मार्च तपकर सुर्खरू होने का महीना नया साल शुरू हो चुके हैं दो माह बीत गए हैं , नए साल का उत्साह समाप्त नहीं हुआ है परंतु धीरे-धीरे क्षीण पढ़ते जा रहा है, मार्च की शुरुवात में ही एक लंबी यात्रा पर निकलता हूं तो देखता हूं - वसंत ऋतु खत्म हो रही है और पतझड़ की शुरुआत हो चुकी है, कोलतार की लंबी सड़कों पर चलते हुए जब गांव की पगडंडी पर आहिस्ता आहिस्ता पैर जमाते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती दूरी तय करता हूं तो आंखों के सामने अंधड भर आते हैं इस अंधड़ में धूल है, पत्तियां और बहुत छोटे-छोटे कंकड़ - पत्थर हैं जिन्हें हवा ने जमीन से उछालकर अपने साथ मिला लिया है और गोल गोल घुमाकर ऊपर ले आई है, घबरा कर अपनी आंखें बंद करता हूं और सिर पर एक गमछा डाल कर आगे बढ़ता हूं हवा अपनी मदमस्त मदहोशी में बढ़ते जा रही है , वह दोपहर होते-होते शीतल से तेज आंच में बदल जाती है और काटने को दौड़ती है , लगता है कि सूरज ने अपनी समस्त रश्मि किरणों को इसके हवाले कर सुस्ताने चल पड़ा है, मेरे पास रखा पीने का पानी खत्म हो गया है और कोलतार की सड़क पर...
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