वो तो मैंने सरनेम बदल दिया है, असल में तो मैं चमार हूँ। मैंने कहा उसमे कोई गलत नही पर ये सवर्ण होने का नाटक क्यों तो बोले फर्क पड़ता है। एस डी एम रहते हुए सवर्ण बनकर देवास में खूब तथाकथित यश कमाया ब्राह्मण समाज की अध्यक्षता करते रहे, सम्मेलन में ज्ञान बाँटते रहें और जब विभागीय डी पी सी क ी बात आई तो अपना चमार होना स्वीकार करके आय ए एस बन गए। पूरा ब्राह्मण समुदाय हैरान था, बाद में वे प्रमोट होकर कलेक्टर बन गए , यहाँ वहाँ कलेक्टर बने और खूब रुपया कमाया, अपने नालायक बच्चों को सेट करवाया , खूब चांटे भी खाये जहां गए वहां सार्वजनिक रूप से लोगों ने जन सुनवाइयों में पीटा और घसीटा। बाद में शिकायतों के अम्बार के बाद इन्हें भोपाल में बुला लिया पर जो सवर्णवादी ठसक का दिखावा करते थे वो गजब की थी साले सवर्ण शर्मा जाए !!! बहरहाल ये हकीकत है, दलित को दलित कहने में शर्म आती है और ये चयनित अधिकारी सवर्णों ...
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