यह फ़िल्म स्मृतियों के झंझावातों के बीच जीवन खोजने की एक मुक़म्मल कोशिश है और डिमेंशिया को आइना दिखाकर पुराने प्रेम को नये संदर्भों में पुनर्जीवित करने की संभावना है पर सांसारिक व्यवधान अपनी जगह बदस्तूर है जैसे लगता है कि हवा में चलता झूला वही रूका रहें, किसी रोप वे पर चलता हिंडोला स्थाई रूप से ठहर जाये और हम नश्वर संसार के संग अपने प्रिय को निहारते ही रहें
एक पुराने क़स्बे में ज़िंदगी का जवान होना और भगदड़ तथा शांति के बीच शेष समय में बस हम सिर्फ़ खुशी से जीना चाहते है बग़ैर किसी दाँव पेंच के और इस सबमें कोई दोस्त, कोई माशूका या आशिक मिल जाये तो फिर और कुछ कहना - समझना बेमानी है
अफ़सोस कि जीवन वैसा होता नही - जैसा हम चाहते है, हम सबको जीवन एक बार पुनः अतीत में ले जाता है और तब हमें खुले दिल से माफी मांग लेनी चाहिये - ताकि शेष जीवन हम पश्चाताप की अग्नि में ना जलकर हम सामान्य हो सकें और शायद फिर कभी पलटकर ना देखना पड़े
हम सबको एक दिन सब कुछ भूल ही जाना चाहिये ताकि मरते समय मन में कोई क्लैश ना रहें और दिमाग़ पर कोई बोझ - पुराने शहर और गलियारे अक़्सर उन बूझे हुए कुओं की तरह है जहाँ से हमने कूदकर अपने को खत्म किया था और आगे बढ़ने का स्वांग कर नकली जीवन जीने का हुनर हासिल किया था, और इस उपक्रम में इतने पारंगत हो गए कि सिसकना भूल गये, संवेदनाएँ भूल गये और भौंथरे हो गए
भूलना असल में वरदान नही, सब कुछ याद रखने और व्यवस्थित सहेजने का बेहतरीन अभिनय है
[ फ़िल्म में स्व कुमार गन्धर्व और स्व वसुंधरा कोमकली की गाई गयी एक अदभुत रचना है जो सूरदास कृत है और ब्रज भाषा में है, इसे इतना सुंदर फ़िल्माया है कि मैंने 4 बार रिपीट कर - करके देखा ]
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Coordination अर्थात संयोजन या समन्वय इस समय संसार की सबसे बड़ी चुनौती है और समस्या भी, आज हमें इस कार्य में निपुण और दक्ष लोग चाहिये जो सबको साधकर कोई भी काम निर्धारित अवधि में और समय पर पूर्ण कर लें
दिक्कत यह है कि हम विविध भाषी, संस्कृति, शिक्षा, जाति, वर्ग, वर्ण, प्रतिबद्धता, कार्यपद्धति और अलग किस्म के, अलग मिज़ाज़ के लोगों के संग घिरे हुए है और सबको लगता है कि "किसी ने मुझे कुछ कह कैसे दिया", सबके इगो अभेद्य किलों की दीवारों की तरह इतने बढ़ गए है कि किसी की नाक पर भी मख्खी नही बैठ रही, सबको लगता है कि वो परम श्रेष्ठ है, ऐसे में अब सबके साथ रहना भी ज़रूरी है और सबको साधे रखना भी ज़रूरी है - क्योंकि किसी निर्जन द्वीप पर हम अकेले रहकर ना काम कर सकते है और ना आउटपुट प्राप्त कर सकते है, और यह इसलिये सबसे बड़ी चुनौती के रूप में मैं देखता हूँ - AI के ज़माने में यह कैसे सम्भव होगा, इसकी कोई सम्भावना हाल फिलवक्त नज़र नही आती
ऐसे में जो आदमी काम कर रहा है वह बेहद मुश्किल में है कि संयोजन करें या काम या सिर्फ़ गोली देते हुए गोलमोल करता रहें, आज शिक्षा, व्यवसाय और व्यवसायिकता के समय के साथ इस हुनर को भली-भांति सिखाने और व्यवहारिक रूप से कैसे जीवन और व्यवसायिक क्षेत्र में अपनायें - में सबको पारंगत करने की ज़रूरत है
रास्ता तो निकालना पड़ेगा गुरू कही ना कही से
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जाहिर सूचना
चंपालाल वल्द नत्थूलाल स्मृति पुस्तक मेले, झुमरी तलैया, में मेरी पुस्तक रखी है, मित्रों से अनुरोध है कि उधर जाए तो एक नज़र मार लें, नही तो कम से कम हाथ में उठाकर फोटू हिंचकर फेसबुक पे चैंप दें और टैग कर दें मेरे कूँ
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देवास ने आज एक बेहतरीन डॉक्टर खो दिया
डॉक्टर माधुरी लौंढे , कृष्णपुरा की रहने वाली और कवि कालिदास मार्ग पर क्लिनिक डॉक्टर शरद और डॉक्टर माधुरी जी इतने सज्जन और व्यवहारी कि कहा नही जा सकता, मराठी परिवार के संस्कार और परंपराओं में यकीन रखने वाले सेवाभावी दम्पत्ति को कौन भूल सकता है भला
उनकी तीनों बेटियों को पढ़ाने का सौभाग्य मिला स्मिता, मीनाक्षी और अश्विनी और तीनों के लिये वो अक्सर स्कूल में मिलने आते थे, दोनों उस समय मात्र दस रुपये फीस लेते और दवाई के नाम पर घर की ज्यादा चीज़ें इस्तेमाल को कहते जैसे अजवाइन, हल्दी, शहद या सौंफ जैसी ; दवाओं और दवाओं के ख़िलाफ़ थे और बहुत ज़्यादा आवश्यकता होने पर ही अपने पास से आये सेंपल की दवाएं मरीज़ को दे देते थे, अस्पताल में हमेंशा उपलब्ध रहते थे
माधुरी ताई इतनी सौम्य और शांत थी कि विद्वान होने के बाद भी कभी वो तर्क नही करती थी, शुरू में तो मैं उनसे बायलॉजी विषय को लेकर बहस करता था पर जब बाद में किसी से मालूम पड़ा कि वो डॉक्टर है तो फिर बोलती बंद हो गई , डॉक्टर शरद साहब अप्रतिम मज़ाकिया और हर विषय पर गम्भीरता से अपनी बात रखने वाले थे
मैं कक्षा 6 से 10 तक विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाता था सन 1987 - 89 तक, तब आठवी में एक पाठ था अंग्रेजी का William Tell उसमें एक चरित्र था Gestler एक बार दोनो ने आकर शिकायत की कि मैं उनके बच्चों को इस शब्द का गलत उच्चारण सीखा रहा हूँ , सही उच्चारण जेसलर होगा या गेसलर, वे पूछते थे क्योंकि जर्मन शब्द था, मुझे पता नही था कि मेडिकल विज्ञान जर्मन और फ्रेंच शब्दों से भरा पड़ा है और वे दोनो डॉक्टर है, युवा था मैं, अड़ गया कि मैं सही हूँ और अंग्रेजी में एमए हूँ - फिर उन्होंने कई दिनों तक अनेक शब्दकोश और सन्दर्भ देकर मुझे समझाया पर फिर बाद में हम दोनों इस बात पर सहमत हुए कि उच्चारण सापेक्ष होते है
इंदौर के मगा मेडिकल कॉलेज के दीक्षित दम्पत्ति देवास की शान थे, स्व डॉक्टर रामचन्द्र लौंढे के पुत्र और पुत्रवधु ने जो काम देवास के चिकित्सा इतिहास में किया उसे कोई कभी नही कर पायेगा
आज उनकी तीनों बेटियां मेरे लिए अपनी बेटियों के समान है और तीनों से उनके परिवार और बच्चों से मैं जुड़ा हूँ, स्मिता तो बेटे के लिये मेरे से वो कई वर्षों तक किताबें ले जाती रही पढ़ने को, और बेटा बड़ा हो गया और अब शायद फरवरी में उसकी शादी है मीनाक्षी मुम्बई में है और अश्विनी शायद गुजरात मे
माधुरी ताई के निधन से आघात लगा है और यह कह रहा हूँ कि ऐसे बिरले डॉक्टर इस धरा पर कम ही आते है जो पूरा जीवन सादा जीवन जीकर लोगों की सेवा में बीता देते है, बार बार उनका चेहरा सामने आ रहा है - छोटी सी, गोरी और सादे सूत की साड़ी पहने बहुत धीरे बोलने वाली माधुरी ताई अब कहाँ होंगी इस दुनिया में
तीनों बेटियों को यह दुख सहन करने की शक्ति मिलें और माधुरी ताई की आत्मा को शांति, सच में चिकित्सा जगत ने आज एक नायाब हीरा खो दिया
सादर नमन
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भोजन
एक चुकंदर, दो छोटे खीरे, एक देशी गाजर, एक टमाटर, दो हरी मिर्च, एक शिमला मिर्च, थोड़ा सा चाट मसाला और एक नींबू
बस सबको बारीक काटकर मिलाकर दिन में एक समय यही खा लें - पौष्टिक, सम्पूर्ण और सब तरह के शब्दों से दूर जैसे कार्ब, प्रोटीन, फेट, कैलोरी, शुगर, सॉल्ट, ब्लाह - ब्लाह - ज़्यादा टेस्ट चाहिये तो थोड़ा सा उबला ताज़ा मशरूम, ताजा मटर और ऑलिव के चार पाँच पीस डाल लें - स्वर्गिक स्वाद होगा, बोले तो मुंह में पानी
नए साल का यह भी एक प्रण है , यार 1600 किलो कैलोरी तो रोज़ खाना है बस, फल और यह खाकर शायद इससे भी कम कैलोरी शरीर को मिलें और यही बेहतर भी है
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