उड़ते पंछी का ठिकाना
और 1989 के बाद पुनः एक बार छात्र बनकर पढ़ने की हिम्मत की थी, एलएलबी करने का सोचा था क्योंकि Law of the Land जानने की प्रबल इच्छा थी - सीखना समझना था, बीच - बीच में काम से तड़ी मारकर, छुट्टियाँ लेकर, नौकरियां छोड़कर बहुत सारी पढ़ाई की, और खूब मस्ती करके सीखने का आनंद लिया - फिर वो चित्रकूट विवि हो या टाटा सामाजिक संस्थान मुम्बई या पांडिचेरी या इंदौर के देवी अहिल्या विवि में
कोविड की विभीषिका और ना जाने कितनी दिक्कतों के बाद एलएलबी पूरा किया, दिक्कत इसलिये कि काम सफ़र का है, देशभर घूमता रहता हूँ और कानून की पढ़ाई योद्धा की तरह होती है जहाँ रोज जाना ही है कालेज भी और कोर्ट कचहरी भी , एलएलबी पास हुआ तो आत्म विश्वास बढ़ा
फिर देवास कॉलेज में मास्टर का कोर्स नही था, और तत्कालीन प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा, मेरे परिचित थे तो स्थानीय प्राचार्य डॉक्टर अजय कुमार चौहान साहब ने बहुत श्रम से औपचारिकताएं पूरी की और मैंने अपने मित्र से अनुरोध किया तो शासन से अनुमति मिली, फिर विक्रम विवि से मान्यता मिली और इस तरह एलएलएम में प्रवेश लिया, इस महाविद्यालय को मास्टर कोर्स दिलवाने में एक छोटी सी भूमिका है और अब चाहता हूँ कि यह विधि का बड़ा शोध केंद्र बन जाये
ये दो साल भी भागदौड़ और कई तरह के काम करते हुए गुजर गए बस उतनी छूट मिली कि जब मन करता था तो कॉलेज चला जाता था पर घर पढ़ना लिखना जारी रहा और इस तरह से ये दो साल भी पूरे हुए
आज अंतिम सत्र की मौखिकी सम्पन्न हुई, विक्रम विवि में विधि की संकायाध्यक्ष डॉक्टर अरुणा सेठी ने यह कार्य सम्पन्न किया और इस तरह से पुनः एक बार विद्यार्थी जीवन पर क्षणिक विराम लगा है पर अभी हिम्मत बाकी है - देखते है आगे क्या और किया जा सकता है, विधि में भी शोध करने का इरादा तो है देखें दिल-दिमाग ठीक रहा तो जल्दी ही कुछ काम शुरू करूँगा
"मन है छोटा सा , उड़ने की आशा" देखें किस्मत कहाँ ले जाती है
कितना कुछ है जीवन में सीखने को और हम समय व्यर्थ गंवाते रहते है, सबको पढ़ते रहना चाहिये - हम जैसे लोगों के पास और कुछ विकल्प है भी क्या सिवाय इसके कि अपनी हथौड़ी की धार को कुंद होने से पहले रगड़ते रहें नियमित, वो पंक्तियाँ है ना -
"अपना क्या है इस जीवन में
सबसे लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार"
आज के कुछ भावुक रखने वाले फोटोज़ जो अब धरोहर है शेष बचे जीवन के लिये
आभार डॉक्टर रहमान का, डॉक्टर अजय कुमार चौहान, डॉक्टर ज़ाकिर खान, सीएम भालोट, अर्पित जैन, डॉक्टर भारती जोशी, डॉक्टर आशीष ब्रज, डॉक्टर मीना वागड़े, किशोर चौधरी, संदीप रावत, महाविद्यालयीन स्टाफ और मेरे साथ पढ़ने वाले नन्हें मोतियों का जिन्होंने मस्ती करके मेरे पुराने दिन लौटाये और इस सारे फ़साने में घर के लोग, मेरे बच्चे, मेरी जीवन रेखाएँ शरविल, शताक्षी और अर्निका जो ऊर्जा थे और अब उन्ही के लिये बेहतर दुनिया बनाने के लिये काम करना है, साथ ही सचिन जैन का साथ नही होता तो यह सब महज सपना ही रहता
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