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उच्च शिक्षा और सीनियर सेकेंडरी कक्षाओं की ज्यादा ध्यान दिया जाये- सन्दर्भ उप्र की शिक्षा व्यवस्था

उप्र मे हरदोई जैसे जिला मुख्यालय पर सीनियर सेकेंडरी कॉलेज की स्थिति इतनी दयनीय है कि बता नहीं सकता. प्रधानाचार्य मजबूर, बच्चे छत से कूद जाते है यदि वे दरवाजे पर ताला लगाकर रखते है तो, डाईट मे फर्नीचर है पर ४५० शिक्षक अभ्यर्थियों को जमीन पर बैठना पडता है, कालेजों मे हालत खराब, बिजली नहीं पंखे नहीं, और अध्यापकों की भारी कमी. हालत इतनी खराब कि हर कक्षा के तीन चार सेक्शन होने के बाद और कक्षा मे सत्तर से अस्सी छात्र होने के बाद भी राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की ओर से कोई ठोस पहल नहीं ना बजट ना प्रावधान और शैक्षणिक स्तर का मत पूछिए भा जान बच्चों को कुछ पता नहीं , सितम्बर माह चल रहा है और वे साधे सात पर स्कूल आते है और साढ़े बारह तक मैदान मे खड़े रहते है बस फ़िर ट्यूशन चले जाते है, कभी कोई जाता नहीं देखने परखने . रसायन शास्त्र के व्याख्याता ने जब रसायन की प्रयोगशाला खोली तो लगा कि मै सत्यजीत रे की किसी फिल्म के दृश्य मे आ गया हूँ मकड़ी के जाले और सदियो से जमी हुई धूल और उपकरण टूटे-फूटे मानो किसी ने बरसों से छुआ भी नहीं. कह रहे थे कि क्या करना है साहब ना साधन है ना बच्चे सीखना चाहते है. स्कूलों मे अतिक्रमण प्राचार्य कह रहे थे कि हम पढाए या चाकू लेकर मोहल्ले वालों से लडें ? बड़े हाल मे पानी भरा हुआ और छतें ऐसी कि अभी टूटकर गिर जायेंगी. और यह लखनऊ से मात्र एक सौ दस किमी पर है और राजनैतिक रूप से बेहद जागरूक. सडकों पर बच्चों की भारी भीड़ और स्कूलों मे भी भीड़ पर ना साधन ना गुणवत्ता अब क्या करें कितना बड़ा चैलेज है यहाँ काम करना यह समझ आया. पर इसके विपरीत निजी और मान्यता प्राप्त स्कूलों मे घटिया मैनेजमेंट के कारण शिक्षकों की हालत खराब मैनेजर का इतना दबाव कि बस शिक्षक सांस भी पूछ कर लेता है. उफ़ ये यूपी सच मे उलटा प्रदेश है. हरदोई जिले मे शिक्षकों की बेहद कमी है और मजेदार यह है कि एक इंटर मीडियेट कॉलेज मे उर्दू की एक शिक्षिका विज्ञान विषय पढ़ा रही है. अब बताईये कि कैसा अनूठा संयोजन है और यह सबके संज्ञान मे है, वो कह रही थी कि अब क्या करें? दूसरी ओर बारहवीं के बच्चे हेंड पम्प, मेरी माँ, अखबार, या पानी के जग या कुर्सी पर पांच वाक्य हिन्दी मे नहीं बोल सकते, अंग्रेजी मे बोलना तो बहुत दूर की बात है. पता नहीं संकोच, आत्मविश्वास की कमी, डर, कौशल या दक्षता की कमी है. माट्साब कहते है "साले गंवार है जानवर कही के, कभी नहीं सुधर सकते, साले ढोर ही रहेंगे.........." अब बताईये कौन दोषी है जब नवमी से लेकर बारहवीं तक के बच्चे एक बड़े से पेड़ के नीचे बैठे है. सारे माट्साब गप्प लगा रहे है और बेचारे प्रधानाचार्य अकेले कमरे मे बैठकर बोर्ड परीक्षा के फ़ार्म भर रहे है क्योकि अध्यापक कोई सहयोग नहीं करते. उलटा प्रदेश और राज्य सरकार लेपटॉप बांटकर "पुण्य" कमा रही है और वोटों की फसल काटना चाहती है. मेरे साथ एक मित्र थे उनका एक मासूम सवाल था कि सरकार इन बच्चों के बारहवीं पास कराकर क्यों इनकी जिंदगी से खेल रही है, क्यों इनका जीवन बर्बाद कर रही है, बंद कर दो सारे स्कूल, क्यों इन्हें कचरा बनाकर बाहर प्रोडक्ट के रूप मे शिक्षित की श्रेणी मे दर्ज किया जाएगा..........? ,मुझे लगा कि सवाल तो वाजिब है पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था, और अगर ऐसे देखे तो देश के आधे से ज्यादा हाई स्कूल, सत्तर प्रतिशत इंटर मीडियेट कॉलेज, और शत प्रतिशत डिग्री और पी जी कॉलेज बंद कर देना चाहिए क्योकि कोई भी उपयोगी और जीवन परक शिक्षा कही नहीं दी जा रही और हमारे देश के लोग इसका सीधा सीधा परिणाम भुगत रहे है. अब समय है कि देश का ध्यान प्राथमिक शिक्षा से हटाकर थोड़ा बहुत उच्च शिक्षा और ज्यादा ध्यान सीनियर सेकेंडरी कक्षाओं की तरफ दिया जाये.




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