मप्र में कांग्रेस की चुनावी रणनीति
यह निश्चित ही सुखद खबर है और प्रदेश की राजनीति में शुचिता, जन सरोकार और आम लोगों की पीड़ा से रूबरू होकर वास्ता रखने वाले लोगों का राजनीति में आना यह भी सिद्ध करता है कि काँग्रेस की चौतरफ़ा रणनीति अबकी बार मजबूत है।
मजेदार यह है कि विनय परिहार, गिरजा शंकर जी , पारस सकलेचा जैसे लोगों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता डाक्टर आनंद रॉय, आर टी आई कार्यकर्ता अजय दुबे ,युवा आदिवासी कार्यकर्ता भाई डाक्टर हीरा अलावा जैसे लोगों के राजनीति में काँग्रेस के साथ आने से पार्टी तो मजबूत होगी ही बशर्ते इन लोगों को फ्री हैंड दिया जाए, दूसरा टिकिट मिलें यह संयोजन समिति में विवेक तनखा जी सुनिश्चित करें और तीसरा महत्वपूर्ण भाग कि क्षेत्र विशेष की विधानसभा के लोग इनके कामों, सरोकारों से वाकिफ होकर इन्हें वोट जरूर दें। कल की बैठक में दलित और आदिवासी नेता देवाशीष जरारिया भी थे। कुल मिलाकर यह रणनीति कि दलित आदिवासियों को नेतृत्व की अग्रिम पँक्ति में रखकर पांचवी अनुसूची को लागू करने की मंशा भी झलकती है जो शिवराज गत 15 वर्षों में नही कर पाएं और ना कभी दिल से उनकी इच्छा रही।
मप्र में यह एक सही समय है जब भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकने की सख्त आवश्यकता है और गिरजाशंकर जी या विनय परिहार जैसों का काँग्रेस की बिसात पर आकर चुनाव लड़ने का माद्दा दर्शाता है कि इसके बैकबोन संगठन संघ या पार्टी में कितना कलह, अनाचार और तानाशाही है। जाहिर है एक व्यक्ति ने 15 वर्षों से प्रदेश में एक छत्र राज किया और अपनी निजी महत्वकांक्षाओं के चलते प्रदेश को गर्त में पहुंचा दिया - यह असन्तोष तो उभरना ही था।
अभी यह तो शुरुवात है टिकिट बंटवारे के समय बागी लोगों का एक काफिला उभरेगा और फिर जो मुसीबतें आएंगी उससे निपटने का हुनर ना संघ के पास है और ना शिवराज के पास। भाजपा ने हीरा अलावा,आनंद राय जैसे प्रतिबद्ध लोगों का जीना हराम करने की भी कोशिश की क्योकि जानते थे कि ये लोग शिवराज के अश्व मेघ यज्ञ में रोड़ा डालेंगे पर इन लोगों ने जिस अदम्य साहस से और तर्क से शिवराज को चुनौती दी वह प्रशंसनीय है। अब ये ही लोग सत्ता को उखाड़कर एक जन सत्ता स्थापित करें यह स्पष्ट मंशा है काँग्रेस की।
एक करणी सेना को सम्हाल नही पा रहे शिवराज और कल सुप्रीम कोर्ट में चले गए तो इस आन्तरिक कलह की जिम्मेदारी और सम्हाल कौन करेगा? शिक्षकों को कल बेवकूफ बनाया है कि विभाग में संविलयन कर दिया है यह कहकर कि प्रक्रिया में 6 माह लगेंगे और तब तक आचार संहिता लग जायेगी और क्या प्रदेश की भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी इतनी सक्षम है जो तुरत फुरत काम कर दें, शिवराज जी एक बार अपनी हेल्प लाइन या भावान्तर योजना को ही देख लें तो माजरा समझ आ जायेगा।
बहरहाल , मैं तो इसका स्वागत करता हूँ अच्छे लोग राजनीति में आये सब कहते है अब इन्हें जिताकर विधान सभा मे भेजने की जिम्मेदारी भी हमारी है। बस पत्ते देखना है तो आप पार्टी के आलोक अग्रवाल के कि आलोक के पास क्या विकल्प है अब क्योकि अजय, आनंद या हीरा ने अपनी चाल भी चल दी और कैरियर भी दांव पर लगा दिया अब आलोक के सामने सम्भवतः अच्छे लोगों का टोटा पड़ेगा।
(पीपुल समाचार, भोपाल की न्यूज आज)
Comments
गजब लिखे हैं और अगर यह हुआ तो लगता है कि जिस तरह स्थानीय प्रशासन चुनाव में भाजपा की गत हुई है, वैसी विधानसभा में भी हो सकती है!