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24/25 जुलाई 2018 के यादगार पल अजमेर में

24/25 जुलाई 2018 के यादगार पल अजमेर में 
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कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदाम
कुछ मेरी वहशतों ने मुझे दर-ब-दर किया
-साबिर ज़फ़र

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अजमेर में हूँ एक प्रशिक्षण में
अचानक से फोन आता है कि आप कब तक रहेंगे - मैनें कहा क्यों , फिर थोड़ा सोचकर बोला कि अभी हूँ 2 दिन और
ठीक है शाम को मिलते है

कहां
अजमेर में, पता भर बता दीजिए
अबे ओ बिहारी, दिल्ली में पढ़े , केरल में नौकरी कर रहे ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता,सियाहत के लेखक - अजमेर राजस्थान में है केरल में नही , कहां से मिलेगा शाम को , दिमाग खराब है क्या
दादा शाम को मिलते है... फोन कट गया ! दिनभर व्यस्त रहा शाम को अचानक फोन आया 520 पर, बस दो मिनिट में पहुंच रहा हूँ - बाहर आइये
मैं कमरे से निकलकर बाहर आता हूँ तो देखता हूँ साक्षात आलोक बाबू सामने है , 8-9 साल बाद - सपना या सच अपने को चिकोटी काटता हूँ और गले लगा लियौ भींचकर तो यकायक आँसू निकल पड़े । संयोग ऐसे भी हो सकते है क्या, जीवन इतना सुखकर भी हो सकता है ?
थोड़ी देर में एक मोहतरमा आती है मिलने - जिन्हें आलोक ने बुलाया है और फिर एक और सज्जन, एक शोधार्थी दोपहर ही आ गया था मिलने - बस फिर क्या, खूबसूरत समां चाय और बातचीत । लम्बी बात साहित्य, शिक्षा, निंदा पुराण, लेखन, कविता , कहानी, उपन्यास, दिल्ली , किताब , प्रकाशक और राजस्थान के लेखक - मतलब डेढ़ दो घँटे बातचीत और दो खूबसूरत मेजबानों के साथ लज़ीज़ भोजन, मतलब जीवन मे इससे बेहतर और क्या हो सकता था!!! और यह सब सम्भव हुआ फेसबुक वाट्स एप्प की बदौलत - आप गलियाते रहिये इन माध्यमों को पर हम तो इश्क की दुनिया इन्ही प्लेटफॉर्म्स से आबाद करते रहेंगे जो जीवन को सुलभ बना रहे है और दोस्ती के दायरे बढ़ा रहे है
भोजन पश्चात दोनो मेजबानों द्वारा अपनी लिखी किताब भेंट करना मतलब सोने में सुहागा . सहज, सौम्य, विशुद्ध अकादमिक अध्येताद्वय डॉ विमलेश शर्मा जी, एक अच्छी कहानीकार - जो कमलेश्वर के साहित्य पर पी एच डी कर स्थानीय कन्या महाविद्यालय में प्राध्यापक है, डॉ किशना राम महिया जी - संस्कृत के प्रकांड विद्वान और प्राध्यापक - जो हिंदी साहित्य के गम्भीर अध्येता भी है, से मुलाकात , दोनो का स्नेहिल साथ और आतिथ्य मिला
सुबह ख्वाज़ा साहब की दरगाह शरीफ हो कर आया था पर रात को फिर सियाहत के लेखक Alok Ranjan के लिए टांग दुखाते हुए रात ग्यारह बजे पुनः दरगाह पहुँचे। इतनी भीड़ और रंगीन नज़ारे, कव्वाली का सुरूर और लोगों की श्रद्धा देखकर अभिभूत हुऐ दरगाह जो बन्द थी सिर्फ ज़ायरीन अंदर जा सकते थे पर कैम्पस में देर तक बैठकर सब निहारते रहें और रूहानी सुकून को महसूस किया, किसी शहर को सोते हुए देखना कितना सुकून देता है यह एहसास पुख्ता हुआ
खूब गप्प करते लौटे और फिर रात लगभग दो बजे सोए
कल सुबह दरगाह गया था तो पता नही था कि केरल से दिल्ली आया आलोक अचानक यूं मिलने आ जायेगा और जीवन की 25 जुलाई की शाम को इतने प्यारे दोस्तों के साथ अमर बना देगा - यह सब ख़्वाजा साहब की दुआओं के फ़लीभूत होने का असर है कि हम 8 साल बाद मिलें
सबका शुक्रिया , यह दिन धरोहर है और स्मृतियों में बने रहने वाली ताकत





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