शापित गंधर्व का उदित होना
ये जज्बा कितने दिनों तक बना रहेगा यह देखना होगा
मुकुल तो खुद बाहर आना चाहता है इस सबसे पर मित्र और बाकी लोग चाहते है कि वो उसी मयखाने में डूबा रहें क्योकि उसके मैदान में आने से बहुत लोगों के संगीत की कलाईयाँ ही नही खुलेगी बल्कि धँधा भी चौपट हो जाएगा
बात निकलेगी तो हिसाब किताब होंगे और फिर संगीत की सत्ताएं भी हिलेंगी और खतरे बढ़ेंगे
यह दीगर बात है कि मुकुल का गायन समकालीन शास्त्रीय संगीत के परिदृश्य पर सबसे श्रेष्ठ, सशक्त और पूर्णतः अकादमिक है, मुकुल की गायकी में जो नूतनता और मौलिकता है वह कही से किसी कैसेट सुनकर घरानों की नकल नही लगती है और यही ठेठ पन, सादगी और रागों पर मजबूत पकड़ उन्हें महफ़िल में सम्मान भी देती है और शाश्वत पहचान भी
मेरी नजर में वर्तमान समय मे वे एकमात्र ऐसे गायक है जो शास्त्रीयता की बारीकी को समझते ही नही, पकड़ ही नही रखते बल्कि नए प्रयोग और अनुसंधान से राग विराग को एक प्रभावी उच्च दिशा में ले जाने का साहस भी जोखिम के साथ रखते है , कबीर की परंपरा को वे बेहद अख्खड़ पन से लगभग तीन दशकों से जीते आये है - एक धोती और एक कुर्ते में क्या तन माँजता रे एक दिन माटी में मिल जाना को जीने के साथ चरितार्थ भी कर रहे है और इस तरह से कबीर की असली परम्परा को निभा रहे है
दुनियादारी से दूर जीवन जी रहे माँ नर्मदा के पुल के नीचे हंडिया में लगभग बीस वर्ष बीता देने वाले मुकुल दा से परिचय बहुत पुराना है भोपाल में बीते दुखद समय फिर सीहोर के नशा मुक्ति केंद्र में तीन माह तक सम्पर्क आदि सबके बाद उनका पूना चले जाना और अब यह खबर बेहद आशा जगाती है
मुकुल शिवपुत्र को अगर यह सच में लग रहा है कि वे अब महफिलों को बेहतर आकार देकर शास्त्रीयता से संगीत को एक मकाम पर ले जा सकते है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए और उन्हें पर्याप्त समय, मौके भी दिए जाने की जरूरत है
देर से ही सही शास्त्रीय संगीत के मुरीदों को अपने प्रिय गायक को फिर जमुना किनारे के गांव को लय में सुनने देखने का प्रत्यक्ष मौका मिलेगा और हम , Navin Rangiyal Anirudh Umatतो इंतज़ार कर ही रहे है कि यह दशकों का सूनापन खत्म हो और कोई गायक आये और संगीत की सुर लहरियां बिछा कर आत्मा के पोर पोर पर रागों बरसात कर दें
आमीन
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