देवास ने आज एक बेहतरीन डॉक्टर खो दिया
डॉक्टर माधुरी लौंढे , कृष्णपुरा की रहने वाली और कवि कालिदास मार्ग पर क्लिनिक डॉक्टर शरद और डॉक्टर माधुरी जी इतने सज्जन और व्यवहारी कि कहा नही जा सकता, मराठी परिवार के संस्कार और परंपराओं में यकीन रखने वाले सेवाभावी दम्पत्ति को कौन भूल सकता है भला
उनकी तीनों बेटियों को पढ़ाने का सौभाग्य मिला स्मिता, मीनाक्षी और अश्विनी और तीनों के लिये वो अक्सर स्कूल में मिलने आते थे, दोनों उस समय मात्र दस रुपये फीस लेते और दवाई के नाम पर घर की ज्यादा चीज़ें इस्तेमाल को कहते जैसे अजवाइन, हल्दी, शहद या सौंफ जैसी ; दवाओं और दवाओं के ख़िलाफ़ थे और बहुत ज़्यादा आवश्यकता होने पर ही अपने पास से आये सेंपल की दवाएं मरीज़ को दे देते थे, अस्पताल में हमेंशा उपलब्ध रहते थे
माधुरी ताई इतनी सौम्य और शांत थी कि विद्वान होने के बाद भी कभी वो तर्क नही करती थी, शुरू में तो मैं उनसे बायलॉजी विषय को लेकर बहस करता था पर जब बाद में किसी से मालूम पड़ा कि वो डॉक्टर है तो फिर बोलती बंद हो गई , डॉक्टर शरद साहब अप्रतिम मज़ाकिया और हर विषय पर गम्भीरता से अपनी बात रखने वाले थे
मैं कक्षा 6 से 10 तक विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाता था सन 1987 - 89 तक, तब आठवी में एक पाठ था अंग्रेजी का William Tell उसमें एक चरित्र था Gestler एक बार दोनो ने आकर शिकायत की कि मैं उनके बच्चों को इस शब्द का गलत उच्चारण सीखा रहा हूँ , सही उच्चारण जेसलर होगा या गेसलर, वे पूछते थे क्योंकि जर्मन शब्द था, मुझे पता नही था कि मेडिकल विज्ञान जर्मन और फ्रेंच शब्दों से भरा पड़ा है और वे दोनो डॉक्टर है, युवा था मैं, अड़ गया कि मैं सही हूँ और अंग्रेजी में एमए हूँ - फिर उन्होंने कई दिनों तक अनेक शब्दकोश और सन्दर्भ देकर मुझे समझाया पर फिर बाद में हम दोनों इस बात पर सहमत हुए कि उच्चारण सापेक्ष होते है
इंदौर के मगा मेडिकल कॉलेज के दीक्षित दम्पत्ति देवास की शान थे, स्व डॉक्टर रामचन्द्र लौंढे के पुत्र और पुत्रवधु ने जो काम देवास के चिकित्सा इतिहास में किया उसे कोई कभी नही कर पायेगा
आज उनकी तीनों बेटियां मेरे लिए अपनी बेटियों के समान है और तीनों से उनके परिवार और बच्चों से मैं जुड़ा हूँ, स्मिता तो बेटे के लिये मेरे से वो कई वर्षों तक किताबें ले जाती रही पढ़ने को, और बेटा बड़ा हो गया और अब शायद फरवरी में उसकी शादी है मीनाक्षी मुम्बई में है और अश्विनी शायद गुजरात मे
माधुरी ताई के निधन से आघात लगा है और यह कह रहा हूँ कि ऐसे बिरले डॉक्टर इस धरा पर कम ही आते है जो पूरा जीवन सादा जीवन जीकर लोगों की सेवा में बीता देते है, बार बार उनका चेहरा सामने आ रहा है - छोटी सी, गोरी और सादे सूत की साड़ी पहने बहुत धीरे बोलने वाली माधुरी ताई अब कहाँ होंगी इस दुनिया में
तीनों बेटियों को यह दुख सहन करने की शक्ति मिलें और माधुरी ताई की आत्मा को शांति, सच में चिकित्सा जगत ने आज एक नायाब हीरा खो दिया
सादर नमन
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भागवत पुराण चलने लगें हैं
दिनभर माता - बहनें घर का चूल्हा चौका निपटाकर स्वर्ग से आये पन्डतजी के श्री चरणों मे बैठने लगी है, मंदिरों से भोंपू और घड़ियालों का आलाप जारी है, धूप की धूप, मटर मैथी छिलने साफ करने का काम सखियों के संग ढंग से पूरा होगा - स्वर्ग का टिकिट अलग पक्का , बहु बेटियों को भी सास ससुर से दिनभर की मुक्ति
गणेश आरती से शुरू होकर अब धीरे - धीरे दिन भर प्रवचन, फिर नृत्य, फिर भगवान की बारात और शादी होगी, फिर शाम को देर तक आरती और रात को युवाओं के ढोल ताशों पर डांस
थानेदार, बीट गार्ड बहरे है और कोई शिकायत करेगा तो मन्दिर में जाकर कहेंगे कि फलाने जी को शिकायत है या तो आवाज़ बन्द करो या उनको समझाओ
कलेक्टर एक डेढ़ करोड़ देकर पोस्टिंग पर आया है तो जाहिर है सत्ता और पूंजीपति की लुगाई है वो क्यों कुछ करेगा भला, आदेश तो सुप्रीम कोर्ट के भी है पर लबासना मसूरी, में उसे सीखाया गया है कि आँख, नाक, कान सब बंद - रुप्पया गिनो और आगे बढ़ो
बस फिर क्या है धर्म के रक्षक ढूँढते हुए फलाने जी के घर आयेंगे और महिलाएं कोसती हुई घर आयेंगी कि इस पार्टी के अध्यक्ष हमारे संरक्षक है आपको शर्म नही आती
पन्डतजी कॉलोनी के हर सेक्टर में रासलीला रचाते हुए आख़िर में दक्षिणा और सौ किलो धन धान्य लेकर चंपत हो जायेंगे
तो करें क्या
◆ भोंपू वालो को सख्त हिदायत दें
◆ ढोल ताशों वालों को चमकाएं
◆ डीजे वालों के डीजे जप्त कर लें
◆ पन्डतजी लोग्स को प्यार से एक रात थाने में बैठाकर प्रवचन दिए जाएं कि भागवत क्या है
◆ दक्षिणा पर जीएसटी लगाया जाए और रसीद देना अनिवार्य करें
◆ अन्न, कपड़ों के दान पर प्रतिबंध लगें
◆ देशभक्त कर्मठ युवाओं और धर्मप्रिय बुड्ढों और बेसुरों को भी पुलिस से समझाया जाए कि धर्म क्या है
बाकी तो हिन्दू राष्ट्र है तो सब मुमकिन है
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"जो है उससे बेहतर चाहिये, दुनिया को एक मेहतर चाहिये"
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हिंदी के पुरस्कार, जातिवाद, कुपढ़ प्राध्यापक, पूंजीपतियों की गुलामी करते बंधुआ मजदूरनुमा कवि और कहानीकार, शिक्षा के नाम पर मठ और गढ़ में चाकरी करते अवसाद और संताप से भरे साहित्यकार, फर्जी कॉमरेड, अपराध बोध और मानसिक रूप से विक्षिप्त कवि - कहानीकार, घोस्ट लेखक, गिद्ध की तरह से किसी मरी लाश पर अटैक करने वाले लेखक, प्राध्यापक, पीजीटी टाईप परजीवी और अंत में जुगाडू लेखक और सबसे ज़्यादा दिलीप मंडल टाईप जातिभेदक जीव जंतु
मतलब एक लौंडा उजबक किस्म का लिखना शुरू करें, नंग धड़ंग फोटू डाले, साम्प्रदायिक हो जाये, रजनीगंधा उत्सव में जाये और फिर नौटँकी होने पर घर वापसी टाइप नाटक करें, किसी दुनिया के लेखक के आइडिया चुराकर हिंदी में तुकबंदी करें और भारत भूषण के पाँच निर्णायकों की चिरौरी करते पूरी जवानी बीता दें फिर पुरस्कार ना लेने की शर्त के बदले किसी घटिया महाविद्यालय या विवि में मास्टरी स्वीकार लें एडहॉक वाली, दूसरा ना मिलने और फ्रस्ट्रेट होकर कुछ भी लिखने लगे, हिन्दू और पक्का ब्राह्मण बन जाये और फिर वो उम्र निकलने पर अन्य विधाओं में हाथ साफ़ करने लगे
इसके आगे की कहानी मज़ेदार है - अलेस, प्रलेस या जलेस की टुच्ची राजनीति या किसी रिटायर्ड कवि को इष्ट मानकर चरण वंदना करते हुए अपना जीवन बीताने लगे - जिस आदमी को ढंग से माइक पकड़ना नही आता वह देश भर में अपने इष्ट की पूंछ बनकर कविता पाठ करता रहें हकलाते हुए और अपनी दो कौड़ी की किताबें छपवा लें या दो - चार पत्रिकाओं का सम्पादन कर राज्य स्तरीय स्वयंभू महासचिव या ज्ञानी बनकर देश भर में साहित्य का पंडित बनकर ज्ञान पलटा रहें
पुरस्कार बन्द करो और इन फर्जी घोर जातिवादी और आत्म मुग्ध फर्जी ज्ञानी और पंडितों को पढ़ना - लिखना बन्द करो, ये बात तो जातिवाद मिटाने की करते है और किसी दलित के घर पानी पीना तो दूर घर ने खड़े होना पसंद नही करते, सिवाय विशुद्ध घटिया आदमी होने के कुछ नही है ये लोग, स्कूल से लेकर विश्वविद्यालयों में राजनीति, सेटिंग और जोड़ - तोड़ के कुछ नही करते और अपनी कचरा किताबें छपवाकर पर्यावरण का कबाड़ा कर रहे है , नौकरी के समय में फेसबुक चलाकर ज्ञान देने वाले कितना जस्टिस अपनी नौकरी से कर रहें है कोई पूछेगा इनसे , साल में लगभग तीन माह ये आयोजनों , सेमिनारों और कार्यशालाओं और साहित्य नुक्तों में जमे रहते है - इतनी छुट्टियाँ कैसे मिल जाती है कोई बताये जरा
बहरहाल, बोलिये मत ये गिद्ध आक्रामक होकर आपका भक्षण कर जाएंगे और फिर भी इनकी क्षुधा शांत नही होगी
अभी यवतमाल में एक एनजीओ के वरिष्ठ साथी ने बताया कि उनकी संस्था में मगा हिंदी विवि वर्धा से लेकर देश के अन्य विवि के हिंदी के पीएचडी और तथाकथित लेखक और क्रांतिकारी मात्र दस हजार में नौकरी कर रहे है ढेरो की संख्या में और उन्हें बेसिक समझ नही है ना विषय की, ना समाज की और ना काम की और ये लोग सिर्फ जुगाड़, सेटिंग और पुरस्कार की जुगाड़ में लसर - लसर करते रहते हैं
संजीव को मंडल ने कल ओबीसी बोला,
आज एक पत्रकार ने कहा कि तृतीय श्रेणी कर्मचारी मतलब लेब तकनीशियन है और जाति से नाई है, अब और क्या चाहिये, संजीव का जीवन भर का लिखा - पढ़ा एक तरफ और जाति प्रमाणपत्र एक तरफ - ये है हिंदी का कुंठित संसार मित्रों और इसमें वो सब सम्भवत शामिल हो जो इस दौड़ से निष्कासित कर दिये गए हो
मजे करिए - अपन अब ना दौड़ में है और ना किसी पचड़े में पर चुप नही रहेंगे मुक्तिबोध कहते थे, "दुनिया को एक मेहतर चाहिये"
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◆ सुरक्षा चूक पर जवाब नही
◆ 150 सुरक्षा कर्मी की भर्ती क्यों नही इस पर जवाब नही
◆ करोड़ो खर्च करके नई संसद बनी पर इतने लूपहोल्स है इस पर जवाब नही
◆ एक भी शब्द विरोध में सुनना नही है
◆ ना संसद में लोकतंत्र है ना व्यवहार में
◆ तीन राज्यों में चीट पकड़वाकर मुख्य मंत्री बनवा दिये यह सर्वसम्मति से नेता चुनना है
◆सबको मूर्ख समझकर तानाशाही से देश चलाना है
◆ जो भी बोलेगा उसे मरवा दो या खत्म करके पप्पू साबित करो
◆ कोई ताक़तवर हो तो रुपयों से खरीद लो, अम्बानी अडाणी की तिजोरी खुली ही है
◆ और संसद में कोई भी विरोध ना करें यदि करें तो एक साथ 80 के करीब सांसदों को निलंबित कर दो
"और फिर बोलो मोदी है तो मुमकिन है"
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देश की जनता मूर्ख है और यही डिज़र्व भी करती है, अभी 2029 तक यही सब मनोरंजन रोज़ देखना है
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कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
◆ अहमद फ़राज़
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"सुनिये, एक लिंक और सन्देश आपको मैसेंजर और वाट्सअप पर भेजा है" - उधर लाईवा था
"क्या है इसमें" - मैंने पूछा
"मेरी किताब की लिंक है, अमेजॉन वाली, आप क़िताब मंगवाये, पढ़े और समीक्षा करें " - लाईवा चहक रहा था
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