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Showing posts from February, 2019

मार्च तपकर सुर्खरू होने का महीना 24 Feb 2019

 मार्च तपकर सुर्खरू होने का महीना  नया साल शुरू हो चुके हैं दो माह बीत गए हैं , नए साल का उत्साह समाप्त नहीं हुआ है परंतु धीरे-धीरे क्षीण पढ़ते जा रहा है, मार्च की शुरुवात में ही एक लंबी यात्रा पर निकलता हूं तो देखता हूं - वसंत ऋतु खत्म हो रही है और पतझड़ की शुरुआत हो चुकी है, कोलतार की लंबी सड़कों पर चलते हुए जब गांव की पगडंडी पर आहिस्ता आहिस्ता पैर जमाते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती दूरी तय करता हूं तो आंखों के सामने अंधड भर आते हैं इस अंधड़ में धूल है,  पत्तियां और बहुत छोटे-छोटे कंकड़ - पत्थर हैं जिन्हें हवा ने जमीन से उछालकर अपने साथ मिला लिया है और गोल गोल घुमाकर ऊपर ले आई है, घबरा कर अपनी आंखें बंद करता हूं और सिर पर एक गमछा डाल कर आगे बढ़ता हूं  हवा अपनी मदमस्त मदहोशी में बढ़ते जा रही है , वह दोपहर होते-होते शीतल से तेज आंच में बदल जाती है और काटने को दौड़ती है , लगता है कि सूरज ने अपनी समस्त रश्मि किरणों को इसके हवाले कर सुस्ताने चल पड़ा है,  मेरे पास रखा पीने का पानी खत्म हो गया है और कोलतार की सड़क पर...

हाथ से नही लिखेंगे तो बहुत पछताना पड़ेगा 23 Feb 2019

हाथ से नही लिखेंगे तो बहुत पछताना पड़ेगा आज एल एल बी के पहले पेपर की परीक्षा में 40 पन्नों में से 25 पन्ने लिखना भी इतना मुश्किल हो गया, पास फेल होना तो बहुत दूर पर आज की परीक्षा में मात्र 25% छात्र ही पुरे 5 प्रश्न लिख पाएं वो भी 30 से अधिक पन्नों में , फेसबुक वाट्सएप और इंस्टा ने बिगाड़ कर रख दिया ससुर मैं तो कॉपी देखकर ही घबरा गया, हिम्मत हार गया, हाथ से लिखने में कांधे, हाथ की हड्डियां और उंगलियां मानो जम गई रोते झिकते 22, 23 पन्ने लिखें वो भी एक एक पँक्ति छोड़कर और बड़े बड़े शब्दों में असल में टाइप करने की इतनी आदत पड़ गई है - या तो अब विवि परीक्षाएं भी ऑन लाईन लें या हम लोग लिखने का अभ्यास करें , सीधे लेपटॉप और मोबाइल पर लिखने की आदत ने बर्बाद कर दिया हमें, एक शोक पत्र पोस्ट कार्ड पर लिखने लायक नही , मेरा तो कम से कम यही हाल है - आपका नही पता उफ़ , वो लिखने का दौर, सात आठ सप्लीमेंट्री कॉपी लेकर भरने का सुहाना समय - कंटेंट छोड़ दीजिए पर लिखने का जबरजस्त अभ्यास था और 1989 के बाद कम होते होते अब इस तकनीकी दौर में खत्म हो गया कुछ करना पड़ेगा - पर क्या नही पता - शायद कुछ यह कर...

Posts of 22 Feb 2019 श्मशान और मै

कहे कबीर सुनो भाई साधौ, जिन जोड़ी - तिन तोड़ी रोज शाम को यहां पर बैठ जाता हूं लगता है कि यह कर्ज है जो उतारना है , पहाड़ी के सामने से जब सूरज उगता है और यहां पर जलती लाशों को देखता हूं तो संसार का यथार्थ सामने आ जाता है , सब स्पष्ट हो जाता है और लगता है मानो किसी ने इस तरह से बनाया था कि सब यहीं उगे और यही खत्म हो, किसी भी तरह मन नही मानता कि जीवन यहीं से उगेगा - यहीं पर रहेगा -यही यात्राएं होंगी और यहीं पर अंत होगा संसार के सारे सुखों से दुखों से मुक्त होते हुए एक दिन यहां पहुंचना है, यहां रोज एक पागल देखता हूँ आज भी वह बड़बड़ा रहा है - भाग जा, भाग जा, भाग जा, वह बदहवास हो कर राख को अपने चेहरे पर मलता है, चिताओं की लकड़ी से अपना बदन खुजाता है और कहता है जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़ों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा जर्जर शरीर को छोड़कर नवीन भौतिक शरीर धारण करती है , वह कहता है - तू भाग जा, अभी क्यों आया है , तेरी काया को अभी और चमका , अभी इसेे और मांज , थोड़ा और तड़प संसार में जो दुख है - वह भी तूने देखे कहां है सन्ताप, अवसाद, ताप, कुंठाओं और...

शोध का पोस्ट ट्रुथ Post of 18 Feb 2019

शोध का पोस्ट ट्रुथ ●●◆●● हिंदी के युवा शोधार्थियों को अपने परम ज्ञानी और संसार के एकमात्र दिव्य पुरूष यानी गाइड के झंडे झोले ही नही पोतड़े भी उठाना पड़ते है और उसकी खंखार, नाक से बहते चमत्कारिक द्रव्य, बलगम और नीचे से बह रहे मटमैले पानी और ठोस पदार्थ को पीकर फेसबुक पर महान आख्यान, भाषण के रूप में लिखकर परोसना पड़ता है क्योंकि अख़बार , पत्रिकाएं तो उस घसियारे की घटिया बातों को छापेंगी नही ये महान, लम्पट और जुगाड़ू गाइड इन गांव देहात के बच्चों को चटाई में लपेटकर घूमते रहते है और ये शोधार्थी मोबाइल से तस्वीरें हिंच हिंचकर फेसबुक पर चैंपते रहते है जिसे 10 लाईक भी नही मिलते कसम से शोध का संसार बड़ा कमीना है, देख लीजिए अपनी ही सूची में एक बार मठाधीशों को और पीसे जा रहे युवाओं को # खरी_खरी

Manawar's Home a Sweet Memory 19 Feb 2019

मनावर - जिला धार, का वो घर जहां पिताजी 1975 से 1985 तक रहें , हम लोग दीवाली और गर्मियों की छुट्टी में यही रहते थे, आज यह घर देखा - बहुत उदास था और जेहन में तस्वीरे बनती बिगड़ती रही मेरे - 45 साल अतीत में लौटना कितना कष्टप्रद होता हो खासकरके तब जब आपके पास स्मृति दोष ना हो और सब कुछ स्वच्छ और निर्मल हो - एकदम ताज़ा और निश्छल मन के साथ कितना कुछ याद आया और मेला ग्राउण्ड गया तो मेला, पुष्पा टूरिंग टाकीज , हरिजन मुहल्ले का वो पानी का कुआँ जहाँ का पानी पीकर हम बड़े हुए, स्टेट बैंक  की बिल्डिंग जो मेरे सामने सम्भवतः 1977 में बनी थी जब संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हुई थी 1980 में तब यही था और उसके ठीक दस दिन पहले इंदिरा गांधी यहां सम्बोधित कर गई थी यहां आकर बहुत अच्छा भी लगा और दुखी भी हुआ, पिता का अक्स लगातार आंखों से गुजरता रहा और वे बार बार आकर पूछते रहें मेरे बारे में और घर परिवार के बारे में, पिता का घर एक सिर्फ यूँ तो सरकारी आवास था तत्कालीन बीडीओ का , पर हमारा बचपन, हठ, जिद, सपने और वात्सल्य यहां दर्ज था देर तक खड़ा रहा और जब किसी बच्चे ने यूँ रोते देख पूछा कि क्य...

सफाई कर्मचारी, हिंदी में ट्राफिक सप्ताह और Dont tag me Appeal - Post of 8 Feb 2019

सड़क और सडक  बीच और बिच  स्लोगन और श्लोगन  ट्राफिक और ट्राफीक  बस और बेस  मैजिक और मेजिके   सुरक्षा और सुरच्छा   सप्ताह और सपताह   जेब्रा क्रासिंग और जेबरा किरोसिंग ये कुछ शब्द है और कुछ भाव मौक़ा था, सड़क सुरक्षा सप्ताह में आयोजित शहर भर के निजी विद्यालयों के बच्चों के निबंध जांचने का जिसमे कक्षा छह से बारहवीं तक के बच्चें शामिल थे. अफसोस यह हुआ कि हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम दोनों के बच्चों की उत्तर पुस्तिकाएं थी हमारे हाथों में - लगभग दस हजार में से डेढ़ सौ - दो सौ के बीच थी हमारी परीक्षा और हम उजबकों की तरह से एक - एक को ध्यान से पढ़कर खुद समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर बच्चे ने लिखा क्या है बारहवीं के बच्चों से लेकर छठवी तक के बच्चों का गूगल ज्ञान, मात्रा और बाकी सब तो छोड़ ही दीजिये उनका Comprehension इतना खराब था कि बड़े होकर ये एक प्रेम पत्र भी ठीक ठीक या सम्प्रेषण युक्त भाषा में लिख पायेंगें या नही, अपने घर में किसी की मृत्यु होने पर हिंदी या अंग्रेज़ी में सही बात कहते हुए सन्देश ठीक से टाईप कर पायेंगें या नही या अपने म...