तीन माह की बच्ची से चालीस साला औरतों के बीच मीडिया में चांटे , अग्निवेश की पिटाई Posts of 17 July 2018
सिर्फ मनुष्य होने का सपना भी खत्म हो गया और मैं, तुम, वो और हम - सब कुछ भी नही कर पाएं, हमारी एषणा हमें ही छलती रही - बस धीरे धीरे सब समाप्त हो गया
तीन माह की बच्ची से चालीस साला औरतों के बीच मीडिया में चांटे
बहुत सालों से कह रहा हूँ कि जेंडर की बहस अब बराबरी, सिगरेट, शराब, सेक्स और वेतन की बराबरी या रसोई के काम तक सीमित नही है बल्कि मामला बहुत आगे जा चुका है
यह अब सीधे सीधे सत्ता के उपयोग, दुरुपयोग, मीडिया में ट्रोल बनने और बलात्कार के साथ अदालतों में खड़े होकर पीटने से लेकर लाइव प्रोग्राम में धर्म के तथाकथित अपढ़ कुपढ मुल्ला मौलवियों और पंडितों और रसूखदारों पर हाथ उठाकर चांटा मारने और खाने तक आ गया है
देश मे जो भी तनावग्रस्त, पति से हारी, सास - ससुर से तंग , तलाकशुदा , परित्यक्तताएँ , सेल्फ एस्टीम खोजती तितलियां है और एनजीओ में जेंडर की बहस में रुपया कमाने वाली और बहनापा जताकर घर बिगाड़ू औरतें है वे देख लें कि यह बहस कहां आ गई और अब रेडिकल एक्शन का समय है
हमारे नीति निर्धारक, चापलूस और समाज के ठेकेदार भी समझ लें कि आपको बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ से नही - कुछ और हथियारों से समाज की रचना प्रक्रिया में जोड़ना पड़ेगा
हिंदी की कवियित्रियों को सोलह साल से लेकर चालीस साला औरतें जैसी कविताओं, मासिक धर्म और चेहरे की झुर्रियों और बॉस को रिझाने के एक हजार उपाय या पुरस्कार के जुगाडमेन्ट के बजाय कुछ और सार्थक लिखना होगा, बहुत हो गया "मैं नीर भरी दुख की बदली" और " दफ्तर में आकर नाखूनों में गीले आटे को खुरचने" की अदायें - ये अब पत्थर युग की बातें है
अंजना ओम कश्यप जैसी कर्कश महिलाओं और प्रायोजित मुल्लों को लेकर सत्ता जो खेल करती है साथ ही कुछ प्रगतिशील कठमुल्ले लिख भी दें कि यह सत्ता का खेल है और हम इसमें एक समुदाय के स्तर पर शामिल नही तो बात अब बनेगी नही गुरु , ये वही भेड़िया भीड़ है जो सुषमा स्वराज को भी नही छोड़ती और कठुआ कांड में भी झंडा उठाकर सामने आती है
दुकानों के पर्दे नही - बरनी, तराजू और सामान बदलने का भी समय आ गया है और अब जो जेंडर और बराबरी की बात करें सोच समझकर करें और लिजलिजी भावनाओं में अब कुछ होने वाला नही है, बन्द करो बहस और आंकड़ों की बाजीगरी, महिला साक्षरता की तबला - पेटी और झांझ बजाकर महिलाओं ने ही और महिलाओं की दुकान उर्फ एनजीओ ने सरकार जैसी संस्था को चूतिया बना दिया एवम ताली पीटने लायक भी नही छोड़ा और इन जेंडरियों ने अपना घर भर लिया
अब नए हथियार , बहस के मुद्दे और तर्क ढूंढकर लाओ या वाट्स एप समूहों में या किटी पार्टी में बजबजाते रहो, जेंडर और स्त्री मुक्ति के नए सन्दर्भ है और नए प्रसंग - इनकी व्याख्या एनजीओ स्टाइल में या धार्मिक आख्यान से नही हो सकती
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न्यूड इंडिया में युवाओं की भीड़ और जोश के बीच स्वागत है
सुप्रीम कोर्ट के आज के निर्णय के दिन ही कानून की धज्जियां उड़ाई गई है अर्थात अब जंगलराज है
किसी को किसी का डर नही है और यह सब कौन क्यों और किस ध्येय को लक्ष्य कर के कर रहा है हम सब जानते है पर ना तुम बोलो ना हम
कितना और गिरोगे , किस संस्कृति की पैदाइश हो, किस मॉडल के अनुयायी हो, किसकी संतति हो और किसकी नाजायज पैदाईश
शर्म हया है या बेच खाई है
देश है या मजाक और याद रखना कल ये भस्मासुर तुम्हे भी नही छोड़ेंगे, जब तुम इनके मन माफिक फ़ैसले नही लोगे तो और इस बात के लिए मुतमईन हूँ - अभी तुम्हारी ही विदुषी सुषमा स्वराज को ट्रोल किया था ना , सामने होती तो पीट पीटकर सड़क पर ही हत्या कर देते ये भारत माँ के सच्चे शेर
अरे मर्दों कश्मीर जाओ, बॉर्डर पर जाओ वहां असली दुश्मन सशरीर उपस्थित है - जाओ, मर्दानगी दिखाओ - एक 80 साल के बुजुर्ग को पीटकर कौनसे मर्द हो जाओगे
सीजेआई सुन रहे हो, देख रहे हो न - गलत परम्पराओं को अपनाने और प्रश्रय देने के निहितार्थ - आज तुम्हारे ही निर्णयों का मखौल उड़ाते ये न्यायप्रिय युवा नागरिक सड़क पर नंगा नाच कर रहें है
हो सकता है कल कुछ और निर्णय या कोई बड़ा निर्णय लो तो ये तुम्हे उसी क्षण चेम्बर से खींचकर मार दें , क्या उस दिन का इंतज़ार कर रहें हो , जस्टिस लोया की आत्मा सब देख रही होंगी - सब यही है - यही है - यही है पुण्य और पाप का हिसाब, कहते है ना समय बड़ा बलवान और ईश्वर के घर देर है अंधेर नही
याद रखना "सुख के सब साथी, दुख का ना कोई"
पत्रकार मित्र Kundan Pandey का कहना है कि " 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्ष को यह तस्वीर हर गली-मोहल्ले में लगाना चाहिए" [ तस्वीर 2 ]
19 July
कल का अविश्वास प्रस्ताव महज सदन का समय और हमारे धन को बर्बाद करने का एक और दिन है
यह करके विपक्ष बची खुची विश्वसनीयता भी गवां रहा है
एक भी ऐसा नही जो तर्कपूर्ण ढ़ंग से बोल सकेगा , फालतू में मीडिया को चिन्दी दे दी
राहुल तर्कपूर्ण बोलेंगे पर भाजपा और अमित शाह मोदी ने तो पूर्वाग्रह बना रखें है कि हंसी उड़ाना ही है तो कोई अर्थ नही , बाकी विपक्ष कुत्तों की तरह पूंछ ही हिलाएगा - सबके हित जुड़े ही है छुपा नही है
बेहतर है कि सुबह जाकर वापिस ले लें और कुछ बिल पर बहस कर लें, सरकार इस बहाने से बदमाशी कर 65 मनमाने ढंग से बिल चुपचाप पास कर लेगी और जनता को मालूम भी नही पड़ेगा, ये लोग इतने सीधे नही कि तुरन्त मान गए
यह षड्यंत्र है और कमाल यह है कि सारे शिरोमणि एक झटके में शिकार हो गए
इससे तो इनकी ही शक्ति बढ़ेगी और जनता में मोदी का फिर फेस लिफ्ट होगा और बचे एक साल में ये मनमानी कर और विध्वंस करेंगे
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