जेएनयू पर अब शक होता है
8400 करोड़ का महाबली विमान खरीदने वाली मोदी सरकार की हालत देखिए
आने वाले त्योहारों में सरकारी कर्मचारियों को खर्च के लिए सरकार 10 हज़ार रुपए का एडवांस कर्ज़ देगी, फिर ₹ 1000 की 10 किस्तों में वसूलेगी
सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को एलटीसी कैश वाउचर मिलेगा, लेकिन इससे वही सामान खरीदना होगा, जिस पर 12% से ज़्यादा GST हो
इसे प्रोत्साहन पैकेज बताया जा रहा है, वित्त मंत्री का दावा है कि इससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी
ये वित्त मंत्री है या किसी सड़क छाप रेहड़ी वाले की पीआरओ जो घटियापन पर उतर आई है
इस देवी जगदम्बा को कोई समझाओ रे कोई कि देश में 2% से भी कम लोगों को LTC मिलता होगा और यह भी कितने लोग केंद्र सरकार या PSU में काम करते है
भक्तों - मिर्ची दें या सूजी का हलवा या अगरबत्ती लोगे
इतनी घटिया वित्त मंत्री और कंगाल सरकार देखी कही
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"इतनी गालियां क्यों दे रहे है सुबह से और हल्ला मचा रहें है - हुआ क्या है " मैंने पूछा - आखिर सारी रात जागकर कर क्या रहे थे लाइवा कविराज
"कुछ नही , कल रात भर में 2059 कवियों को मित्र सूची से हटाया, ससुरे आतंक मचाये हुए थे - मैराथन और ना जाने क्या - क्या, मेरी कविता कोई पढ़ता नही, एक लाइक मारने में इनके हाथ टूट जाते है और ये सब साले लगातार 8 दिन तक झिलवा रहें है कि अलाने - फलाने ने नॉमिनेट किया - रिकॉर्ड बताये ना कहाँ किया, अभी भी 1249 बचे है लिस्ट में, आज रात इनको भी निपटाऊंगा " - भयानक उत्तेजित थे वे
"आप शांत हो जाइये, प्लीज़ ऐसा मत करिए अब कवि वही है जो पहले कपल चैलेंज में अपनी या किसी की भी बीबी के श्रीमुख के दर्शन कराएं, फिर 8 दिन तक कविता अपनी बोली या भाषा और उसी के अँग्रेजी में घटिया अनुवाद झिलवाये और अंत में खुद नोबली लुईस गुलुकोज भाभी के एक दो अनुवाद गूगल ट्रांसलेट से करके पेल दें "
उन्हें सोने की सलाह देकर दफ़्तर आ गया हूँ मित्रों
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" कुछ कविताओं का अंग्रेज़ी कर देंगे क्या, मना मत करना, हमें मालूम है कि आप भले ही नक़ल करके पास हुए हो, पर एम ए अंग्रेज़ी में ही किये हो " - दोपहर को दफ़्तर में फोन आया लाइवा कविराज का
" क्यों, क्या करना है अनुवाद करके " - झुंझला कर पूछा मैंने
" एक तो वो चैलेंज में आठ दिन तक मेरी कविताएँ चेंप दूँगा अंग्रेज़ी अनुबाद सहित और दूसरा अगले साल अभी तक लिखी पूरी 22, 949 कविताएँ नोबल समिति को भेज दूँगा - साला, हिंदी में लिखने का मतलब ही नही " - वे बोलें कातर स्वर में
" किसने कहाँ आपको कि अंग्रेज़ी में होने से नोबल मिलेगा " - अजीब चिपकू था ससुरा
" देखिये गुलुकोज भैया की घरवाली लूज गिलकी भाभी को इस साल का मिला कि नई, हम भी तो 13 साल से संविदा वर्ग 3 में प्राथमिक विद्यालय में कक्षा तीसरी को अंग्रेज़ी पढ़ाते है और कविताएँ लिख रहे है "- वे बोले
" प्रभु, एमए अंग्रेज़ी में मेरा मीडियम हिंदी था, कुछ नगदी दान दक्षिणा हो तो अपने
Mani
भिया से बात कल्लो " - फोन काटकर बंद ही कर दिया मैंने ***
Don't expect decency round the clock from anyone, ultimately we all are human breed
We just can't punish people for their poor thinking, better leave or forgive them
All art forms lead to Suicide may it be Literature, Drama, Dance, Films or Drawing
All genius persons are known as insane
Complicated relations are often better
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ग़लती हमारी है, हम हैवान हो गए है, अब यहाँ कोई भी राजनेता नही है परफोर्मर है और उनका काम परफ़ोर्म करना है , आउट पुट देना नही - वे वही करेंगे जो जनता चाहती है
देश के हर मुद्दे और घटना में इस बात को ध्यान में रखकर एक बार सोचिये - सब समझ आ जायेगा - हाथरस हो, अयोध्या, कश्मीर, एन आर सी के मुद्दे या बेजा गिरफ़्तारियाँ
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Ammber Pandey की नई कहानी " कास्ट आयरन की इमारत पर
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शब्द नही है मेरे पास
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एक अतितजीविता का बोध तुम्हारे भीतर बढ़ते जा रहा है, मुम्बई, कलकत्ता, इंदौर या कोई नाशिक जैसा प्राचीन शहर जो तुम्हारे भीतर धड़कता है बेताबी से - प्राचीन वैभव, राजे रजवाड़े, संस्कृति, सभ्यता, गलियां, इतिहास, हिंदी - मराठी युग्म के शब्द, अँधेरे में रोमांच, आधी - अधूरी तमन्नाएं, निर्वासित जीवन के दोषयुक्त गलियारों में घूमते और पौराणिक वेद, पुराणों एवं ऋचाओं में धर्म आख्यानों की व्याख्याएं खोजते, आज के समय में समकालीन साहित्य राजनीति और आज़ादी के आंदोलनों में सावरकर, गांधी, नेहरू से लेकर छोटे मोटे बनिये, व्यापारी और खोमचा लगाने वाले रेहड़ी पर रोज काम करने वाले,हिजड़ो, वेश्याओं और मुजरा करती बाइयों के अनगढ़ किस्से - इन सब चरित्रों पर तुम्हारी पकड़ तो है, भाषाई बाज़ीगरी और आवेश और भावावेश में सन्न से आघात करते या झेल जाने का भी माद्दा है तुममें पर इस सबसे कहना क्या चाहते हो वह अभी समझ नही आ रहा
मैं इन चारों कहानियों के पहले सन 1998 - 99 ,की कविताओं से और कालांतर में विवादित और आग उगलती द्रोपदी सिंघाड़, तोताबाला की कविताओं, पेड़ों से लेकर प्रेम, वासना, गूदा / गुदा और अन्य कविताओं के बरक्स देखता हूँ और भाषा, सौन्दर्य का विकास, कहन, कथन की शैली और धीरे से किस्सागोई में तब्दील होते जा रहे कवि को समझने का यत्किंचित प्रयास कर रहा हूँ
एक बेचैनी बहुत स्पष्ट नज़र आती है, जो निश्चित ही स्वाभाविक है - इस समय जब पूरी दुनिया में सांस लेना लगभग नामुमकिन और असम्भव होता जा रहा है, मौत का तांडव चहूँ ओर व्याप्त है, आज़ादी, अभिव्यक्ति और अभिनय के बीच जिंदगी का चौथा कोण हर कोई खोज रहा है - वहाँ अतीत में जाकर उन परिस्थितियों की परिकल्पना करना, उनमें जीना, रिश्तों की सुवास और उन भंगिमाओं को शब्दों के माध्यम से वृहद कैनवास रचते हुए ' परसौनीफाई 'करना निश्चित ही कौशल और दक्षता तो है पर यह तडफ़ कही ले नही जा रही - खासकरके कहानियों में जो चमत्कारिक वितान है - वह एक सांस में लंबे समय तक कहानी को साथ लेकर तो चलता है , पर एक बंद गली के अंधेरे कोने में कहानी पाठक को हौले से छोड़ देती है और वो असहाय सा होकर मुक्ति के लिए तड़फता है, पाठक उस कोने से जब उजास की ओर लौट रहा होता है तो बेबस है और उसे लगता है कि वह किसी सर्कस या मदारी के खेल से खाली हाथ लौट रहा है सब कुछ लुटाकर - वह मदहोश है और कुछ भी कहने बोलने या समझने की स्थिति में नही है
सम्भवतः अपनी कमजोर समझ से यह मैं उस पार देख नही पा रहा , पर एक धुन्ध तो है जो सब कुछ झीना कर रही है, अवसाद और संताप बढ़ा रही है
लिखना नही चाहता था पर पूछना जरूर चाहूँगा बकौल मुक्तिबोध कि " अम्बर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है "
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