पहले मुझे कविता नही समझती थी, फिर मैंने ऑरकुट और कालांतर में फेसबुक, ट्वीटर, लिंकडिन और टेलीग्राम पर धड़ल्ले से कविताएँ लिखना शुरू किया - अब मैं "सबसे नई कविता के उन्मान" विषय पर किताब लिख रियाँ हूँ और आलोचना भी जमकर करता हूँ, देश भर में हर कोई पत्रिका निकाल रहा है - सबमें भेजता हूँ कविता और आलोचना - साला डेढ़ दो साल में तो कोई ना कोई छाप ही देता है - उन ससुरों को भी तो विज्ञापनों के बीच कुछ ना कुछ "कॉमिक रिलीफ़" देना ही पड़ता है
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अंबेडकर यदि धर्म परिवर्तन के बजाय धर्म त्याग कर सिर्फ मनुष्य ही रहते और संविधान में भी धार्मिक स्वतंत्रता का ज़िक्र नही करते तो आज धर्म के नाम पर जो आततायी दुकान चला रहे है और समाज में जातिवाद का दंश है वो शायद कम होता
हो क्या रहा है -
◆ आदिवासी ईसाई बन गए तो क्या ईसाइयत के रीत रिवाज़ अपनाकर शोषित नही हुए
◆ दलित बुद्ध धर्म अपनाकर वही पूजा पाठ जैसे रिवाजों में नही उलझे
◆ जो लोग मुस्लिम बनें वे भी पाँच वक्त की नमाज़ में खप गए
◆ पारसी, सिख, जैन , बहाई या कुछ और भी बनें तो हायरार्की का शिकार और भेदभाव तो सहना ही पड़ा नई जगह भी
और आज हम कहें कि यह सब धर्म से ठीक होगा इसलिये यहाँ से वहाँ भटकते रहो तो सम्भव नही - लोगों को कबीर पंथी बनकर चौका आरती करते देखा है तो फिर मतलब क्या है
असली जड़ है - जातिप्रथा और जिस तरह के हालात 1992 के बाबरी मस्ज़िद विध्वंस के बाद बने है , जिसे अदालत देख ही नही पाई और सत्ताओं ने धर्म के नाम जो समाज का सत्यानाश किया - उसे देखकर मेरा विश्वास है कि आगामी हजार वर्षों तक जातिप्रथा समाप्त नही होगी क्योकि हम हर जगह जाति खोजते है - ये, मैं, वो और हम सब और इसे एन्जॉय भी करते है
जिसे बुरा लगे वो दो रोटी ज्यादा खा लें पर यदि धर्म बदलों तो जात भी छोड़ो
बहरहाल, मुद्दे समझें- ज्ञान ना दें
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"मतलब हद है आपने पूरी 251 कविताएँ एक ही पोस्ट में फेसबुक पर डाल दी - ये क्या बेवकूफी है और अब कह रहे कि मैं शेयर करूँ और लम्बा समीक्षात्मक कमेंट करूँ - माफ़ कीजिये, ये धूर्त हरकतें मैं नही करता और ना आपके अनुरोध को मानूँगा " मेरा बीपी भयंकर बढ़ गया था
कविराज बोले " क्यों नही, लोग कहानी पेल रहे है, लेखक लोग दस हजार शब्दों का लेख दे रहें है तो मैंने तो एक संग्रह की ही डाली है, अभी तो 29 संग्रह का माल रखा है - वो कल डालूँगा - और आपको ब्लॉक कर दूँगा यदि मेरी अभिव्यक्ति पर रोक लगाई तो और कोर्ट अलग जाऊँगा -ध्यान रहें यह बात "
ब्लॉक कैसे करते है यारां, कोई बताएं
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तू कहता कागद की लेखी
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आपको लग रहा है कि हाथरस में सिर्फ कलेक्टर, एसपी ही शिकार है
हाथरस भाजपा की अंदरूनी लड़ाई, वर्चस्व, वर्ग संघर्ष, संघ, मोदी और शाह बनाम योगी की खुले आम होने वाली लड़ाई है
पहले दिन जरूर बलात्कार दलित सवर्ण और प्रशासन का खेल था - जब मनीषा मरी थी पर अब बाजी पलटी है, मुझे लगता है संघ का निशाना मीडिया के बहाने शाह, मोदी और योगी पर है
इस खेल में भाजपा और संघ के चतुर सुजान शामिल है - जो योगी को उप्र नही हड़पने देंगे और उधर महंत गोरखपुरी पूरबिया होने के साथ अवध से लेकर बुंदेलखंड तक सब गप्प कर जाना चाहता है एक बड़े रसीले रसगुल्ले की तरह, नेपाल से होने वाले रिश्ते और धन्धे यूँही गंवायेंगा क्या
चप्पलें उल्टी रखिये और घी - नींबू लेकर खड़े रहिये, ताली बजाइये और देखिये मजे ये लोग आपस में ही लड़ - लड़कर मर जायेंगे अब
आगे और सुनिये अब मप्र में चुनाव हो रहें है भाजपा जीती तो भी इंदौरी भजन सम्राट से लेकर वीरांगना उमा भारती, चंबल नरेश नरेंद्र तोमर, नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव मामा को कुर्सी नही देंगे और भाजपा हारती है तो भी मामा के सिर ठीकरा फुटेगा और मामा की असली लड़ाई वाली मुद्रा सामने आएगी और आडवाणी भीष्म बनकर मदद करेंगे
मेरा तो मानना है और भगवान से करबद्ध प्रार्थना है कि पूरे राष्ट्र में भाजपा आ जाये - यहाँ तक कि शौचालय निर्माण समिति में भी 100 % यही लोग हो तो असली मज़ा आयेगा
राम माधव हटे है अभी, वो इतने सज्जन है कि संघ के लिए मर मिटेंगे और कम से कम भाजपाईयों से संघी थोड़े ज़्यादा देश भक्त और कार्पोरेट विरोधी है और सबसे ज़्यादा इन दो गुज्जुओं से त्रस्त तो है ही संघ ही नही पूरी दुनिया भी और भाजपा भी
आईये मजे लें, बंद करो अमेजॉन प्राइम और नेटफ्लिक्स इन तीन की लड़ाई देखो - कोई और समय होता तो गृह मंत्री या प्रधानमंत्री एक विजिट कर आता उप्र का पर मजाल कि योगी घुसने भी देगा इन्हें अभी -इससे झकास मनोरंजन होगा क्या कभी
यह है घर फूँक तमाशा ब्रो - एन्जॉय, चील मार यार, अबै ओये उल्लू के पठ्ठो - ढोल बजाओ, थाली पीटो , शंख बजाओ - बस अपनी धोती सम्हालना पीछे से पीली ना हो जायें
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