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एक ज़माना था जब ग़रीब, वंचित, पिछड़े लोग या महिला, विकलांग, बुजुर्ग और बच्चे निसहाय थे - चुप्पी का साम्राज्य था और दबंगई शिखर पर थी, पर आज ना कोई गरीब है ना असहाय या निहत्था या वंचित
लोग एकदम अवसरवादी हो गए है और वे पहचानते है कि आपकी और आपके तथाकथित समाज कार्य की औकात क्या है, वे आपके आगे बीपीएल कार्ड नही होने का रोना रोयेंगे, राशन वाले की शिकायत करेंगे, आंगनवाडी में या स्कूल में भोजन ना मिलने की शिकायत करेंगे, पर सड़क - बिजली - पानी के लिये नेता या पार्टी कार्यकर्ता से ही बात करेंगे, शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये उनके अपने माईबाप है, मुफ्त वाली चीजे या पेंशन की बात करना हो तो वे अधिकारियों से बात करेंगे - कहीं से लाभ मिलने की बात हो तो वे आपसे बात करेंगे परंतु उनके योगदान या श्रमदान की बात करना हो तो कन्नी काटकर कर निकल जाएंगे, आप सिर फोड़ लो पर वोट कहाँ जायेगा यह वो गरीब ही तय करता है, आपका सारा समाज कार्य भोंगली बनाकर वह आपको ही अर्पित कर देता है
लोग अब बहुत ज्यादा सयाने हो गए हैं और आप अभी भी पिछली सदी के समाज कार्य को लेकर गांव में जा रहे हैं, बैठके कर रहे हैं, और उन्हें अपनी नौकरी बचाने के लिए लुभा रहे हैं ताकि वे आपके काले - पीले कागज में आंकड़े बनकर, सुंदर ग्राफ बनकर या रंग-बिरंगे चित्र बनकर रिपोर्ट में उभर सके - आप मुगालते में है भाई साहब और बहन जी, इंटरनेट से सबको ग्लोबल देश का नागरिक बना दिया है
जिन स्वसहायता समूह या महिलाओं के समूह बनाकर आप जेंडर बराबरी की बात करने की सोच रही हैं उन महिलाओं के पास एक-एक ब्लॉक में 10 से 50 करोड़ रूपया है और ये सरकारी समूह है इनके माध्यम से ये महिलाएँ बचत भी कर रही है और कमा भी रही हैं - उन्हें ना आपके जल जीवन मिशन से लेना है, ना प्रधानमंत्री कुसुम योजना से और ना आपके चलताऊ किस्म के जेंडर वादी नारों से - इसलिए अपने मुग़ालते दूर कर लीजिए और लोगों और समुदाय की - खास करके गरीब लोगों की मदद करना बंद कर दीजिए - क्योंकि समाज में गरीब कोई आज की तारीख में है ही नहीं - जो है वह बहुत बड़ा पाखंडी और ढोंगी है और इसका सबूत आप देख सकते हैं कि कुंभ में ज्यादातर इसी तरह के लोग गाँठ से रुपया निकाल कर गए हैं, दान पुण्य कर रहें हैं और वहां पर मजे मार रहे हैं - बात समझ में आ रही है
AI या ChatGPT की मदद से लच्छेदार अँग्रेजी में लंबी-लंबी रिपोर्ट लिखकर या लिंकडीन पर फोटो पेल कर ना आपका भला होने वाला है ना समाज का और एआई की क्या औकात है यह कल अपने परम पूज्य ने दिखा दिया - उल्टे सीधे हाथ से उल्टा सीधा काम करके कभी समाज का भला नहीं होने वाला है, मज़ेदार यह है कि जिन्हें पिता और पीता का फ़र्क नही मालूम, अनुस्वार या दीर्घ नही मालूम वो दूरदराज़ के आदिवासी गाँव में फेलोशिप लेकर फर्जी रिपोर्ट बना रहा है LinkedIn पर छाप रहा है इस उम्मीद में कि बिल गेट्स मिरांडा या अज़ीम प्रेम की नज़र पड़ेगी तो अनुदान की बरसात होने लगेगी, और इसके लिये वह कार्पोरेट्स के सारे इशारों पर नाचने को तैयार है, इनमें ज़्यादातर वो लोग है जो सदियों से वंचित तबके से है और अचानक इन्हें ज्ञान - गणित समझ आया तो झांझ - मंजीरे और तबला - पेटी लेकर मैदान में कूद गए हैं और बड़े-बड़े उत्सव, आयोजन एवं प्रायोजित यात्राओं के लंबरदार हो गए हैं, रिटायर्ड होने के बाद भी इनकी रूपयों - पैसों की हवस नहीं छूटी है, रिश्ते - नाते और संबंधों के नेटवर्क के जरिए या व्यक्तिगत नेटवर्क का इस्तेमाल करके ये लोग अभी भी रुपए कमाना नहीं छोड़ रहे
समाज कार्य का इस्तेमाल करके लोगों ने अरबों रुपया बना लिया और अकूत संपत्ति इकठ्ठा कर ली, गरीब और वंचित समाज की लड़कियों से शादी - ब्याह करके उनकी जमीन हड़प ली और ज्ञान के चलते-फिरते विश्वविद्यालय बन गए हैं, अव्वल दर्जे के धूर्त सरकारी अधिकारियों की आंख में मिर्ची झोंक कर रुपया कमाने की होड लगी है - जो जितना इसमें निपुण है वह उतना ही बड़ा दुकानदार है और समाजसेवी है, लेनदेन करके अपना उल्लू सीधा करने का नोबल घोषित हो तो और जाले साफ़ हो, सारे आंदोलन ठप है और सारे क्रियाकर्म खत्म - जो है वह सिर्फ रुपया है और बाकी विकास गाथाएं हैं जो 170 जीएसएम के चिकने पन्नों पर छपकर आ रही हैं
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जब एक बीज रोपते है तो पौधा उगता है, उसे खाद, पानी, हवा से मिट्टी में सींचना पड़ता है - एक दिन वही बीज वटवृक्ष बन जाता है - देखकर ख़ुशी होती है, पर जब पेड़ इठलाने लगें, उसके नये पत्ते और शाखें दर्प में झूमते हुए जड़ों को दुलत्ती मारने के प्रयास में लिप्त हो जाये और पेड़ के स्वामित्व की भावना का ज्वर इनमें सर चढ़कर बोलने लगे तो जड़ों को भी एकबारगी विचार करना ही चाहिये कि क्यों ना इस पेड़ के अस्तित्व को खोखला कर दें या स्वतः नष्ट हो जाये
यह बात घर, परिवार, संस्थाओं, समाज और किसी भी व्यवस्था पर भी लागू होती है, नई उम्र के दस - बीस साल वाले कच्चे, अपरिपक्व, अहमक और बदमिजाज लोग इस तरह के काम में निपुण होते है - फलस्वरूप घर, परिवार, संस्था या समाज से जड़ रूपी लोग एक दिन हट जाते है और ये सब भरभराकर गिर जाते है इससे इन बदमिजाज लोगों का तो कोई नुकसान नही होता - ये तो कही भी सिर्फ रुपया कमाने के लिये काम कर रहें है - इन तथाकथित प्रोफेशनल्स के पास ना तो विचार है, ना समझ, ना प्रतिबद्धता और ना दृष्टि पर घर, परिवार, संस्था या समाज का बहुत नुकसान हो जाता है जो एक वृहद उद्देश्य या मिशन लेकर चल रहे होते हैं
ये प्रोफेशनल्स जो सिर्फ़ रूपयों की भाषा, इशारे और अर्थ समझते है, जोड़-तोड़ से क्षणिक काम निकलवाकर अपना उल्लू सीधा करना जानते है और बेहद बदजुबान बनकर मूल्यों और तमीज़ से छेड़छाड़ करते है - उन्हें मालूम भी नही होता कि एक वटवृक्ष बनने में क्या - क्या संसाधन और समय जाया हुआ है, कैसे साँझे सपनों की नींव पर त्याग, समर्पण और त्रासदियों के बीच यह एक पेड़ या घर - परिवार या संस्था - समाज उभरकर मजबूती से आज खड़ा हुआ है
मज़ेदार यह है कि नींव के पत्थर भी इस आधुनिकता की बाज़ारू दौड़ में ownership को बिसराकर एक खेल, पोस्ट ट्रुथ, बदलाव, रूपयों के खेल, बाज़ार, सन्दर्भ और किसी के इशारों पर नाचना शुरू कर देते है और सब भूल जाते है, उन अँधेरे रास्तों से मुंह मोड़ लेते है जिनपर एक दूसरे को सहारा देते हम उजालों के मुहानों पर पहुँचे थे और एक स्वप्न को हक़ीक़त में बदला था, इसमें सबका श्रम नही लगा था बल्कि सबका खून जला था
घर - परिवार, संस्थाओं और समाज के निर्णयों में नये लोगों पर छोड़े, भरोसा भी करें ताकि वो सीखें - समझें, निर्णयन में शामिल हो पर इनके भरोसे साख और मूल्यों को दाँव पर ना लगायें - ये काम, यश, कीर्ति, रुपया तो दे देंगे पर आने वाले समाज में आपकी एक भद्दी नजीर स्थापित कर देंगे और यह दाग फ़िर कभी नही धुलेगा
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