अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं पहली ही नजर में अपने गठन और कथ्य के कारण चौंकाती हैं। लेकिन इन कविताओं के भीतर प्रवेश करने पर हमें कविता का एक अजस्त्र स्त्रोत दिखायी पड़ता है जिसमें हम खोते चले जाते हैं। अंबर लय और तुक में कई तरह के प्रयोग करते दिखते हैं। उनके कहन में एक अलहदा किस्म की सुगंध है। इन कई कारणों से अंबर कवि और कविताओं की भीड़ में अलग से पहचाने जा सकते हैं। एक दाड़ो दोई हाथ नयन मिलाये पर फोड़ दिए काम न आये जी तोड़ दिए तात-मात रोग में छोड़ दिए निज भ्राता लूट, ठोंका माथ दुखी-दीन पलटकर न देखे लुन्ठना, लीलना ही लेखे नख से शिख मेखें ही मेखें किया कुकर्म धोबन के साथ. दो सुनो मेरी कथा जीवन गया बृथा बाहर सारे वैभव भीतर भरी व्यथा सुनो मेरी कथा इस तरह जीने को मैं बार बार मरा हूँ गटागट जहर पिया कुछ यों मुझ लोलुप तुकबंद ने जीवन जिया भर घाम एक पाँव ठाढ़ा रहा हाट बीच सब बेचा-खरीदा भू, भवन, भूषण, वसन, अवसन देह, नेह, तिया शेष बूढ़ा पिंड फूटी आँख, टूटे हाथ, पछताता हिया लगा गया काल माथे के नीचे पाथर का तकिया तीन संगी मिलना बहुत दुहेला घाम की घुमरी में हैं बस बेला की धूल दोपहर ठाढ़ी लिल...