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बचा लीजिये अपने देश के बच्चों को इन शिक्षा के नवाचारियों से

साथी लोग पूछ रहे है कि मै इतना अनुभवी, शिक्षित, और अंग्रेजी का जानकार होने के बाद भी और शिक्षा के काम का थोड़ा बहुत सामान्य अनुभवी होने के बार भी यूपी के लखनऊ में एक प्रोजेक्ट में "एडजस्ट" क्यों नहीं हो पाया और क्यों भला लौट आया??? जवाब बहुत साफ़ है कि मै निकम्मा और अयोग्य हूँ यह मैंने सीख लिया और फिर लगा कि व्यर्थ में अपने आपको खपाने से बेहतर है कि कही दूर चला जाए चापलूसों और मक्कारों की दुनिया से मै तो बिगड़ा था ही, कम से कम अपनी रचनात्मकता तो ख़त्म नहीं होगी उस घुटन और अँधेरे में, शिक्षा के नाम पर व्यवसाय करने वाले, गरीब बच्चों की शिक्षा के नाम पर गांजा, शराब और रूपये की हवस में अपने जमीर को डूबो देने वाले तथाकथित भ्रष्ट शिक्षाविदों और प्राथमिक शाला के मास्टर से कंपनी के मालिक बन बैठे गंवार और उज्जड लोगों से मुक्ति तो मिलेगी, लूले- लंगड़े और तोतले और अपने ही बेटों की ह्त्या करने वाले समाजसेवी , अपनी बीबी को तलाक देकर देश भर में मूल्य शिक्षा की बात करने वाले, कंसल्टेंसी के नाम पर सालों से दूकान चलाने वाले देश की प्रखर मेधा शक्ति, सिगरेट और दारु में मस्त महिलायें, छदम मीडिया के उजबक पैरोकार और अपनी शाला से महीनों दूर रहकर दूसरी संस्कृति और भाषा के क्षेत्र में पाठयक्रम विकसित करने वाले बौड़म मास्टर जो सिर्फ रूपये के लिए अपना जमीर बेच देते है, से मुक्ति की कामना थी, इसलिए लौट आया कुछ लोगों का साथ ना होता तो शायद ये यातना के छः माह भी नहीं निकल पाते, मेरे लिए उस नवाबी और अच्छे शहर लखनऊ में......अब सवाल मेरे लिए यह है कि इस गेंग के मक्कार और एकदम हरामी लोगों से कैसे बच्चों को बचाया जाए वरना उनका जीवन तो अँधेरे में है ही, माफ़ कीजिये तीखा लिखा है पर आप वाकिफ है कि मै क्या कह रहा हूँ........एनजीओ कल्चर के नाम पर सिर्फ व्यवसाय और नया बिजिनेस माडल विकसित कर रहे है लोग बाग़, हवाई यात्राएं और तीन स्टार होटलों में ठहरना रहना खाना पीना और ऐयाशी.............बस यही है शिक्षा में नवाचार बनाम व्याभिचार........

Comments

deonath dwivedi said…
kisi ko nahi chhoda, sab ko pahchaan lene ke kaafi sanket diye hai aaney.....

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