साहित्य, साहित्य के धन्धेबाज इतने नीरस, उबाऊ और पकाऊ हो गए है कि ना पढ़ने की इच्छा बची है ना कुछ लिखने की
बेहतर है साहित्य त्यागकर कुछ और किया जाये मतलब सिवाय बकवास, आत्म मुग्धता, निंदा, चुगली, नीचता और घटियापन के कुछ शेष नही
वही कि हर जगह गैंग है, मवाली है, कुपढ़ है, बकलोल है, लठैत है और निरापद लोग है, जिन लोगों का समाज, समुदाय और बदलाव से सरोकार नही उनसे क्या रिश्ता और दोस्ती रखना, अपने को कोई शौक भी नही अब, किसी से कोई "रोटी - बेटी का सम्बंध तो करना नही या निभाना है", गैर सरोकारी लोगों से रिश्ता निभाने में समय क्यों बर्बाद करना, मरे ससुरे मेरी बला से - बहुत कुछ अभी पिछले कुछ दिनों में स्पष्ट हो गया
लिहाज़ा, आज से सब बकवास को अलविदा, बस अब ना किसी को लिखना, ना किसी को पढ़ना - बेहतर है जो साहित्य के धन्धेबाज है वो विदा ले लें या छंटनी करनी पड़ेगी , 70 - 80 मंजे हुए लोगों को अभी तक निकाल दिया है सूची से, अभी यह क्रम जारी रहेगा अगले पूरे हफ़्ते, बस 300 -350 तक सूची रहेगी, जरूरत ही नही इन ज्ञानियों की
मैं भी कम नही किसी से पर जब अपने को किसी से अब मतलब नही तो क्या अर्थ है फालतू समय बर्बाद करने का और लफड़ों में पड़ने का और झगड़े करने का, विचारधारा का तो अब मतलब नही , सब रंगे सियार और गिरगिट है बाकी तो जो है हइये है
रचतें रहो और अपनी ही आत्म मुग्धता में बने रहो
कृपया उम्मीद न करें कोई, न क़िताब भेजे, जगह नही और समय भी नही आपकी पब्लिसिटी करने का या आपकी पोस्ट पर दिमाग़ लगाने का, वैसे ही कम अक्ल हूँ , हाँ एक बात जरूर है कुछ लोगों को छोडूंगा नही - यह साफ़ है
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