" इस घट अंतर अनहद गरजै " ●●● अभी एक मित्र का फोन आया था अजमेर से तो बात करते - करते हम विचारने लगे कि वो माहौल ही खत्म हो गया - सरलता, सहजता और अपनत्व वरना तो काम में कितना लड़ते थे और फिर साथ मिलकर काम करते थे, आज तो डर ये है कि यदि आपने किसी को कुछ मुस्कुराकर भी कह दिया तो आपकी नौकरी जाएगी या आप को फायर कर दिया जायेगा *** संस्थाओं को टिककर काम करना नही है सरकारी हो गई है - अब ना सरोकार है , ना जुड़ाव, बस ठेके पर काम लेने है, ले देकर फंड जुगाड़ना है फिर थोड़ा बहुत दिखावे पुरता काम करके, सुंदर सी रिपोर्ट बनाकर आख़िरी किश्त वसूलना है, कलेक्टर को दस प्रतिशत देकर फाइनल पेमेंट लेना और अगले जिले में निकल जाना है - अगला जिला या मुहल्ला तलाशना है - जो है उससे सन्तुष्टि भी नही "और - और एवं और" की भूख ने सब खत्म कर दिया है - मानवता, कार्य संस्कृति, परस्पर सहयोग, मूल्य, वैचारिक भिन्नता की जगह,सम्मान, और अपनी बात कहने की आज़ादी भी यदि आप कुछ सुझाव दें तो सुनना पड़ता है कि "आप क्यों रायता फ़ैला रहें है, हम सब ओवर बरड़ण्ड है" *** देशभर में फेलोशिप का मकड़जाल बिछ गया है - गांधी...
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