Ammber Pandey की पोस्ट अपनी विशेष टिप्पणी के साथ
◆ A Grade के लिये पहली शर्त यह है कि कम्प्यूटर या मोबाइल एप की समझ और उपयोग आना जरूरी है, ताकि अड़े - सड़े कवियों की घटिया कविताओं के कुछ हिस्सों के पोस्टर बनाकर रोज नित्य कर्म करते समय बगैर नागा 265 लोगों को एक साथ वाट्सएप पर ठेल सकें और ये कॉपी पेस्ट कवि प्रगतिशील हो तो और बढ़िया, तृतीय श्रेणी का रिश्वतखोर बाबू हो तो गज्जब होगा, कालेज या विवि के माड़साब लोग्स या ब्यूरोक्रेट्स अपनी वाली वाल पर चैंप देते है शुक्रिया करते हुए
◆ कालेज के फर्जी और मक्कार मास्टर शहर में घूमने आई (पतियों के संग) हर सुंदर या काली - पीली महिला (ये इन्ही के शब्द है) से किसी दूसरे के घर चाय पर मिल सकते है और दूसरों की चरित्र हत्या कर सकते है और खुद को सच्चा मोती साबूदाने का और दूध के धुले साबित कर सकते है, ये नीच लोग कभी जेब से एक रुपया नही खर्चेंगे
◆ B Grade के लिए चार किस्म के # से बूढ़ी कवयित्रियों और युवा लौंडों से ठिठोली करते आना चाहिये, कविता से लेकर फिल्मी गानों और मरे खपे हीरो - हीरोइनों पर लिख सकें, कुछ बुढियाएँ इसी से पोस्ट पर आती है, साथ ही हर आयोजन में आयोजक को दबाव देकर अपने नाम के आगे "युवा" लिखवाना आना चाहिये , ससुरे चाहे खुद रिटायर्ड मेन्ट यानी कब्र में पाँव डालकर मरने को पड़े हो, या इनकी औलादें बेंगलोर या हैदराबाद में गांजे - भाँग में डूबी हो या नाती पोते हो गए हो, पर ये गंजे सिर पर 7 ₹ का गोदरेज डाई लगाकर काले बाल करके जवान बने रहेंगे
◆ और सबसे बड़ा गुण कि महीन और विनम्र आवाज़ में सबकी निंदा करने में दक्ष हो, बड़े कला भवनों के प्रशासनिक और ब्यूरोक्रेट्स की चापलूसी में प्रवीण, इनकी बीबियो को ख़ुश करने में अव्वल और तीसरे की चौपहिया गाड़ी में दौड़कर चढ़ने में पारंगत होना चाहिये - भले फिर वह किसी की श्रद्धांजलि का कार्यक्रम हो या मुंडन का
जय हो इन निर्लज्जों की
और इस भड़ास के बाद अम्बर की पोस्ट
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C-ग्रेड साहित्यकार कैसे बने?
अत्यंत गर्व का विषय है कि गेहूँ-चावल-दाल, भैंस, बकरी, सेबफल इत्यादि की तरह हिंदी में साहित्यकारों का भी ग्रेडिंग सिस्टम अर्थात् दरजा-प्रणाली है। भारतवर्ष के लोकतांत्रिक इतिहास को देखते हुए यह दरजा देने हेतु कोई संस्थान नहीं बल्कि साहित्यकार अपनेआप अपना दरजा जानकार अनुकूल व्यवहार करता है। उपकार गाइड के विद्यार्थियों के लिए यह जानना परमावश्यक है कि c-ग्रेड साहित्यकार दरजा कैसे पाए—
c-ग्रेड (तृतीय दर्जे के साहित्यकारों) होने के लिए क्या करे?
१. c-ग्रेड साहित्यकार होने के लिए लिखने से अधिक विभिन्न स्थानों पर होनेवाले कार्यक्रमों की जानकारियाँ रखना आवश्यक है ताकि ज़िम्मेदार व्यक्ति को फ़ोन करके अपने न्यौते की व्यवस्था की जा सके। c-ग्रेड साहित्यकार छोटे छोटे क़स्बों में होनेवाली साहित्यिक गोष्ठी में भाग लेकर साहित्य की सेवा करता है। जब भी c-ग्रेड साहित्यकार गोष्ठी में एक दूसरे से मिलते है तो पूछते है, “कैसे आए हो?” वैसे उद्देश्य यह जानना रहता है कि हवाईजहाज़ का टिकट मिला है या रेलगाड़ी के जनरल डिब्बे का मगर उत्तर मिलने पर कि मगध इक्स्प्रेस आए है या ट्रैक्टर से आए है, c-ग्रेड साहित्यकार उत्तर देता है, “आपका कविता के प्रति कमिट्मेंट है पार्ट्नर। अपना भी ऐसा ही है।” यदि गलती से b-ग्रेड साहित्यकार ने बतला दिया कि वोल्वो बस में बढ़िया सोते हुए आया है तो c-ग्रेड साहित्यकार आयोजकों से मन ही मन ग़ुस्सा हो जाता है। दूसरे c-ग्रेड साहित्यकारों से अपना दुःख बयान करता है मगर आयोजक से कभी कहता नहीं कि अगली बार कार्यक्रम में न बुलाइएगा। दूसरे c-ग्रेड साहित्यकार से इतना ज़रूर कहता है कि, “अपनी तो पार्टनर आदत है कभी शिकायत नहीं करते। अब वोल्वो में सफ़र करने निकले है कि साहित्य की नि:स्वार्थ सेवा करने।
२. c-ग्रेड साहित्यकार आने जाने के लिए उन्हें बस, रेलगाड़ी का जनरल डब्बा या गधैया क्या दिया गया है इसकी परवाह नहीं करते किन्तु दारू न मिलने पर आयोजन मटियामेट कर सकते है। जो दारू a/b-grade के साहित्यकारों को सहज उपलब्ध रहती है उसके लिए c-ग्रेड साहित्यकारों को सुबह उठते से ही आयोजकों से मनुहार/मनौतियाँ करना शुरू कर देना पड़ता है। आयोजक भी इन्हें दिलासा देता रहता है कल नहीं हो पाई मगर आज शाम को बढ़िया व्यवस्था कर दूँगा, आप चिंतित न हूजे मगर दारू कभी पिलाता नहीं क्योंकि c-ग्रेड साहित्यकार अकसर स्व-निमंत्रित होते है।
किसी भी c-ग्रेड साहित्यकार के लिए दारू अपने कर्तव्य-निर्वाह के लिए परम आवश्यक होती है क्योंकि c-ग्रेड साहित्यकार बनने के लिए जो विशेषता सबसे ज़रूरी है वह है- a तथा b ग्रेड साहित्यकारों के बारे में तरह तरह की अफ़वाहें फैलाना, अपने अन्य c-ग्रेड साहित्यकारों से a/b ग्रेड साहित्यकारों की उनकी निंदा करना और उनकी अज़ीब अज़ीब जीवनियाँ गढ़ना। यह सब दारू रूपी प्रेरणा के बिना उत्तम प्रकार से नहीं हो सकता। आयोजक a/b ग्रेड साहित्यकारों की मेज पर बहती महँगी दारू में से एक बोतल c-ग्रेड साहित्यकारों की टेबुल पर रख जाता है (क्यों रख जाता है इसका विवरण आगे दिया जावेगा)। c-ग्रेड साहित्यकारों में से एक आयोजक को गंदी गाली देता है कि, “साला एक दे गया। उसी (a/b ग्रेड साहित्यकारों की मेज) टेबुल पर देगा अब वहाँ बाबूदयाल शर्मा जो बैठा है। यह वही बासठ वर्षीय बाबू दयाल है जिसका उपन्यासकार नंदिनी पोखरियाल के साथ अफ़ेयर चल रहा है” और शुरू होता है गॉसिप का दौर। प्रत्येक वृद्ध से वृद्ध और युवतम साहित्यकारों के बिस्तर से लेकर प्रकाशन के क़िस्सों का c-ग्रेड साहित्यकार परस्पर श्रवण करते है। इसमें से कोई एक c-ग्रेड साहित्यकार दारू प्रायोजित कर देता है और यह लोग अपनी बैठक धर्मशाला या होटेल में किसी c-ग्रेड साहित्यकार के कमरे में ले जाते है ताकि हिंदी साहित्य की सेवा ठीक तरह से कर सके। सिगरेटें फूंकी जाती है, बड़े साहित्यकारों ने बड़ा होने के लिए क्या क्या जोड़तोड़ की, किसे गुदादान किया किस से गुदादान लिया इत्यादि विस्तृत रूप से एक दूसरे को बतलाया जाता है। इन्हीं में c-ग्रेड महिला साहित्यकार भी आ जुटती है और गंदे मज़ाक़, रूठ-मनोव्वल चल निकलती है।
दारू, अफ़वाह, सेक्स c-ग्रेड साहित्यकारों में भी यही सब कुटेव हम देखते है बस बड़े साहित्यकारों की तरह वे इसे साहित्यिक रूप से सही सिद्ध नहीं कर पाते। जैसे एक c-ग्रेड महिला साहित्यकार जब c-ग्रेड पुरुष साहित्यकार के कमरे में जाती है तो कहती है, “देखिए मेरे मिस्टर इसकी इजाज़त नहीं देते और मैं ऐसे किसी के कमरे में जाती भी नहीं। मैं बस यहाँ इसलिए आई हूँ कि आप ख़ुद को आज अपनेआप सम्भाल न पाएँगे”। बड़े साहित्यकार इसी काम को आत्मविश्वास से अंजाम देते है और इस पर कविताएँ लिखते है जबकि c-ग्रेड साहित्यकार यह करने के बाद पुरुष हुआ तो फ़ेसबुक पर अपनी बीवी बच्चों का फ़ोटो लगा देता है और स्त्री हुई तो छलनी से अपने सॉफ़्टवेयर इंजीनियर पति का मुख निहारते हुए तस्वीर WhatsApp पर चेंप देती है।
३. बड़े से बड़ा अफ़सर सेवानिवृत्ति के पश्चात् a-grade से सीधे c-ग्रेड साहित्यकारों में फेंक दिया जाता है। फिर वह दूसरे सेवा निवृत्त अफ़सरों के साथ इन्हीं सस्ते होटेलों में दूसरे ग़ैर सरकारी अफ़सर रहे अन्य c-ग्रेड साहित्यकारों को शराब सिगरेट वग़ैरह पिला देता है और बदले में यह c-ग्रेड साहित्यकार उसका थोड़ा यशगान कर देते है।
४. चूँकि c-ग्रेड साहित्यकारों की किताबें कोई नहीं ख़रीदता और वे खुद इन्हें रुपए आदि देकर छपवाते है इसलिए प्रकाशक गोदाम का खर्चा बचाने हेतु सारी किताबें इन्हें ही दे देता है। c-ग्रेड साहित्यकारों की बीवियाँ इतनी किताबें घर में देखकर सफ़ाई बराबर न हो पाने की वजह से कलह करती है इसलिए c-ग्रेड साहित्यकार किसी भी कार्यक्रम में झोले भर भरकर अपनी किताबें ले आते है और सबको देते रहते है। किसी को भी c-ग्रेड साहित्यकार तभी माना जा सकता है जब उसने कम से कम अपनी चार किताबें प्रकाशित की हो और उसे सबको मुफ़्त में बाँटा हो। कार्यक्रम में यह सबको किताबें बाँटते फिरते है जैसे सरकारी नौकरीवाले दूल्हे के फलदान (तिलक दस्तूर) में लड़कीवाले ढूँढ ढूँढकर वर के नातेदारों को कटपीस सफ़ारी सूट दिया करते है।
५. c-ग्रेड साहित्यकार बनने के लिए प्रत्येक a और b ग्रेड साहित्यकारों को पकड़ पकड़कर उनसे सेल्फ़ी लेना भी परमावश्यक है। वे कार्यक्रम में बड़े साहित्यकारों और आयोजक के युवा सहायकों को हलकान कर देते है। किसी भी कार्यक्रम से एक c-ग्रेड साहित्यकार अपने मोबाइल में कम से कम २८०० सेल्फ़ियाँ लेकर लौटता है। उसके बाद वह बड़े साहित्यकार को कोई पुरस्कार मिलने या उसके जन्मदिन की राह देखता है और उस दिन वह फ़ोटो लगाता है जबकि वह कार्यक्रम से लौट आने के तुरंत बाद अन्य c-ग्रेड साहित्यकार को दिक़ करने लगता है कि, “भैया आपने तो हमारी साथ की कोई फ़ोटो ही नहीं लगाई। खुद केवल बड़े साहित्यकार के साथ वाली तस्वीर मौक़े पर लगाता है और शाम को दूसरे c-ग्रेड साहित्यकार से फ़ोन पर कहता है, “कुमार जी को यह अवार्ड तो कुँवारी जी की सेवा करने की वजह से ही मिला है, हाहाहाहाहा”।
५. c-ग्रेड साहित्यकार सोशल मीडिया पर कार्यक्रमों की निंदा करते है। सभी को अनैतिक बताते है और खुद को राजा हरिश्चन्द्र का वारिस घोषित करते है। निंदा में इनके निशाने पर न आयोजक रहते है न a-ग्रेड साहित्यकार बल्कि यह b-ग्रेड पर निशाना साधते है। दूसरे c-ग्रेड साहित्यकार झुंड के झुंड बनाकर न केवल ऐसी पोस्टों पर कमेंट करते और एक दूसरे को लाइक करते है बल्कि वहीं कमेंट अपनी फ़ेस्बुक प्रोफ़ाइल पर स्टैटस के तौर पर लगाते है वहाँ पर अन्य c-ग्रेड साहित्यकार आकर कमेंट करते और एक दूसरे की कमेण्ट लाइक करते है और अपनी कमेंट अपनी प्रोफ़ाइल पर स्टैटस के तौर पर लगाते है और ऐसे अनन्त पोस्टें बनती चली जाती है।
६. भले c-ग्रेड साहित्यकार साहित्ययोत्पादन कम करे मगर वह सोशल मीडिया पोस्ट हज़ारों की संख्या में लिखता है- निम्नलिखित पोस्टें एक c-ग्रेड साहित्यकार बनने के लिए प्रतिदिन लिखे—
१. बधाइयों की पोस्ट। श्यामूसिंग “बदनाम” जी के उपन्यास का कवर आया है, मुबारक, बधाइयाँ, शुभकामना। प्रकाशक वीणा प्रकाशन को भी बधाइयाँ कि उन्होंने यह पुस्तक इतने सुंदर आवरण में छापि (पढ़े छापी)। जन्मदिन, भाभी के जन्मदिन, मुंडन, जापे, अन्य c-ग्रेड साहित्यकार के बेटे के विदेश जाने आदि की बधाइयाँ।
२. किसी भी कार्यक्रम में यदि c-ग्रेड साहित्यकार को न बुलाया गया हो तो आयोजक और निमंत्रित साहित्यकारों के ख़िलाफ़ एक अपमान भरी पोस्ट।
३. त्यौहार हो तो बीवी के साथ फ़ोटो और प्रेम भरी पोस्ट। इन्बाक्स में अन्य c-ग्रेड साहित्यकार प्रेमिकाओं को माफ़ी भरा संदेश तथा एक प्रेमकविता।
४. मोदी के ख़िलाफ़ एक पोस्ट या सेवा निवृत्त अफ़सर है तो सरकार के ख़िलाफ़ एक अस्पष्ट पोस्ट। मुहल्ले के नेता से सेटिंग हो तो मोदी के पक्ष में एक अस्पष्ट पोस्ट।
५. शाम को दो पेग के बाद उदासी से भरी एक पोस्ट।
६. महिला c-ग्रेड साहित्यकार पुरुष कवियों या कथाकारों को ध्यान में रखते हुए कविता लिख सकती है। इससे सभी पुरुष कवि उसकी कविताओं की वाहवाही इस आस में करते है कि कभी हम पर भी लिखेगी। ऐसा करने पर भयंकर लोकप्रियता के बावजूद भी आप b ग्रेड में भले न आ पाए c-ग्रेड महिला साहित्यकारों में आपका स्थान सुनिश्चित हो जाता है।
७. फ़ेसबुक के किसी भी विवाद पर अपनी तरफ़ से पंचायती पोस्ट। स्त्रीवाद के नाम पर प्रपंची पोस्ट जिससे विवाद हो और आप c-ग्रेड साहित्यकार होने के बावजूद लोकप्रिय हो जावे। c-ग्रेड साहित्यकार हमेशा पेटीकोट समर्थक होता है हालाँकि फ़ोन पर माँ-बहन की गालियाँ देते हुए कहता है, “साले दोनों ही व्यभिचारी है”।
८. बड़े साहित्यकार की प्रशंसा में उनके फ़ोटो के साथ अपनी पोस्ट भी c-ग्रेड साहित्यकार रोज किसी न किसी बहाने लगावेगा।
९. फ़िल्म समीक्षाएँ, ओटीटी प्लाट्फ़ोर्म की सिरीज़ इत्यादि की समीक्षा आदि भी एक c-ग्रेड साहित्यकार निरंतर लिखता है और बाद में उसकी किताब बना लेता है।
१०. महिला c-ग्रेड साहित्यकार फ़िल्मी हीरो आदि के फ़ोटो लगा सकती है। भाषण देते हुए फ़ोटो, बूढ़े कवियों के साथ फ़ोटो आदि लगा सकती है। बेटी के साथ भी c-ग्रेड साहित्यकार महिलाएँ फ़ोटो लगाती है।
११. c-grade साहित्यकार b-ग्रेड साहित्यकार की फ़ेस्बुक पर A-ग्रेड साहित्यकारों और स्त्रियों की कमेंट हमेशा लाइक करता है।
७. c-ग्रेड साहित्यकार हमेशा एक बड़ा WhatsApp ग्रुप चलाते है। जिसमें वही सब शेयर करते है जो फ़ेस्बुक पर करते है। कई बार किसी कार्यक्रम में बहुत महीनों से बुलावा न आने पर c-ग्रेड साहित्यकार अपने WhatsApp ग्रुप की महिला एवं पुरुष सदस्यों के साथ अपना ही एक छोटा सा आयोजन कर लेते है जिसमें सेवा निवृत्त अफ़सर और व्यापारी c-ग्रेड साहित्यकार पैसा लगाते है। ऐसे आयोजन अक्सर मंच पर स्थान न दिए जाने, कमरा बराबर न मिलने आदि कारणों से लड़ाइयों पर ख़त्म होते है। c-ग्रेड साहित्यकार बड़े लेखकों के क्वोट या कविताओं के पोस्टर भी प्रतिदिन बनाकर साहित्यसेवा करते है।
८. मथुरामल माथुर स्मृति पुरस्कार, कल्याणी देवी “बोगनबेलिया” कविता अवार्ड ऐसे कई कई छोटे पुरस्कार है जिन्हें पाने के लिए c-ग्रेड साहित्यकारों को आपस में जद्दोजहद करना पड़ती है।
९. c-ग्रेड साहित्यकार की पहचान है मंच पर अपने समय से चार गुना अधिक समय लेना। अपनी कविताएँ पढ़ते चले जाना पढ़ते चले जाना। अति आत्मविश्वास और नाटकीय ढंग से पाठ करना या भाषण देना। अन्य c-ग्रेड साहित्यकारों का बीच बीच में उनकी वाहवाही करना और पढ़नेवाले c-ग्रेड साहित्यकार का मुख घुमा घुमाकर सभागार को देखना और और अधिक तन जाना।
उपरोक्त बिंदुओं का पालन करके आप एक श्रेष्ठ c-ग्रेड साहित्यकार बन सकते है।
#उपकार_गाइड_पाठ १२३
शीघ्र ही A-ग्रेड तथा b-ग्रेड की विशेषताएँ बतायी जावेंगी।
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जबकि मप्र में वाटर शेड पर अरबों रुपया खर्च हुआ, वाटर शेड पर काम करने वाले करोड़पति हो गए
कलेक्टरों ने इतना कमाया एनजीओज़ से कि कहा नही जा सकता और एनजीओज़ ने चार गुना कमाया
और अब जल जीवन मिशन का भी यही होना है, स्वच्छ और निर्मल भारत के शौचालयों की तरह टंकियाँ गांव - गांव में दर्शनीय बनकर खड़ी रहेंगी, मार्च में ही जल स्रोत सूख गए और त्राहि त्राहि मची है, अभी चंबल के गांवों में देखकर आया हूँ, मालवा तो सूखा है ही, बस राजा का नाम हो रहा प्रचार प्रसार में - क्या किया जाये
दूसरा पंचायतों के तहत जो Common Property Assets में जल संरचनाएं बनी, MP Rural Livelihood के तहत डेढ़ दशक तक प्रोजेक्ट चलें उसका आउट पुट क्या निकला और फिर डेनिडा से लेकर तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने काम किया, दिग्विजय सिंह ने तो बाकायदा राजीव गांधी जल ग्रहण मिशन बनाया और दस साल चलाया, उमा भारती और स्व बाबूलाल गौर के पंच ज में खूब पानी का काम हुआ, स्व अनिल माधव दवे ने नदी उत्सव और संघी एनजीओ का जाल गांव - गांव बनाया और पानी की संरचनाये बनवाई - सब सुतली बम की तरह फुससी बम निकलें मतलब
यह है भ्रष्टाचार का जीवंत उदाहरण
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दलित आंदोलन के स्वयम्भू लेखक, विचारक अक़्सर बामणों को कोसते हुए अंबेडकर, बुद्ध और कबीर रैदास की बात करते है, दीक्षा, 22 वचन और तमाम बातें कहते हैं, गांधी अंबेडकर की बात अर्थात विवाद की बात करते है - अपुन को कोई मतलब नही, ये ज्ञानी जन तो सवर्ण हो गए ससुरे, IAS से लेकर पटवारी बन गए पर मैं जब झाबुआ जाता था 1987 में या देवास के भवानी सागर मुहल्ले में वो वैसा का वैसा ही है, उनकी ना हालत बदली ना उनके लिए छुआछूत बदली, पर इन ज्ञानियों के बंगले बन गए, इनके बच्चे विदेश पलट आये और सवर्ण बन गए भार्गव, सिन्हा, कुमार या अंजन - रंजन
एक बात समझ नही आती, यारां खूब राजनीति करो, दलितों के हमदर्द बनो, विदेश घूमो, बड़ी डिग्रियाँ बटोरो और किताबें पेलो, अपने कॉपी पेस्ट के खूँखार बादशाह मैगी भैया जईसी रोज - रोज, कॉपी पेस्ट करके सब पेल दो, कचरा लेख भी पेलो - क्योंकि मेनस्ट्रीम माफिया, सॉरी मीडिया, तो ये बकर छापेगा नही - बस यही है जहां तुम्हारी लम्बी - लम्बी बकर बगैर एडिट के छपेगी, और सर, भैया, ज्ञानी वाली फ़ौज अहो, अहो करके आएगी, शेयर करेगी
ख़ैर, ये बताओ कि कबीर और रैदास इतने ज्ञानी थे कि वे गौतम बुद्ध को पढ़ समझ ले, मल्लब बात समझ की नही, गौतम बुद्ध के लिखें एक्सेस की है, कबीर रैदास पाली या प्राकृत पढ़ लेते थे क्या, और फिर इनके जन्म, काल, अवधि और भाषा - मतलब पाली, और तत्सम, तद्भव और व्याकरण, बो तो कुंडली से ही पता चलेगा ना, और तुम्हारी नाड़ी और गण भी तो उसी विद्या से देख रहें है ना बाप - दादे, इसी इतिहास से ब्याह और तलाक हो रहे ना, अनपढ़ दलित छोरी से ब्याह हुआ और समझ आया कि फंस गए तो तलाक ले लिया, बामण, बनिये या ठाकुर की छोरी फँसाकर ब्याह रचा लिया, या दुनिया जहान में घूम फिरकर रस चूस रहे हो मियाँ - फेर काहे ग़दर मचा रहें, फर्जी कॉमरेड के वाह वाले कमेंट्स पढ़कर उत्साहित ना हो, वे कॉमरेड छग से लेकर गोवा, दिल्ली, हिमाचल, यूपी, बिहार और मप्र में अकूत सम्पत्ति लेकर सरकार से धन वसूल रहें है दलितों और आदिवासियों के नाम पर
कम अक्ल है भाई और बहन लोग्स, भाँग का घोटा फेंटो और ज्ञान दो मित्रों, क्या है ना दिलीप सी मंडल लग गया ओबीसी में, भाजपा भी साध रही ओबीसी, मोदी ठहरे ओबीसी और जनगणना हुई तो ज़्यादा होंगे ओबीसी तो दलित आदिवासी वही है अब्बी भी - जरा रहम खाओ गुरू
सीधी बात का जवाब दो - रैदास और कबीरदास को बौद्ध और जैन धर्म का इतने गहरे में ज्ञान था भी ?
आजकल अम्बेडकरवादी समाज जोड़ने के बजाय समाज तोड़ने और विष उगलने में ज़्यादा लगे है, 76 साल बहुत होते है स्व विकास के लिए लेकिन अभी भी हालत वही है - अशिक्षा, सुप्तावस्था, स्वार्थ, कुटिलता और गरीबी बेचने का सदियों पुराना धँधा, अंबेडकरवादियों से कुछ पूछ लो बस कुतर्क करेंगे और भयानक असहिष्णु हो जायेंगे , इनसे तर्क की उम्मीद करना ही बेकार है और इतना बुद्ध - बुद्ध करते है पर मध्य मार्ग पर चलने को कायरता कहते है ; मेरा अपना अनुभव है कि दलित आंदोलन ही दलितों का असली दुश्मन है और ये ज्ञानवापी मस्जिदों के भोंगे उर्फ अम्बेडकरवादी असली कूटनीतिज्ञ जो शोषण के जवाबदेह
थोड़ा ज्ञान की जड़िया फेंको
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