समाज सेवा या वकालत के क्षेत्र में आजकल स्थानीय, क्षेत्रीय भाषाओं और लोक बोलियों को छोड़कर अंग्रेजी का "प्रकोप" बढ़ता जा रहा है, ना जाने क्यों यह कैसे शुरू हुआ कि काम दलित, वंचित या आदिवासियों के साथ करना है पर हम सारे दस्तावेज, रिपोर्ट, किताबें अंग्रेजी में लिखेंगे - छापेंगे और जनता में भी बंटवाएंगे, सारी फंडिंग एजेंसी काम भाषा बल्कि स्थानीय बोली में करने की मांग करती है पर रिपोर्ट और प्रस्ताव अंग्रेजी में मांगती है - जिसका विरोध किया जाना चाहिए दूसरा, आजकल अपने किए छोटे से छोटे काम को प्रदर्शित करने की अजीब आत्ममुग्धता बढ़ गई है, मैने इसी प्लेटफॉर्म पर देखा है कि लोग और संस्थाएं आडिट के फोटो भी डालते है, पिकनिक पर गए वो भी डालते है, और इन संस्थाओं का स्टाफ या जुगाड़ी गई फेलोशिप या तथाकथित मुहल्ले में किए काम की रिपोर्ट को AI का प्रयोग करके अंग्रेजी में इतनी लंबी लिखकर यहां डालते है कि उनसे पूछा जाए कि इसका अर्थ क्या है - वे बता नहीं सकते हमारे मप्र, छग, उड़ीसा, राजस्थान, बिहार या दूसरे राज्यों की संस्थाओं के कई दूरस्थ इलाकों के साथियों को जानता हूँ - जो आठवीं - दसवीं पास भी...
The World I See Everyday & What I Think About It...