"आपका कोई टिकिट करवाने वाला दलाल पहचान का है क्या" - उसका फोन आया, मतलब अपने लाईवा का "अबै उसे एजेंट कहते है, कहाँ जाना है"- मैंने पूछा "जी , अबकी बार कोच्चि , बड़ी काव्य गोष्ठी है" - वो बोला "अरे ये वही दल्ला है क्या - जिसने पिछली बार इम्फाल में गोष्ठी करवाई थी" - मैंने पूछा "अरे वो आयोजक है, खनिज और खनन विभाग का बड़ा बाबू है, अब दो साल बाद ट्रांसफर हो गया तो नई जगह धौंस जमाने को बड़े - बुड्ढों को इकठ्ठा कर कवि गोष्ठी करता है, कवि भले घटिया हो पर आदमी बढ़िया है, हाँ वो दलाल का नम्बर दो ना यार, रुको घर ही आता हूँ" - फोन रख दिया था उसने #दृष्ट_कवि *** "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए..." सिर्फ़ गीत या कोई घटिया गाना नही था, कड़वी हकीकत भी है और इसके पश्चात के गिल्ट्स, एकालाप और शाब्दिक अवसाद तो देखिये मुन्नी के मुन्ना ऑटोवाले के शब्द याद आते है जो उसने हैदराबाद एयरपोर्ट पर उस शाम मुझे छोड़ते हुए कहें थे बेगमपेठ पर - "जो मेरे काम का नई, वो किसी काम का नई" ____ जा रे, ज़माना विवादों का इंतज़ार है [ शुभकामनाओं के पीछे का सत्य...
The World I See Everyday & What I Think About It...