हे बेशर्म हो चुके बुद्धूजीवी • प्रचार प्रसार ठीक है • बेचना, बिकवाने का काम भी ठीक • आत्ममुग्धता भी ठीक • दोस्तो से मिलना मिलाना भी ठीक • फोटो खिंचवाने का काम भी ठीक ही है ◆ पर दस बीस साल से लेकर दो - चार साल पुरानी किताबों का एक चौथाई के भाव पर बेचना और जबरन थोपना किस चाणक्य ने कहा है बै ◆ और सब समझदार है, सब पत्र - पत्रिकाएँ पढ़ते है, इंटरनेट के साक्षर है और सब गूगल करके बेहतरीन सामग्री खोजने में सक्षम भी है, अपनी समझ, शौक, रुचि और ज़रूरत भी जानते है हम ◆ इतना बेवकूफ मत समझो कि तुम्हारी ठेली हुई लिंक और दिए हुए पते पर ढूँढते हुए किताब लेने पहुंच जायेंगे पाठक ◆ अब इतने तो कुढ़ मगज नही कि तुम्हारे यार - दोस्तो और रंगीन और रंगहीन बूढ़ी हो चुकी तितलियों की घटिया और बकवास किताबों को तुम रिकमेंड करो और हम ऑर्डर कर दें या खरीद लें - मुआफ़ करिए अगर यह मुग़ालता है तो तुरंत दूर कर लें ◆ परेशान हो गया हूँ एक ही दिन में इनबॉक्स में मिली लिंक, स्टॉल के पते और चिकने - चुपड़े, काले - पीले और टेढ़े-मेढ़े चेहरों को भयानक गोरा बनाकर डेढ़ किलो की फर्जी मुस्कुराहट चैंपकर भेजे हुए फोटोज़ से ◆बन्द करिए यह अश्लील प्र...
The World I See Everyday & What I Think About It...