कैसे दिन बीते - कैसी काटी रतिया पुस्तक मेला कैंसल हो जाये तो मानवता का भला होगा पर हमारे फ़र्जी लेखक - लेखिकाएँ कुंठा में ही मर जायेंगे, कितनों ने ही बड़े अरमान सज़ा रख्खे है, माड़साबों का धन्धा खत्म - सूट, धोती कुर्ता, अंगरखा और साफ़ा भी धुलवाकर रखे है, टाई - जूते डीयो सब तैयार है, नए चश्मे बनवा लिए कि अब तो सब दिख जाये, अपने कालजयी बचे - खुचे बालों पर गोदरेज डाईं लगवा लिया है, कच्ची उम्र की कमसिन डेंटिस्ट से दाँत साफ करवा लिए और लम्बे - लम्बे भाषण की प्रैक्टिस कर रहें है, विकिपीडिया से मार लिए है कॉपी पेस्ट, और अपने प्रकाशकों को हार्ट अटैक की संभावना - बापड़ो ने 1000 के ऊपर टाइटल छाप कर दिल्ली रवाना कर दिए है, सेटिंग कर ली है , माड़साब लोग्स का कचरा छापकर अपने सौ टाइटल्स का कचरा खपाने का जुगाड़ कर लिया था, तगड़ा पीआर बना लिया था , पर अब क्या युवा लौंडे यहाँ वहाँ से जुगाड़कर दिल्ली आ रहे थे कि कोई कमसिन बाला ही मिल जाये तो निपट लें, 40 की उम्र हो गई नौकरी और छोकरी दोनो के बिना विरह में जीवन बर्बाद है, एडहॉक या संविदा पर बीत रहा जीवन रोज अपने गाइड की माँ भैंन एक करके खत्म होता है जब दो ...
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