निष्कर्ष
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याद है मुझे अच्छे से
वो जुलाई दो हजार आठ का
छब्बीसवां दिन था और
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याद है मुझे अच्छे से
वो जुलाई दो हजार आठ का
छब्बीसवां दिन था और
भोपाल से सीधा पहुंचा था अस्पताल में,
माँ के आप्रेशन का बारहवां दिन था
भाई ने बताया कि आज सारे दिन बोलती रही है माँ,
बहनों को याद किया और अपने नौकरी की पहली
हेड मास्टरनी को भी, खूब बोली है सबसे आज
माँ के आप्रेशन का बारहवां दिन था
भाई ने बताया कि आज सारे दिन बोलती रही है माँ,
बहनों को याद किया और अपने नौकरी की पहली
हेड मास्टरनी को भी, खूब बोली है सबसे आज
और घर जाने की भी, जिद की है कि मरना घर ही है.
पुरी शाम और रात बोलती रही मुझसे
और अचानक भोर में पांच बजे मशीनो पर
थम गयी धडकनें माँ की और मै देखता रहा
पुरी शाम और रात बोलती रही मुझसे
और अचानक भोर में पांच बजे मशीनो पर
थम गयी धडकनें माँ की और मै देखता रहा
उन बेजान मशीनों को, जो एक इंसान में प्राण डाल रही थी,
ख़त्म हो गयी थी दुनिया मेरी सत्ताईस तारीख को माँ के बिना,
ठीक छह बरसो और दो माह बाद
भाई को भी अस्पताल में रखा था
शुरू में तो बेहोश था पर चौथे दिन बोलने लगा था
ठीक छह बरसो और दो माह बाद
भाई को भी अस्पताल में रखा था
शुरू में तो बेहोश था पर चौथे दिन बोलने लगा था
बड़ी जांचों और इलाज के बाद,
खूब बोला, इतना कि ना जाने किस किसको याद किया
खूब बोला, इतना कि ना जाने किस किसको याद किया
उस दिन उसने, सारे आईसीयु में खुशी की लहर थी,
सारे रिश्तेदारों से बोला, बेटे को दी हिदायत,
सारे रिश्तेदारों से बोला, बेटे को दी हिदायत,
जीवन भर स्वस्थ रहने की, पत्नी को समझाया
और मुझे देने लगा निर्देश कि थोड़ा स्वाभाव बदलूँ
नौकरी करूँ ढंग से अपने सिद्धांतों को ना त्यागूँ
आईसीयू के बाहर आकर मैंने बड़े भाई से जब कहा
तो हम दोनों को मौत दिखने लगी थी
उन दिनों जब माँ बोली थी तो भाई ने माँ को एक दिए की उपमा दी थी
कि बुझने के पहले बहुत तेजी से भभकता है दिया
आज फिर अन्दर छोटा भाई बोल रहा था
और हम दोनों बड़े होकर भी अशांत थे बेहद
फिर आखिर वो शांत हो गया बेहोश सा
तीन दिन बाद उठा वो नीम अँधेरे से
आईसीयू के बाहर आकर मैंने बड़े भाई से जब कहा
तो हम दोनों को मौत दिखने लगी थी
उन दिनों जब माँ बोली थी तो भाई ने माँ को एक दिए की उपमा दी थी
कि बुझने के पहले बहुत तेजी से भभकता है दिया
आज फिर अन्दर छोटा भाई बोल रहा था
और हम दोनों बड़े होकर भी अशांत थे बेहद
फिर आखिर वो शांत हो गया बेहोश सा
तीन दिन बाद उठा वो नीम अँधेरे से
फिर बोला वो उस डायलेसिस मशीन पर
खूब बोला, यहाँ तक कि डाक्टर को भी झिड़क दिया
खूब बोला, यहाँ तक कि डाक्टर को भी झिड़क दिया
कि हटा यार हाथ गले से क्या जान लेगा?
हम डरते रहे और सहम गए थे बुरी तरह से
हम डरते रहे और सहम गए थे बुरी तरह से
हम दोनों बड़े सशंकित से देख रहे थे उसे बड़े सदमे से मानो
इंतज़ार कर रहे हो कि मौत कब आ जाए और ले जाए
आहट तेज हो रही थी, मौत आ रही थी दबे पाँव
भाई की आवाज जैसे जैसे तेज़ हो रही थी
हमारी बेचैनी बढ़ रही थी, मौत का रूप सामने था
और फिर अचानक थम गयी साँसे
वही हुआ जिसका डर था, माँ की तरह चुप था भाई
सदा के लिए खामोश था और आँखे खोज रही थी
व्योम में खुली आँखे और कुछ कहने से रह गया
खुला मुंह मेरे लिए कई सारे सवाल छोड़ गया था
एक दिया और बूझ गया था तेज भभक कर
एक सीख हमने माँ और भाई की मौत से ली है
ज्यादा बोलना अपनी मौत को बुलावा देना है।
इंतज़ार कर रहे हो कि मौत कब आ जाए और ले जाए
आहट तेज हो रही थी, मौत आ रही थी दबे पाँव
भाई की आवाज जैसे जैसे तेज़ हो रही थी
हमारी बेचैनी बढ़ रही थी, मौत का रूप सामने था
और फिर अचानक थम गयी साँसे
वही हुआ जिसका डर था, माँ की तरह चुप था भाई
सदा के लिए खामोश था और आँखे खोज रही थी
व्योम में खुली आँखे और कुछ कहने से रह गया
खुला मुंह मेरे लिए कई सारे सवाल छोड़ गया था
एक दिया और बूझ गया था तेज भभक कर
एक सीख हमने माँ और भाई की मौत से ली है
ज्यादा बोलना अपनी मौत को बुलावा देना है।
"माँ और भाई को याद करते हुए"
- संदीप नाईक
- संदीप नाईक
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Comments
pls wrod verification hta len