The Railway Men
थोड़ी अतिशयोक्ति थोड़ी वास्तविकता और थोड़ी रंजकता के साथ भरी एक बार देख डालिये "द रेलवे मेन", पुराने रेलवे तंत्र, व्यवस्थाओं, और बस्तियों की बनावट से लेकर लोगों की नैतिकता और वास्तविक चरित्र को समझने के लिए यह एक बेहतरीन डाक्यूमेंट्री है
के के मेनन, माधवन, जूही चावला के संग साथ इरफान के पुत्तर बाबिल का अभिनय कमाल है और जब वह कहता है "यह मेरी बस्ती है तो सारे जाले साफ़ हो जाते है" फर्जी देशभक्तों को यह देखना चाहिये और आश्चर्य यह है कि गिरोह के लोगों के कोई फोटो मुझे याद नही पड़ते जो उस समय सेवा में लगे हो, बाकी तो हर अड़ी सड़ी दुर्घटनाओं में अपने प्रचार के फोटो चैंपने में उस्ताद है यह संगठित गिरोह
भोपाल गैस त्रासदी के समय हम कालेज के पहले ही वर्ष में थे, एक मित्र की बहन उस समय वहां थी और पुरानी कुटुंब पार यानी एम्बेसेडर में उसके परिवार को लेकर आये थे देवास
स्मृतियों में लाशों के अंबार, चीखें, क्रंदन और भयावह तस्वीरों के अलावा कुछ नही है, बाद में एकलव्य और भारत जन विज्ञान जत्थों के साथ एकलव्य द्वारा प्रकाशित पुस्तक " भोपाल गैस त्रासदी - जनविज्ञान का सवाल" ने काफी जाले साफ किये, बहुत नुक्कड़ नाटक किये , जब्बार भाई , साधना कर्णिक , स्व दविंदर कौर उप्पल, स्व विनोद रैना, अनिल सदगोपाल, मीरा, और अनेक कार्यकर्ताओं के साथ लम्बे समय तक जूझें है और इसलिये यह फ़िल्म अतिरेक लगती है जो सिर्फ़ रेलवे के एक ट्रेन की कहानी कहती है जबकि कहानियाँ आज भी धड़क रही है
किसी को देखना हो तो छोला रोड़ पर सथ्यू यानी सतीनाथ षड़ंगी और रचना ढींगरा के अस्पताल में जाकर देखे कि लगभग चार दशक बीत जाने के बाद भी क्या हालत है
वॉरेन एंडरसन, तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री अर्जुन सिंह भारत के सुप्रीम कोर्ट वकील और सरकारों का जादू देखना हो और समझना हो तो भोपाल जाना चाहिए पर अब हालात अलग हैं परिस्थितियों अलग है, आज भोपाल गैस त्रासदी के बारे में कोई बात करना नहीं चाहता और ना ही भोपाल का नाम अब दुनिया के नक्शे पर भोपाल की गैस त्रासदी के नाम पर दर्ज है
पीड़ितों की अपनी व्यथा है, लोग विदेश में रहकर भी ताउम्र मिलने वाली पेंशन ले रहे हैं और जो असली पीड़ित थे - वे आज भी जूझ रहे हैं, गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए बना अस्पताल आज राजनीति के चंगुल में बुरी तरह से फंसा हुआ है और आए दिन यहां पर राजनीति और दांवपेंच देखने को मिलते हैं
बहरहाल, यह चार अंको की बनी सीरीज सिर्फ एक छोटी सी घटना को लेकर बहुत सारे सवाल खड़े करती है पर इसमें कोई आगे का जवाब नजर नहीं आता कि ऐसी बड़ी त्रासदियों से कैसे निपटा जाए और विश्व को कैसे बचाया जाए भोपाल गैस त्रासदी के बाद हुआ चेर्नोबिल परमाणु हादसा भी यादगार था और उसके बाद तो लगातार इतने नरसंहार हुए हैं कि कहना मुश्किल है
आज तो हम सबके नीचे बम है और कब कौन कहाँ से आग लगाकर इस दुनिया को खत्म कर देगा कहना मुश्किल है, युद्ध, त्रासदियां और परमाणु खतरे के साथ हथियारों की होड़ में हम सब असुरक्षित है , खैर
***
चाँद और सूरज पर पहुँचने वाले हम लोग एक सुरंग से 13 दिन के बाद भी 41 भारतीय नागरिकों को निकाल नही पा रहें है
यह अलग बात है कि तमाम तरह की शक्तियां लगी है और विदेशों से तक मशीनों और विशेषज्ञ बुलाने पड़ें
क्या तरक्की की है हमने
और दुखद यह है कि सारे नियम कायदों को दरकिनार करके यह काम किया गया और धामी खुद यह स्वीकार कर रहें है , वीके सिंह साहब को मीडिया कंट्रोल के लिये चौकीदार की भांति बैठा रखा है सरकार बहादुर ने कि बदनामी ना हो या निज छबि ना बर्बाद हो जाये
आज मीडिया के कुछ लोग जब यह उजागर कर रहें है तो सारी पोलपट्टी खुल रही है
फिर पहाड़ों पर क्यों न भूस्खलन हो या बरसात का तांडव हो या केदारनाथ पर आपदा आये मतलब कोई नियम कायदे नही बस फायदा और फायदा
अभी यह मालूम नही पड़ रहा कि ठेका किसका था
***
एक बड़ा और गलत फ़ैसला है और मैं इससे पूर्णतया असहमत हूँ
यह कमाई, पूंजीपति और पब्लिक स्कूल के नाकारा और अयोग्य बच्चों को मेडिकल में प्रवेश दिलाने की साजिश है क्योंकि इंजीनियरिंग में अब स्कोप नही रह गया है
इससे निजी मेडिकल कॉलेजेस को लाभ होगा और गरीब, वंचित वर्ग के बच्चों की सीट्स भी ये पब्लिक स्कूल के बच्चे डोनेशन से छीन लेंगे, सरकारी मेडिकल कालेज खुल नही रहें नये और जो है वे PPP मोड़ पर अधिकांश कॉलेजेस चल रहे है , सरकार और पूंजीपतियों को स्वास्थ्य के क्षेत्र में अवसर और रुपया ज़्यादा नज़र आ रहा है क्योंकि मेडिकल टूरिज्म जिस अंदाज़ में बढ़ा है - वहाँ ये सब काली कमाई का साधन बनेगा
हालांकि यह बात है कि 12 वीं तक कुछ खास समझ नही होती विद्यार्थी की पर विषय की बेसिक पकड़ और तथ्यात्मक जानकारी तो हो जाती है
इस फ़ैसले पर पुनर्विचार की ज़रूरत है
क़यामत की रात है आज
नागपुर जा रहा हूँ ट्रेन के कोच में दो परिवार है और 9 बच्चे - निहायत गंवार, मूर्ख और जाहिल, दो जोड़ पति - पत्नी है और 9 बच्चे - शर्म भी बेच खाई है इन अनपढ़ टाइप हरामियों ने
ना बर्थ स्पेसिंग का मतलब मालूम है और ना ही अभिभावक बनने की अक्ल, एक परिवार की चार लड़कियाँ और एक लड़का है और दूसरे परिवार की चारों लड़कियाँ, बमुश्किल एक - एक साल का भी अंतर नही बच्चों में और पति पत्नी की उम्र 30-32 होगी लगभग
सारा डिब्बा परेशान है, यह थर्ड एसी का कोच है, रुपया कमाने से अक्ल आ जायेगी या लोगों का जीवन स्तर सुधर जायेगा या वे कुछ जीवन मूल्य समझ पायेंगे या समता - समानता समझ सकेंगे यह एकदम गलत है और हर कोई अब भ्रष्ट तरीको से रुपया कमाकर सुख शांति बर्बाद कर रहा है
हिंदुस्तान में जब तक पेरेंटिंग की, मोबाइल पर बात करने की ट्रेनिंग नही दी जाती तब तक सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे घटिया लोगों को कही भी आने जाने की इजाज़त नही दी जाना चाहिये
जाहिर है हिन्दू ही है और जाति बताने की ज़रूरत नही है, फिर बोलो कि जात का असर नही जाता तो आप कहेंगे कि मैं पूर्वाग्रह से ग्रसित हूँ - आप समझ सकते है
काश सरकार परिवार नियोजन और Contraceptive Promotion को कड़ाई और गम्भीरता से अभी भी लागू कर दें, नही तो 200 करोड़ होने में 5 साल भी नही लगेंगे [19 Nov 2023 In Train]
Comments