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Showing posts from October, 2024

Khari Khari, Man Ko Chiththi, Drisht Kavi and other Posts from 16 to 21 Oct 2024

  " इस घट अंतर अनहद गरजै " ●●● अभी एक मित्र का फोन आया था अजमेर से तो बात करते - करते हम विचारने लगे कि वो माहौल ही खत्म हो गया - सरलता, सहजता और अपनत्व वरना तो काम में कितना लड़ते थे और फिर साथ मिलकर काम करते थे, आज तो डर ये है कि यदि आपने किसी को कुछ मुस्कुराकर भी कह दिया तो आपकी नौकरी जाएगी या आप को फायर कर दिया जायेगा *** संस्थाओं को टिककर काम करना नही है सरकारी हो गई है - अब ना सरोकार है , ना जुड़ाव, बस ठेके पर काम लेने है, ले देकर फंड जुगाड़ना है फिर थोड़ा बहुत दिखावे पुरता काम करके, सुंदर सी रिपोर्ट बनाकर आख़िरी किश्त वसूलना है, कलेक्टर को दस प्रतिशत देकर फाइनल पेमेंट लेना और अगले जिले में निकल जाना है - अगला जिला या मुहल्ला तलाशना है - जो है उससे सन्तुष्टि भी नही "और - और एवं और" की भूख ने सब खत्म कर दिया है - मानवता, कार्य संस्कृति, परस्पर सहयोग, मूल्य, वैचारिक भिन्नता की जगह,सम्मान, और अपनी बात कहने की आज़ादी भी यदि आप कुछ सुझाव दें तो सुनना पड़ता है कि "आप क्यों रायता फ़ैला रहें है, हम सब ओवर बरड़ण्ड है" *** देशभर में फेलोशिप का मकड़जाल बिछ गया है - गांधी...

Khari Khari, Drisht Kavi and other Posts from 11 to 16 Oct 2024

जुगन जुगन के हम जोगी || ●●●●● सामाजिक नागरिक संस्थाओं के काम का एक समय होता है - जब वे फील्ड में काम करती है, लोगों से जुड़कर, समस्याओं को समझकर और बड़े काम तथा पैरवी करके वे जनसुमदाय के लिये वृहद काम करती है, इनके काम से नीतियों और क्रियान्वयन पर बड़ा असर होता है इसमें कोई शक नही, पर एक समय बाद संस्थाओं में सिर्फ़ और सिर्फ़ जमे और बने रहने की होड़ लग जाती है, हर तरह के काम के लिये ये फंड जुगाड़ने में लग जाते है - शौचालय बनाना हो एड्स रोकने के लिये कंडोम प्रमोशन करना हो और फिर एक भयानक किस्म का दुष्चक्र आरम्भ होता है कि यह मेरा काम नही, यह उसका काम है, यह मुद्दा हमारे फ्रेम वर्क में नही, यह करने से एफसीआरए पर असर पड़ेगा और इस व्यक्ति या कार्यकर्ता होने से काम बिगड़ेंगे आदि आदि, एक दिन सारे कॉमरेड लोग किसी बिरला या जमनालाल बजाज परिसर में करोड़ो का दफ़्तर बनाकर विलीन हो जाते है इसलिये मुझे दो बात समझ आती है कि एक - संस्थाओं को एक अवधि के बाद फेज़ आउट हो जाना चाहिये, अपना सर्वस्व समुदाय या दूसरी संस्थाओं को देकर उस जगह या फील्ड से अलग हो जाना चाहिये - ताकि ठहरे हुए तालाब के पानी को सड़ने के बजाय वहाँ ...

Ratan Tata 10 Oct, Man Ko Chiththi and other Posts from 6 to 10 Oct 2024

"कि मैंने रतन टाटा को देखा है...." 2006-07 में मैं भोपाल में द हंगर प्रोजेक्ट में काम करता था, शिक्षा में काम करके आया था - स्कूल में शिक्षक, आर्मी स्कूल में प्राचार्य, एकलव्य में नवाचार आदि का लम्बा अनुभव था, भोपाल वाला काम जम नही रहा था - तो शिक्षा का काम खोज रहा था टाटा ट्रस्ट ने झारखंड के खूँटी जिले में काम आरम्भ किया था तो वे कोई अनुभवी व्यक्ति खोज रहे थे, मैंने आवेदन किया तो पहले दो - तीन राउंड में फोन पर बातचीत हुई और बाद में इंटरव्यू के लिये बॉम्बे हाउस मुम्बई में बुलावा आ गया भाई हिमांशु का दफ़्तर वही था, लोकल में घूमते हुए हम वहाँ पहुँचे, हिमांशु मुझे छोड़कर अपने काम पर निकल गया, बॉम्बे हाउस में हम 3, 4 लोग बैठे थे, पैनल में इंटरव्यू लेने वाली पदमा सारँगपाणी ट्रैफिक में कही फँस गई थी अचानक हलचल हुई और रतन टाटा जी ने प्रवेश किया , एक - दो लोगों ने उनका अभिवादन किया और दफ्तर के बाकी लोग अपना काम करते रहें, हमें देखकर रूके और बोले - "आप लोग...? हमने कहाँ इंटरव्यू है..... "ओह, फिर वही हमारे साथ बैठ गये... कहाँ से, क्या करते हो, किन समुदायों के साथ काम करते है ? ...