लगभग ४८ घंटे हो गए अभी तक किसी की जवाबदेही तय नहीं हुई, कश्मीर से लेकर पहलगाम या मणिपुर से लेकर अरूणाचल में तो ISS, लश्करे तोइबा, चीन आदि सब जवाबदेह हो जाते है पर प्रधान, गृहमंत्री से लेकर देश विदेश की तमाम एजेंसी, तुर्रे खां वहां है फिर भी कोई जिम्मेदार नहीं हुआ
हो क्या रहा है, गुजरात पुलिस गांव से आए उस लड़के को पकड़कर ले गई जो कौतूहलवश वीडियो बना रहा था, अब बकरा किसी को तो बनाना ही है
देवा रे देवा !!!
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अहमदाबाद विमान हादसे के बाद इस संविधानिक मान्यता प्राप्त "वैज्ञानिक मानसिकता" वाले देश में ज्योतिषाचार्यों की अजीब बाढ़ आ गई है, हिंदी-अंग्रेजी-मराठी-गुजराती-कन्नड़-तेलगु-मलयालम से लेकर तमाम भाषाओं के जानकर फर्जी, ढोंगी, अय्याश, मूर्ख और कामुक ज्योतिष बड़ी-बड़ी भविष्यवाणियां कर रहें है, गीता बचने से लेकर तमाम तरह के अंधविश्वास फैला रहें है
1 बैठने से पहले ये अनुष्ठान करो
2 ये पूजा करके घर से निकले
4 काली-सफेद गाय को तिल खिलाकर निकले
5 फलानी दिशा में इस तरह के रास्ते से एयरपोर्ट पहुंचे, जिसमें पीपल, बरगद के ग्यारह पेड़ हो
6 एयरपोर्ट के लाउंज में इस दिशा की ओर मुंह करके बैठे
7 बोर्डिंग पास लेते वक्त लाइन में फलाने नंबर पर खड़े रहें
8 अंदर जाने पर बैठने के पहले इस मंत्र का जाप करें
आदि-आदि-आदि,
ऐसा ना हो कि कल से एयरपोर्ट्स के लाउंज में पंडितों के स्टाल लग जाए - किसी बड़े मंदिर के भव्य लोकों की यह और दान-दक्षिणा के खेल शुरू हो जाए ; अडानी, अंबानी, टाटा जैसे नीच उसके भी टेंडर लेकर अनुष्ठान के धंधे शुरू कर देंगे एयरपोर्ट्स पर
मतलब मूर्खता और हरामीपन की इंतहा हो गई है, अगर यही सब करना है - तो बैलगाड़ी पर जाते, बंद कर दो बैंगलोर और बाकी सारे स्पेस स्टेशन और एक दिन में रिकॉर्ड तोड़ने वाले उपग्रह भेजना, इन धूर्त और नालायकों ने वाट्सएप समूहों का इस्तेमाल करके जनता को मूर्ख बनाने का ठेका ले रखा है, ताकि लोग सरकार और जिम्मेदार अथॉरिटी से सवाल पूछने के बजाय भाग्य और अपनी जिंदगी के भरोसे बैठे और सिर्फ कमाई करके इस नालायक, ढोंगी, नौटंकी में मशहूर सरकार को टैक्स देते रहे, और सरकार उस रूपए को अडानी, अंबानी और टाटा जैसे शोषकों को देकर पालती-पोसती रहें
सावधान रहिए - इन धूर्त और मक्कार लोगों से - जो गीता, ज्योतिष और बाकी कुकर्मों से व्यवधान बन रहे है और लोगों के इमोशंस से खेलकर बदमाशी कर रहें है
भला बताइए हवाई यात्रा की ही जाती है इसीलिए कि समय और ऊर्जा की बचत हो, अगर यही पाखंड करते रहेंगे तो सदियां लग जाएंगी घर से निकलने में
सरकार और एजेंसियां अपना काम करें - इसके लिए सवाल करें, उन्हें जवाबदेह बनाएं - बजाय इन धूर्त ज्योतिषियों के प्रोपोगेंडा को फैलाने के, अफसोस कि इसमें पढ़े - लिखे ज्यादा शामिल है और यह निश्चित ही भाजपा और संघ के मुखौटे है - जो अपने आकाओं की कमजोरी ढांक रहें है
कल इन पर भी बारी आ सकती है - ये भूल रहे है ये
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हमें लाखों रक्तदीप चाहिए
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जिस तरह से विश्व में और भारत में दुर्घटनाएं हो रही है उसमें Deepak Vibhakar Naik , जो मेरे अनुज है - एक आशा की किरण है, संबल है और ताकत है, क्योंकि - वे खुद ही नहीं, बल्कि हजारों को रक्तदीप बना चुके है अभी तक, हम भाइयों में वे विलक्षण है और समाज के लिए कर्मठ और बेहद प्रतिबद्ध कार्यकर्ता है
रक्तदीप के नाम से प्रसिद्ध इंदौर के दीपक विगत 35 वर्षों से यथा अंतराल सतत रक्तदान करते आ रहे हैं। ऑन पेपर अब तक 142 बार रक्तदान कर चुके है। अब तक कई बड़े सम्मान प्राप्त कर चुके दीपक को हाल ही में रामकृष्ण सेवा फाउंडेशन अयोध्या और मेजर ध्यानचंद खेल उत्थान समिति उत्तरप्रदेश के द्वारा राष्ट्रीय सेवारत्न सम्मान हासिल हुआ है जिसे दीपक अपनी सकारात्मक सामाजिकता का सबसे बड़ा प्रोत्साहन बताते है।
दीपक के साथी प्रयास से 45 हजार लोगों को मिला नया जीवन - ज्ञातव्य है कि दीपक अपने सैकड़ों साथियों के माध्यम से 45 हजार से भी अधिक जरूरतमंद लोगों को रक्त उपलब्ध करवा चुके हैं। कोरोनाकाल में इनके समूह के 150 रक्तदाताओं ने रक्तदान किया था। दीपक और इनकी पत्नी अनन्या ने भी पहले कोरोनोकाल में साथ-साथ रक्तदान किया था।
रक्तदान के प्रोत्साहन का तरीका - रक्तदान हेतु प्रोत्साहित करने की भी दीपक की अपनी कला है। वे स्टीकर, बुकमार्क, आलेख, सोशल मीडिया, वीडियो रील आदि के माध्यम से प्रचार कर लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। उनके अपने घर पर रक्तदान से सम्बद्ध एक अनूठी तरह की वीथिका भी बनी हुई है, जो कि संपूर्ण भारत में अपने आप में अलहदा है। अलावा टायर, डिब्बों, मिट्टी के पात्र आदि जैसी अनेक अनुपयोगी वस्तुओं को भी रचनात्मक तरीके से कलात्मक स्वरूप में परिवर्तित कर उस पर रक्तदान जागरूकता का संदेश देते है। अपनी शर्ट की जेब पर हमेशा बी पॉजिटिव का बैच लगाकर रखते है। यही नहीं, अपने हेलमेट और कार पर भी रक्तदान से संबद्ध प्रेरक संदेश लिखा रखे है। रक्तदान के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से इनकी पुस्तक "वक्त पर रक्त" भी प्रकाशित हो चुकी है।
दीपक का सतत जागरूकता अभियान - दीपक सामाजिक मंचों, शैक्षणिक संस्थानों व कॉर्पोरेट क्षेत्र में प्रेरक वक्ता के रूप में रक्तदान के प्रति जनचेतना का कार्य करते है। साथ ही आकाशवाणी के माध्यम से भी रक्तदान के प्रति अपनी बात कहते है। यह और भी अनुकरणीय है कि उनकी जीवनसंगिनी अनन्या नाईक भी नियमित रक्तदाता है। उनकी बेटी अनावि भी 18 वर्ष की उम्र से नियमित रक्तदान कर रही है।
दीपक की अनूठी समाजसेवा - दीपक की अन्य अनोखी और मिसाल सेवा है रास्ते में नंगे पांव दिखाई देने वाली गरीब बच्चियों को अपने बैग में से निकालकर चप्पल पहनाते है। 20 वर्षों में अब तक वे 14000 से अधिक बच्चियों को चप्पल पहना चुके है। इसके साथ ही वे शासकीय व अन्य साधारण व्यवस्था वाले विद्यालयों के बच्चों को उनकी जरूरत अनुरूप शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध करवाते है।
रक्तदान में सम्मान ही सम्मान - दीपक रक्तदान व सामाजिक सेवाओं के लिए अभी तक 150 से अधिक बार मंचों से सम्मानित हो चुके है। इनमें महू की उन्नीस संस्थाओं के अलावा राष्ट्रीय स्तर का दधीचि सम्मान , ब्रह्नमहाराष्ट्र मंडल नई दिल्ली का राष्ट्रीय मराठी गौरव सम्मान, रामु भैया दाते सम्मान, पत्रिका समूह द्वारा सम्मान, समाजवादी दृष्टि सम्मान, उत्कर्ष सम्मान, महाराष्ट्र साहित्य सभा का गुणीजन सम्मान के साथ ही सारस्वत ब्रम्ह समूह, लायन्स क्लब, पत्रकारिता अध्ययनशाला, इंदौर लेखिका संघ, रोटरी क्लब, मशवरा का प्रथम कर्मवीर सम्मान, सारस्वत ब्रम्ह समूह सम्मान, सारेगामा द्वारा रक्तदूत के रूप में सम्मान, प्रगति फाउंडेशन ट्रस्ट सोनभद्र वाराणसी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रक्त क्रांतिवीर सम्मान, नईदुनिया गौरव सम्मान, जिला न्यायालयीन संस्था, स्टेट ऑफ आर्ट मॉडल ब्लड बैंक, मेडिकल कॉलेज बड़ौदा, क्षितिज सम्मान आदि शामिल हैं।
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14 जून 2025 / विश्व रक्तदान दिवस
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जाने वाले कभी नहीं आते
जाने वालों की याद आती है
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अहमदाबाद मोदी जी को जरूर जाना चाहिए - बल्कि कल ही जाना था और दो-तीन दिन रूकना चाहिए था, पर मणिपुर अभी तक नहीं गए, देश के प्रमुख को राज्यों के बीच इस तरह का भेदभाव नहीं करना चाहिए, अच्छी बात यह है कि विदेश में छबि ठीक बनेगी - क्योंकि करीब सत्तर लोग विदेशी थे, इससे सही जांच और निष्पक्षता पर भी फर्क पड़ेगा
जो भी तकनीकी चूक है - उनको गंभीरता से देखा जाए, सबसे ज़्यादा दुख मेडिकल कालेज के उन युवा छात्रों के लिए है - जिनका कोई लेना-देना नहीं था इस सबसे, पर मौत बहुत जालिम है - जिसकी जब, जहां, जैसी लिखी हो - जाकर घेर लेती है और ले जाती है अपने साथ, पीछे छुटे हुए लोग और परिजन वंदनीय है जो सब कुछ भूलकर पुनः जीवन में लौट आते है, किसको कोसेंगे, किसको दोष देंगे और किसको रोएंगे
सो नहीं पाया हूँ रातभर, विजुअल्स विचलित करते रहें है और अब अपनी यात्राओं पर निकलने के पहले डर लगने लगा है - मौत से नहीं, पर हादसों से, मनुष्यगत लापरवाही से, अलग अलग चैनल पर गिद्धों को देखकर आहत हूँ और जो महिलाएं एंकर थी - उनकी बातचीत और संवाद किसी भी तरह से सहनीय नहीं थे, कम से कम इस समय पर घटियापन की उम्मीद नहीं थी
दुआ करिए परिजनों के लिए, मृतकों की आत्मा की शांति के लिए - दुनिया के किसी भी हिस्से में भूकंप, या किसी भी वजह से इस तरह से सैंकड़ों की संख्या में लोग मरते है - तो दिल दहल जाता है
ओम शांति
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फेसबुकिया मित्रों को एविएशन एक्सपर्ट बनने का सुनहरा मौका है , क्रिमिनोलॉजी के बाद इस रॉकेट साइंस के भारत के गुजरात प्रांत में फेल्योर होने पर विचार आमंत्रित है
इसे मेडिकल हॉस्टल, पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपानी आदि के संदर्भ ले सकते है ताकि आपको विस्तृत लिखने में संकोच ना हो, गुगल की मदद ले सकते है
सभी देशी विदेशी मृतकों और पूरे क्रू को सादर नमन, यह दुखद है और हमारी टेक्नोलॉजी के लिए बड़ा प्रश्न है
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इंदौर के दोनों रघुवंशी परिवारों ने मौत, हत्या, घृणित अपराध को तमाशा बना दिया है, लगता है इन्हें ना गम है ना कोई अफसोस, रोज दिनभर इंटरव्यू, नाटक, रील, तमाशे - जैसे यह सब स्क्रिप्ट है, एक दूसरे के यहां जाना, रोना - धोना और हर ऐरे - गैर मीडियाकर्मी से बात करके मौत और चुप्पी की संस्कृति को वीभत्स रूप से गंदा कर दिया है, मीडिया में आकर चेहरा दिखाने का शौक है या हवस, डूब मरना चाहिए इन्हें
अब समय आ गया है कि इन दोनों परिवारों का मीडिया ही नहीं, समाज भी बहिष्कार करें, ये लोग अपना धंधा - पानी बढ़ा रहे है या गमी का कोई असर भी है, जिस अंदाज में दोनों की माँएँ नखरे पट्टे करके मीडिया के सामने दिनभर डटी रहती है - वह शर्मनाक है, दोनों के भाई सेटिंग में लगे है मीडिया के सामने, पुलिस और कानून को अपना काम करने दें और इन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाए अब
हमारी संस्कृति और मालवा में कम से कम मौत के बाद यह भौंडापन नहीं था, शर्मनाक है इनका आचरण और निंदनीय
जिसको इस पोस्ट से दुख होता हो वो अपने घर हुई किसी मौत के बाद के तीन माह याद कर लें -- कम से कम
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सारी लड़ाई पढ़ाई-लिखाई और अपनी च्वाइस की है, यदि स्पेस में जाने के बाद भी लड़कियां निर्णय नहीं ले पा रही और अपने को लाचार या कमतर समझकर अपने माता-पिता या कुपढ़ भाई या टुच्चे रिश्तेदारों पर निर्भर है, तो कोई अर्थ नहीं है, अपराध कारीत करने के बजाय अपने-आप से विरोध या बगावत कर जीवन के निर्णय लें - जिसे अंग्रेजी में Mutiny कहते है और यह पुरुष प्रधान समाज के लिए भी अच्छा होगा
बहुत गहराई से बदलते संदर्भों में समझने और विश्लेषण की ज़रूरत है और अपने-आप में भीतर झांकने की भी, क्योंकि भलाई-चंगाई (Charity) का खेल, दिखावा या नाटक घर से या खुद से शुरू होता है
हम जो तथाकथित प्रगतिशील लोग है - कितनी छूट बहु-बेटियों को देते है - यह भी सोचना जरूरी है
सोनम ने जो-जो भी किया - "Hit him" जैसे वाक्य से राजा का खून, फिर इंदौर आना, झूठ बोलना और राज के साथ एक दिन रूकना और फिर गाजीपुर जाना या पूरी योजना बनाने से लेकर क्रियान्वयन करना - इसके बजाय यदि वो सिर्फ मना कर देती या राज कुशवाह के संग शादी के दिन ही भाग जाती तो क्या होता - शायद इस सबसे तो कम या बेहतर ही होता, आज एक मौत और उसके सहित पांच जिंदगियां बर्बाद हो गई - परिवार अलग
हम सबको सोचने विचारने की जरूरत है बजाय बहस करने या नुक्ताचीनी करने के
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मप्र में मोहन यादव सरकार का अनुकम्पा नियुक्ति प्राप्त कर्मचारियों को रोज निहायत तानाशाही तरीके से बर्खास्त करने का तांडव चल रहा है जो संविधान और मानवता को हिला देने वाला है
और यह सिर्फ एक सीपीसीटी नामक कंप्यूटर की परीक्षा ना उत्तीर्ण करने के कारण हो रहा है, सामान्य प्रशासन विभाग के कुछ नीच अफसरों की वजह से यह हो रहा है जो निहायत ही घटिया और दो मुंह के सांप है, खुद ने भ्रष्टाचार करके गंदगी फैला रखी है - पर सबसे सॉफ्ट टारगेट्स पर ये गाज गिरा रहे है
महाकाल की नगरी से आने वाले मोहन यादव जी को इन कर्मचारियों की हाय का भी डर नहीं है, मुश्किल से दो सौ कर्मचारी होंगे जो दस-पंद्रह साल से काम कर रहे है, एक ओर तो भर्ती हो नहीं रही, दूसरी ओर अनुभवी, कौशल से युक्त, दक्ष कर्मचारियों को निकालना किस अक्लमंदी का सबूत है , यहां तक कि वर्ग चार पर लगे कर्मचारियों को भी निकाल रहें है, मति मारी गई है इस सरकार की
इन भ्रष्ट और नालायक अफसरों को समझना होगा कि अनुकम्पा का अर्थ क्या होता है "Mercy cannot be given on any Condition", "अनुकम्पा किसी शर्त पर नहीं दी जाती" और मृत कर्मचारियों के परिवारों का पालन-पोषण राज्य सरकार की जवाबदेही है, यह घटिया नियम मप्र के अलावा कही नहीं है, मप्र हाई कोर्ट की इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर बेंच में मुकदमे पड़े है और स्थगनादेश मिल भी रहे है रोज, पर बेशर्म सरकार को Contempt of Hon Court का भी डर नहीं है
मप्र सरकार को भुगतना पड़ेगा यह तो साफ है
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हमारी सबकी समझ आधी-अधूरी है, परिपक्व ईश्वर, अल्लाह या जीसस भी नहीं, इसी अपूर्ण समझ से जीवन नैया खोते-खोते हम भवसागर में तैरते रहते है, हिचकोले खाती जीवन की नाव में कभी पानी घुस जाता है, कभी छेद हो जाता है, कभी वजन बढ़ जाता है, कभी हमारे अकेले होने से तूफान झेलना पड़ते है, और कभी हम भूखे - प्यासे रहकर बीच पानी में किनारों को दूर से बड़ी उम्मीदों के साथ ताका करते है
हमारी इसी आधी-अधूरी समझ से हम दूसरों के साथ खुद को भी (अ)ज्ञान के पतवारों संग झोंक देते है आंधी-तूफान या बाढ़ में और फिर जीवन नष्ट हो जाता है - सिर्फ हमारा ही नहीं, हमारे आसपास के उन लोगों का - जो प्रचंड आशा से हमे ताकते है और भरोसा रखते है
बस अपनी आधी-अधूरी समझ को छोड़कर हम दूसरों को जीने दें, अपनी तो बर्बादी का जश्न मनाकर तो हम अपघात कर ही बैठें है, पर जो नई दृष्टि, सुबह, झीनी सांझ या स्तब्ध नीरव रात्रि के तले अपना सर्वस्व न्यौछावर कर सुकून से शुक्र तारे की बाट जोहते जिंदगी बीताना चाहते है - उन्हें मेहरबानी कर बख्श दें
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सोनम के तथाकथित हत्या करने पर जो लोग जज बनकर न्याय देने और उसे हत्यारिन ठहराने की बात को चुनौती दे रहे है वे समझ लें कि वहां का डीजीपी एक ऐसे राज्य का अधिकारी है जो बोर्डर राज्य है और चीन से लेकर बांग्लादेश तक को रोज झेलता है, कोनराड संगमा पुराने राजनीतिज्ञ है और चार राज्यों की सीमा पार करके आई सोनम का गाजीपुर में मिलना कोई संयोग नहीं है, बड़ी शातिरी से वह कानून के अनुसार खेल रही है जैसे कोई बड़ा कानूनविद मदद कर रहा है हर दांव के पीछे एक चाल लग रही है
[ मीडिया की खबरों पर आधारित विश्लेषण और अस्थाई पोस्ट ]
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हम एक हिंसक समाज में रह रहे है, सिर्फ सोनम ही नहीं, पिछले दस - बीस वर्षों में शिक्षा, स्वतंत्रता, अहिंसा और समता के नाम पर हमने भयानक बर्बादी की है, सबसे ज्यादा हमें अपने बच्चों की चिंता करनी चाहिए, इतने हिंसक समाज में कैसे रहेंगे वे - जहां मूल्य, प्रेम, मनुष्यता या अहिंसा के नए अर्थ सीख रहे है, साथ ही लड़कों और लड़कियों को समता या बराबरी की बात कैसे बताएंगे
सोनम सिर्फ एक प्रतीक है इस समाज के बदलते स्वरूप का - जो कि शर्मनाक है, घिन आती है ऐसे समाज पर
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सोनम रघुवंशी भी बेवफा निकली
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मैने पहले ही कहा था कि अपने यारों को बुलाकर उसने ही निपटाया होगा राजा को , मात्र ग्यारह दिन में पति की हत्या - वो भी हनीमून के बहाने है - कोई लाज शर्म है या नहीं
खबर मिलने के पहले ही दिन मैने कई मित्रों, परिजनों को कहा कि लड़की ने बड़ा खेला कर दिया, कमबख्त एकादशी का नाटक, वट सावित्री का व्रत कितनी मक्कार और नालायक निकली इसे मृत्यु दण्ड दिया जाए ताकि बाकी समाज को बसा सबक मिलें, चार यारों को ले गई संग साथ
लड़कियाँ आजकल शादी को मजाक बना रही है और यदि प्रेम - मोहब्बत है किसी से तो कर लें, भाग जाए, ये क्या कि शादी के बाद नाटक करें, तलाक दे दें आठ दिन में, हत्या तक कर दें पति की
आखिर ये सब नीच हरकतें क्यों - इतनी हिम्मत कहां से आ रही है, सवाल जेंडर का नहीं, नीचता और हत्या तक करने का है, अभी परसो पोस्ट लिखा था पांच वर्षों बाद अपने तीन छात्रों से बातचीत का, बर्बाद कर दी उनकी जिंदगी - 3 पढ़ी - लिखी नालायक लड़कियों ने
सशक्तिकरण का अर्थ कदापि हत्या या शोषण नहीं हो सकता - समाज को नए तरीके से सोचना होगा अब
अपराधी अपराधी है उसका कोई धर्म, जाति, लिंग या जेंडर नहीं होता
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जब दर्द होता है तो सबसे पहले जुबान बिगड़ती है, जब मन दुखों से भर जाता है तो कान बहरे हो जाते है, जब आसन्न संकटों के बीच जीवन घिर जाता है तो आँखें पथरा जाती है, जब षडयंत्रों के दुष्चक्र बवंडर से आसपास घूमने लगते है तो नाक को हर जगह बू ही आती है, अवसाद और अपराध बोध के क्षणों में हर कोमलतम जगह छूने पर भी खुरदुरापन ही महसूस होता है
मन, वचन, कर्म और वाचा से यदि कभी हम तटस्थ होकर सिर्फ संतापों से घिर जाते है और भला-बुरा छोड़कर अपना ही नुकसान कर लेते है, ऐसे में मित्र ही सहाय्य हो सकते है - जो पूरी निर्दयता से कान उमेठकर सही रास्ते पर खड़ा करें , जलील करें, दुत्कारे और कहें कि "बहुत हुआ, अब कुछ बदलो और नया मार्ग चुनो, धीर धरो - समय के पास हर बात या समस्या का इलाज है" - प्रशस्त मार्ग पर लौटना सहज नहीं है फिर भी, अज्ञान के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर चलने का संकल्प घातक भी हो जाता है कभी
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कभी कभी हम बहुत ज्यादती करते है, दूसरों के साथ खुद पर भी - बग़ैर यह जाने कि कौन किस मुसीबत में है या जिंदगी के किस कड़े दौर से गुजर रहा है, हम एकदम से जजमेंटल होकर फतवे जारी कर देते है और शहंशाह बन जाते है
अभी तीन छात्रों से बात हुई - जो पिछले पांच वर्षों से संपर्क में नहीं थे, जब लंबी बात हुई तो समझ आया कि उन अबोध बच्चों पर जिंदगी ने कैसा कहर ढाया है - बैंगलोर, गुड़गांव और मेंफिस [USA] में रह रहे ये तीनों बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे है, पर वादा ये रहा कि अब हफ्ते में एक बार बात होगी, कानूनी मदद भी करूंगा और देवास आने पर समय बीताया जायेगा पर्याप्त, झांसी के पास औरई से भी एक मित्र ने विचित्र केस बताया, उफ्फ, कितना विचित्र है संसार और उससे ज़्यादा हम
ख़ैर, सबसे पहले अपने-आप पर काबू पाना होगा और फिर तार्किक बनकर ही अपने परिवेश और आसपास के लोगों से बात करना होगी, ऐसा नहीं कि यह हम नहीं करते पर बहुत कॉन्शस होकर यह सब करना होगा, जीवन लगातार सीखने का ही नाम है और स्वसंस्तुति करके स्वीकारना गलत नहीं हरगिज भी
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