प्रेम , पीड़ा, पराक्रम और पराभव का नाम ओरछा 1 कड़ी धूप में चली थी गणेश कुंवरी अजुध्या से ओरछा की ओर गोद मे थे राम राजा जो उसकी प्रार्थना और तपस्या से नही नदी में डूबकर जान देने के इरादे के फलीभूत होने पर आये सिर्फ यही नही अपनी शर्तों और जिद पर पैदल ही चल पड़ी गणेश कुंवरी राजा राम को लेकर ओरछा की ओर क्या क्या ना सहा होगा उस रानी ने जो बुंदेलों की आन बान थी जंगल , नदी और मौसम के झंझावात भी झेले होंगे जिक्र नही इसका स्त्री को सहना ही पड़ता है गोदी में राजा राम हो , श्रीकृष्ण हो ओरछा आकर भी वह राजा राम को उनके लिए बन रहे मन्दिर में बसा ना पाई जुझार सिंह के सामने गर्व से गोदी में बैठे राजा राम को आले में बिठा दिया भव्य आलीशान मन्दिर खाली रह गया जो आज भी वीरान है राम के बिना बुंदेलखंड में कहते है लाई तो राजा राम को अजुध्या से पर मन्दिर ना दे पाई ओरछा की कहानी में राजा राम आज भी है पर गणेश कुंवरी गायब है . खंडित जहांगीर महल , लक्ष्मी और चतुर्भुज के मंदिर की कहानी में रात को होने वाले रुपया देकर कहानी सुनने वालों को शो में सुन...
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