आज पता चला कि आकाश ने आत्महत्या कर ली, मै आकाश को लगभग पिछले छब्बीस बरसों से जानता था, बहुत ही ज्ञानी और जमीन से जुड़ा बन्दा था. एनजीओ जब स्वैच्छिक संस्था के नाम से जाने जाते थे वह उसमे काम करता था, हालांकि काम तब भी कार्पोरेट्स का ही होता था बस यह था कि लोगों की भाषा और पहनावा थोड़ा सा देशज होता था. आकाश ने एक के बाद दो शादियाँ की, अंत में उसे कही भी मुक्ति नहीं मिली, एकाकीपन से तंग आ गया. इस दौरान मैंने देखा कि इस पुरे एनजीओ क्षेत्र में अकेले लोगों की एक लम्बी भीड़ है - लडके - लडकियां और कईं लोग परिवार के होते -सोते भी बेहद अकेले है, और इसी अकेलेपन ने उन्हें निष्ठुर और कामरेड बना दिया था. अपने शरीर को मारकर ये लडके लडकियां या तो निपट अकेले थे या किसी सहकर्मी के घर में सेंध मारकर जमे बैठे थे और संसार ना बसाकर भी संसार के वो सारे सुख उड़ा रहे थे जिसे वासना, प्यार या इमोशनल बैलेंस कहते है. और इस सबमे खासकरके लड़कियों को मैंने शोषित होते देखा है जो अपनी मर्जी से अपनी उन्मुक्त देह के सहारे और विचार क्रान्ति को आधार बनाकर इस अनोखी दुनिया की सत्ता पर कब्जा जमाये बैठी है.
आकाश ने भी दो विवाह किये थे और फिर लिव इन का रिश्ता रखा जिसे आजकल इस नाम से परिभाषित किया जाता है, एक दिन वो उड़ गयी जिसे उन्मुक्त गगन की चाह थी और फिर आकाश ने अपना एकाकीपन अपना लिया, परन्तु थोड़े दिन बाद उसे लगा कि यह चलेगा नहीं, फिर उसे एक नई जिन्दगी मिली. गाडी चल निकली, पर थोड़े दिन बाद मन मुटाव बढ़ने लगा. एक दिन झगडा और फिर वही शाश्वत अकेलापन.
एनजीओ में भी अकेले आदमी के लिए कोई बहुत संभावना होती नहीं और अपनी मानसिकता के लोग ना मिलने के कारण लोग टूटते जल्दी है. और फिर इस तरह के अकेले लोगो के लिए इस तरह का सहारा देने वालों की कमी भी हमारे देश समाज में है, पर इस सबमे आकाश लगातार कमजोर होता गया. मैंने देखा कि ऐसे सारे अकेले लोग एक तरह के फ्रस्ट्रेशन में जीते जी ख़त्म होते जा रहे है, गहरी वेदना में ये पुरुष कट्टर होते गए और लड़कियों को समाज ने घर बिगाडू औरतों का दर्जा दे दिया और ये कही नक्सलवाद में गुम हो गयी या कही साहित्य में घूस गयी और फिर धीरे से शादी शुदा मर्दों के बिस्तर से दूर अपनी एक दुनिया बसाने के लिए लड़कियों को गोद लेकर पालने लगी. पर इस बीच आकाश को कही ओर - छोर नहीं मिल रहा था..............
कल रात जब मै देर तक जाग रहा था और उसके साथ बात कर रहा था तो पाया कि अकेलेपन ने उसे तोड़ दिया है और ना ही उसके पास अब उसके दोस्त बचे है ना ही संस्था के लोगों की हमदर्दी ; जिन संस्थाओं को मदद करके बड़ा किया, जिन आन्दोलनों को खडा किया, वे सब अब उससे कतराने लगे है और आखिर में अलस्सुबह तीन बजे उसने कहा कि चलो संदीप मै सोता हूँ और तुम भी सो जाओ, मुझे क्या पता था कि वो नींद की गोलियों का भयानक बड़ा डोज़ लेकर हमेशा के लिए सो रहा है.......
अभी निशांत का फ़ोन आया तो पता चला कि अकेलेपन ने उसकी जान ले ली, आकाश नहीं रहा, यह मेरे लिए कोई नई सूचना नहीं थी, वो तो उसी समय ख़त्म हो गया था जब वो बेहद अकेला रह गया था अपने आप के साथ. मैंने उससे कहा था आख़िरी बार कि खुश रहो आबाद रहो, उसकी मौत की खबर सुनकर अब कुछ कहने की शक्ति नहीं रही. रह रहकर आकाश की आख़िरी बात याद आती है कि "यह अकेलापन मेरी जान ले लेगा या मै ही सौंप दूंगा अपने आप को किसी दिन गहरी नींद के हवाले.........."
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