पहली बार देवास में सामंतवाद को चुनौती मिल रही है और यह बहुत जरूरी था, लोगों को समझ आएगा कि गत पचास वर्षों में उन्होंने कितना खोया है, शहर के नुकसान के साथ नौकरी धंधे कैसे एक सामंती परिवार ने खत्म पर लोगों के जीवन का सत्यानाश किया है और विकास के नाम कर आया अरबों रुपया कैसे मटियामेट हुआ, सड़क बिजली पानी के नाम पर सब कुछ खत्म हो गया, नर्मदा के नाम पर दशकों राजनीति हुई और आज भी नर्मदा नहीं आई, क्षिप्रा नर्मदा लिंक का भी कुछ नहीं हुआ, एक भी सरकारी इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज नहीं आया और मेट्रो जो आ रही थी शिवराज के राज में वह भी नहीं आने दी क्योंकि निजी बसवालों का धंधा चौपट हो जाता और खेती से लेकर उद्योगों तक को खत्म करवा दिया, शहर में कॉलोनियों की हालत खराब है ना सड़क हे ना पानी और बिजली विभाग की भी मनमानी चलती रहती है पचास वर्षों से एक परिवार का नेतृत्व लोकतंत्र, मीडिया और विकास को कमजोर कर देता है और लोग भी निराश हो जाते है पर अब मजा आ रहा है बस प्रशासन को सही का साथ देना चाहिए , कलेक्टर के ठीक सामने अरबों की जमीन पर कब्जा करके मंदिर का निर्माण हो गया क्या कर रहे थे एसपी, कलेक्टर और नगर निगम के कमिश्नर, मंदिर का विरोध नहीं पर बेशकीमती जमीन पर मंदिर के बहाने से कब्जा नाजायज है लोगों के समझ नहीं आ रहा था कि विभिन्न इवेंट करके कब्जा करने की नीयत है , अजीब मानसिकता है
भाजपा के ही एक युवा, कानून पढ़े और दमदार सांसद ने शहर के विकास के साथ भूमाफियाओं और सामंती संरक्षण में पल रहे नशे के अवैध कारोबार पर सवाल ही नहीं उठाए बल्कि नब्ज पकड़कर रोकने के भी काम शुरू किए है
स्वागत किया जाना चाहिए इस बात का
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सामाजिक काम में क्या ना करें - 5
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छग में मितानिन कार्यक्रम लंबे समय से चल रहा था, इस कार्यक्रम से बहुत सीखा था और एक तरह का लगाव था, इस कार्यकम में एक जमाने में कम्युनिटी मेडिसिन के श्रेष्ठ प्रोफेसर डॉक्टर सुंदररमन - जो पांडिचेरी मेडिकल कॉलेज में थे 1986 - 87 में संभवतः और उन्होंने आला दर्जे का काम किया था, इस से जुड़े थे, डॉक्टर विनायक सेन, इलिना सेन, रोहतक से डॉक्टर रणवीर सिंह दहिया, डॉक्टर प्रीति तनेजा, डॉक्टर राजीव लोचन शर्मा, डॉक्टर मोहम्मद अली आरीवाला से लेकर तमाम डॉक्टर्स जुड़े थे, ये सभी लोग बहुत प्यारे दोस्त थे और इन्होंने स्वास्थ्य खासकरके "कम्युनिटी मेडिसिन" सीखने में मेरी बहुत मदद की थी, देश और दुनिया में इस काम और पहल की सराहना हुई थी
सुंदररमन के दिल्ली जाने के बाद बाद में सरकार ने इस तरह के कामों को जारी रखने के लिए रायपुर में एक SHRC [स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर] की स्थापना की थी, सुंदररमन के बाद एक मियां-बीबी की जोड़ी को इसकी कमान दी थी, बाद में मात्र पति रह गए और पत्नी ने एक एनजीओ के साथ जुड़कर काम करना आरंभ किया और जोहान्सबर्ग से पीएचडी में काम आरंभ किया
अभी आज मालूम पड़ा कि उस SHRC में हाल में लगभग करोड़ों का घपला हुआ, उस तथाकथित संस्था में भी दो लाख यूएस डॉलर का हिसाब नहीं है, छग सरकार ने मितानिन कार्यक्रम से उस चालाक, धूर्त और घाघ जोड़े को हटाते हुए जांच के आदेश दिए है और एक अच्छे कार्यक्रम को बंद कर दिया, सुना है कि वह जोड़ा विदेश भाग गया है और गायब है लंबे समय से
यह सब सुनकर बहुत दुख ही नहीं हुआ - बल्कि अफसोस यह हुआ कि ये दोनों पति-पत्नी बहुत आदर्शवाद, नैतिकता, चरित्र और ईमानदारी की बात करते थे, जब मैं इनके काम के मूल्यांकन करने नियमित जाता था गरियाबंद से लेकर सुकमा, जगदलपुर, दंतेवाड़ा, किरंदूल, अंबिकापुर, बस्तर, से लेकर रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, रायगढ़ आदि जगहों पर गया हूँ और बहुत बारीकी से छग को देखा - समझा है
यह सिर्फ बदला लेने के लिए नहीं लिख रहा, ना एनजीओ की छवि को लेकर मै सवाल उठा रहा हूँ पर जो नैतिकता, चरित्र और आदर्शवाद की बात करते है - सबसे ज्यादा हरामखोर और नीच वे ही है, राजनीति में तो यह सिद्धांत स्पष्ट है, पर सामाजिक क्षेत्र में अब यह ट्रेंड बनते जा रहा है, जिस तरह से एनजीओ के भवन, कार्यशालाएं, फाइव स्टार होटल में सेमिनार, इनके मालिकों के बंगले, गाड़ियां या संस्थाओं के भवन करोड़ों के बन रहे है, अकूत संपत्ति, जमीन, स्कूल, अस्पताल, विश्व विद्यालय का जाल और अन्य संपत्तियां इकठ्ठी कर रहें है - उस परिप्रेक्ष्य में यह सब सोचना बहुत दुखद है
आज कही ना कही मन में खुशी भी है कि उन दोनों की असलियत आखिर सबके सामने आ गई है और वे मुंह छुपा रहे है
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हम लोग बरसों से काम कर रहे हैं सहरिया समुदाय के साथ पर, इस संग्रहालय की जानकारी नहीं थी, अबकी बार जब मैं शिवपुरी के पोहरी एवं श्योपुर के नजदीक के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में था तो पता चला इसके बारे में और फिर यह संग्रहालय देखा जो अब बंद है और किला बिक जाने के कारण कही और शिफ्ट हो रहा है
भोपाल का आदिवासी संग्रहालय तो भव्य है ही, पर गुमला [झारखंड ] में आदिवासी संग्रहालय और आज श्योपुर में यह संग्रहालय देखकर एहसास हुआ कि हमारी आदिवासी संस्कृति कितनी अनूठी, भव्य, और विशाल है, इस सबको संरक्षित करने और सहेजने की जरूरत है
श्योपुर किला 800 वर्षों से अधिक प्राचीन इतिहास का साक्षी है, इसकी नींव कच्छपघात राजाओं ने रखी, इसे अलंकृत करने का कार्य अजमेर से आये गौड राजाओं ने किया, श्योपुर किला जिला मुख्यालय पर सीप नदी के किनारे स्थित है इस किले का निर्माण राजा बिठ्ठलदास गोपावत के पुत्र अनिरूद्ध गौड गोपावत ने सन् 1584 ई. में आरंभ किया तथा राजा नरसिंह गौड ने इसे 1631 ई. में पूर्ण कराया, नरसिंह महल, रानी महल, मोती महल, पतंगबुर्ज, बारहदरी किले और छारबाग में स्थित छत्रियां किलें में निर्मित मंदिर गौड राजाओ के स्थापत्य प्रेम और धार्मिक आस्था के उदाहरण हैं
सन् 1809 ई. में श्योपुर किले पर ग्वालियर के शासक महाराजा दौलतराव सिंधिया द्वारा आधिपत्य कर लिया गया, किले में निर्मित दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, रेस्ट हाउस, बगवाज गेट ग्वालियर के सिंधिया राजा के कलाप्रेम के जीवंत स्मारक हैं, इस दरबार हॉल में बनी पत्थर की जालियाँ प्रस्तर शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है इसके एक भाग में सीप नदी की लहरों से आती शीतल वायु हॉल को शीतलता प्रदान करती है
सहरिया संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये श्योपुर किले में सहरिया संग्राहलय संचालित हैं, इसमें सहरिया जनजाति के जन-जीवन की झाँकियाँ प्रदर्शित की गयी हैं


श्योपुर ग्वालियर-मुरैना से 225 कि.मी., शिवपुरी-कोटा से 110 कि.मी. तथा सवाईमाधोपुर से 60 कि.मी. दूर स्थित है
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मप्र के ब्लॉक कराहल, जिला श्योपुर का ग्राम गौरस जहां एक परिवार में लगभग पच्चीस से तीस गाएं है जो दस से सोलह लीटर दूध प्रतिदिन देती है, इस एक गांव के तीन टोलों में लगभग तीन सौ परिवार है और लगभग बीस हजार गौधन है, भैंस और गाय की देखभाल पूरा परिवार करता है और इन लोगों ने वेटरनरी डॉक्टर से लेकर बाकी सब व्यवस्थाएं अपने बल पर कर रखी है और आर्थिक रूप से बेहद सक्षम है ये लोग
यहां का घी और मावा रोज ट्रकों से बाहर जाता है, गुर्जर समाज के लोग इस काम में शामिल है
अबकी बार मावा तो नहीं मिला, पर हम सबने मिलकर लगभग दस किलो गाय का घी लिया
मेरी मित्र रोशनी शेख दो साल से यहां नायब तहसीलदार है - रोशनी से मुलाकात की, सहरिया आदिवासी समुदाय की समस्याएं, जमीन विवाद, स्कूल, अस्पताल, पंचायत, मनरेगा से लेकर प्रधानमंत्री आवास आदि के बारे में हमारे मित्रों द्वारा फेस की जा रही समस्याओं के बारे में बताया, रोशनी ने शासकीय स्तर पर पूरी मदद करने का भरोसा दिया
रोशनी ने मेरे साथ कानून की पढ़ाई में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ाई की और कड़ी मेहनत करके मप्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण करके श्योपुर जैसे जिले से अपने कैरियर की शुरुआत की है, एक ऐसे माहौल में वह हिम्मत से काम कर रही है कि बस दिल से दुआएं निकली "वाह बिटिया जीती रहो और जल्दी - जल्दी आगे बढ़ो", मेरे को अपना बूढ़ा अब्बू कहती है छोरी, उसके दफ्तर में बैठकर फक्र महसूस हुआ बहुत, बेटियों को पढ़ाना आज के समय में बहुत जरूरी है और उन्हें अपनी पसंद की ज़िंदगी चुनने का अवसर देना भी - ताकि वे सार्थक कर सकें, विश्वास कीजिए उनपर, रोशनी का सफर मैने 2018 से देखा है - कैसे मेहनत करके उसने यह मक़ाम हासिल किया है - मंजिलें और भी है अभी

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