उसे मालूम नहीं कि काबुल में घोडें नहीं होते, वह चालाक है, सारे गधों को इकठ्ठा करके जोत दिया और अब खुद घोड़ा बना बैठा है
अगर सच में घोड़े श्रेष्ठ होते तो जंगल छोड़कर नहीं आते या दुनियाभर में लोग घोड़ों के अभ्यारण्य बना रहे होते, गधों को कोई मुगालते नहीं- वे जंगल में भी खुश है और आपकी हम्माली करते हुए भी या पहाड़ पर टट्टू के रूप में चढते हुए भी या केदारनाथ के स्खलन में दबकर मरते हुए भी. सवाल यह है कि आखिर में बचेगा कौन??? तो सुन लो घोड़ों, डार्विन चचा कह गए कि Survival of the Fittest.
घोड़े सिर्फ टाँगे में जोते जा सकते है या रेस में दौडाए जा सकते है, तीसरे विकल्प के रूप में वे किसी बारात में सिर्फ चन्द घंटों के दुल्हे को ढोने का काम ही कर सकते है बाकी किसी काम के नहीं, गधे इस मामले में बड़े बेशर्मी से सब वे काम कर सकते है जो कोई नहीं कर सकता.............दुनिया के घोड़ों होशियार........
घोड़ों को अपनी श्रेष्ठ नस्ल का जितना मुगालता या गुमान होता है उतना किसी को नहीं, परन्तु वे गधों से तुलना करते समय भूल जाते है कि दुलत्ती गधों की जोरदार होती है और अगर सरेआम पड़ गयी तो कही के नहीं रहेंगे...............
अक्सर घोड़ों को कई बार मुगालते हो जाते है कि वे दौड़ जीत लेंगे और ताउम्र जवान बने रहेंगे, अच्छा होता कि वे एक बार देख लें कि उनका विकास (Evolution) गधों से बुरी हालत में हुआ है.
फिर गधे ने घोड़े को देखा और सोचा कि चलो ठीक ही हुआ कि मै गधा रहा वरना घोड़ा बनकर कही का ना रहता............मै घर और घाट दोनों का नहीं, पर ये कमबख्त तो दुनिया में कही का नहीं है - काम का ना काज का, सौ मन अनाज का .......
फिर गधे ने सोचा कि घोड़े पर दया करनी चाहिए असल में वह भी अस्तबल में ही तो अपना जीवन खपा रहा है और सिर्फ चने और रूखी-सुखी घास पर ज़िंदा है रोज उसे भी मालिक हांक देता है यह जानते हुए कि उसका "हार्स पावर" किस बेदर्दी से इस्तेमाल किया जाए............दरअसल में घोड़ा भी दिमाग से उतना ही पैदल है जितना उल्लू होता है, उसे रेस में सदियों से दौडाया जा रहा है और वह है कि किसी के सपनों को पूरा करने के लिए अनवरत दौड़ा ही जा रहा है...........माफ़ कर दो, माफ़ कर दो!!! गधे ने आखिर आज एक क्षण के लिए ही सही, घोड़े को माफ़ कर दिया.........
फिर गधे ने सोचा कि घोड़ा तो घोड़ा ही रहेगा और समय का दुश्चक्र है वरना यह घोड़ा भी एक लम्बी प्रसव पीड़ा के बाद सीजेरियन द्वारा इस स्थिति में लाया गया है. धीरे धीरे वो घोड़ो के अस्तबल को भी समझ रहा था और घोड़ो का साथ देने वाले उल्लू, मगरमच्छ, गिरगिट और साँपों को भी, पर लगा कि डार्विन बाबा कह गए है ना कि सबको ज़िंदा ही रहना है और जीने के लिए सब धत्तकरम करते है, कौनसा गलत करते है. बस अब गधा घोड़ों, खच्चर और बाकी के बीच है ज़िंदा और अभी तक साबुत अफसोस है तो अपने साथ वाले गधों का जो इस अस्तबल में आकर ना घोड़े रहे ना गधे बस सिर्फ दो कौड़ी के घटिया लफ्फाज़ चापलूस और घोर मक्कार बनकर रह गए है.
अगर सच में घोड़े श्रेष्ठ होते तो जंगल छोड़कर नहीं आते या दुनियाभर में लोग घोड़ों के अभ्यारण्य बना रहे होते, गधों को कोई मुगालते नहीं- वे जंगल में भी खुश है और आपकी हम्माली करते हुए भी या पहाड़ पर टट्टू के रूप में चढते हुए भी या केदारनाथ के स्खलन में दबकर मरते हुए भी. सवाल यह है कि आखिर में बचेगा कौन??? तो सुन लो घोड़ों, डार्विन चचा कह गए कि Survival of the Fittest.
घोड़े सिर्फ टाँगे में जोते जा सकते है या रेस में दौडाए जा सकते है, तीसरे विकल्प के रूप में वे किसी बारात में सिर्फ चन्द घंटों के दुल्हे को ढोने का काम ही कर सकते है बाकी किसी काम के नहीं, गधे इस मामले में बड़े बेशर्मी से सब वे काम कर सकते है जो कोई नहीं कर सकता.............दुनिया के घोड़ों होशियार........
घोड़ों को अपनी श्रेष्ठ नस्ल का जितना मुगालता या गुमान होता है उतना किसी को नहीं, परन्तु वे गधों से तुलना करते समय भूल जाते है कि दुलत्ती गधों की जोरदार होती है और अगर सरेआम पड़ गयी तो कही के नहीं रहेंगे...............
अक्सर घोड़ों को कई बार मुगालते हो जाते है कि वे दौड़ जीत लेंगे और ताउम्र जवान बने रहेंगे, अच्छा होता कि वे एक बार देख लें कि उनका विकास (Evolution) गधों से बुरी हालत में हुआ है.
फिर गधे ने घोड़े को देखा और सोचा कि चलो ठीक ही हुआ कि मै गधा रहा वरना घोड़ा बनकर कही का ना रहता............मै घर और घाट दोनों का नहीं, पर ये कमबख्त तो दुनिया में कही का नहीं है - काम का ना काज का, सौ मन अनाज का .......
फिर गधे ने सोचा कि घोड़े पर दया करनी चाहिए असल में वह भी अस्तबल में ही तो अपना जीवन खपा रहा है और सिर्फ चने और रूखी-सुखी घास पर ज़िंदा है रोज उसे भी मालिक हांक देता है यह जानते हुए कि उसका "हार्स पावर" किस बेदर्दी से इस्तेमाल किया जाए............दरअसल में घोड़ा भी दिमाग से उतना ही पैदल है जितना उल्लू होता है, उसे रेस में सदियों से दौडाया जा रहा है और वह है कि किसी के सपनों को पूरा करने के लिए अनवरत दौड़ा ही जा रहा है...........माफ़ कर दो, माफ़ कर दो!!! गधे ने आखिर आज एक क्षण के लिए ही सही, घोड़े को माफ़ कर दिया.........
फिर गधे ने सोचा कि घोड़ा तो घोड़ा ही रहेगा और समय का दुश्चक्र है वरना यह घोड़ा भी एक लम्बी प्रसव पीड़ा के बाद सीजेरियन द्वारा इस स्थिति में लाया गया है. धीरे धीरे वो घोड़ो के अस्तबल को भी समझ रहा था और घोड़ो का साथ देने वाले उल्लू, मगरमच्छ, गिरगिट और साँपों को भी, पर लगा कि डार्विन बाबा कह गए है ना कि सबको ज़िंदा ही रहना है और जीने के लिए सब धत्तकरम करते है, कौनसा गलत करते है. बस अब गधा घोड़ों, खच्चर और बाकी के बीच है ज़िंदा और अभी तक साबुत अफसोस है तो अपने साथ वाले गधों का जो इस अस्तबल में आकर ना घोड़े रहे ना गधे बस सिर्फ दो कौड़ी के घटिया लफ्फाज़ चापलूस और घोर मक्कार बनकर रह गए है.
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