कोई रंग पसन्द नही था मुझे मोगरे को देखता तो सफ़ेद पसन्द आता, गेंदे को देखता तो पीला भाने लगता, गुड़हल देखा तो चटख लाल मन को भा गया, फिर गुलाब देखा तो गुलाबी से इश्क हो गया, मौलश्री, पारिजात, शिउली, सप्तपर्णी, शेवन्ती, प्राजक्ता, परिमल, केवड़ा, बोगनवेलिया, रात रानी, मधु मालती से लेकर डेहलिया, बारहमासी और तमाम तरह के फूल देख लिये
पहले अपने ही शहर में लगने वाली पुष्प प्रदर्शनी देखता था और काँच के ग्लास या शीशियों में बन्द फूलों को देखता जो दो दिन में ही कुम्हला जाते, तो दुख होता था, फिर अपने कमरे में छोटे गमलों में फूल लगाना शुरू किए, फिर छत पर और फिर घर की खाली पड़ी थोड़ी सी जमीन पर, हर मौसम में फूल आने लगे - पौधे बड़े होते गये और पेड़ों में तब्दील हो गए - गुलमोहर, पलाश, नीम, कढ़ी पत्ता, पीपल, चम्पा, राखी, आम, अमरूद, अशोक, बबूल, नीलगिरी और वे पौधे जो छोटे थे बड़े होते गये - एक दिन ऐसा आया कि घर के हर हिस्से में फूलों की सुवास हर मौसम में बनी रहती, टेसू के जलते फूल और लाल भक्क गुलमोहर गर्मी में जैसे दूर से जलते दिन के चिराग होते, नीलगिरी की खुशबू या निम्बोली की महक, अमरूद, आम और चम्पा की सुवास या सप्तपर्णी की मदहोश कर देने वाली खुशबू मानो जान ले लेती थी
ना घर के भीतर आने का मन करता और ना कही भटकने का, जमीन पर रँग - बिरँगे फूल, थोड़ी ऊँचाई पर झूमती बेलें, हवा में इठलाती डालियाँ और किसी आकाशदीप से लटकते फूलों के गुच्छे और इन सबके साथ हरेपन के शेड्स लिए हुए पत्तियों के प्रकार, शुष्क और कमजोर तने के बनते - बिगड़ते रूप इन सबके बीच जब वासंती हवाएँ चलती, फाग के बीच मन मदन होने लगता तो कि अब और क्या चाहिये जीवन में, गर्मी में सब कुछ नष्ट हो जाता - चातक की तरह से आसमान को टोहता रहता तो अमरबेल जो पूरी बेशर्मी से यहाँ - वहाँ अशोक की डालियों पर बिखरी रहती उसकी विषैली बदबू भी संतृप्त कर जाती - लगता था खाना पीना और काम छोड़कर यही पसरा रहूँ और जीवन चट्ट से बीत जाये किसी फूल की भाँति ही जीवन हो छोटा, मादक और अपने आप में मस्त - किसी को अपने होने का सबूत ना देना पड़े, ना खिलने के लिये चिरौरी करनी पड़े और सिर्फ़ अपने लिए क्षण भर जीकर खत्म हो जाये और किसी को रत्तीभर भी फर्क ना पड़े, बल्कि कोई नोटिस भी ना लें खिलने और नष्ट होने का - सारा मधु तितलियों को सौंप जाऊँ या मधुमख्खियों को जो शहद की अमृत बूंदें ही बनायेंगी फूल के रस से, भँवरोँ की गुनगुन ही कानों में पड़े बजाय किसी चकल्लस के
अब मुझे सारे रंग पसन्द थे, कोई कहता कि एक फूल का नाम लो तो मैं चुप हो जाता - क्योंकि मेरे पास एक नही, दर्जनों नाम थे, मैं किसी एक रंग को नही चुनता था - क्योंकि मेरे पास इंद्रधनुष से ज़्यादा रंगों के विकल्प थे, बल्कि इतने रंग मैंने घूम - घूमकर देख लिये थे, इतनी खुशबू मेरी घ्राणेंद्रियों से मेरे जिस्म में समां गई थी कि मैं अपनी ही खुशबू भूल चुका था - मेरे लिये हर शख़्स एक फूल था, गुल था, शाख था, खुशबू था और उतना ही जरूरी - जितना किसी जंगल में एक पेड़ या घास का तिनका, हर शख्स एक मुकम्मल रंग था और अब किसी एक रंग में रंग जाने का जीवन में फिर भी कोई अर्थ भी शेष नही था
फिर भी उसने पूछा था कि - "तुम्हें कौन सा रंग पसंद है", तो मैंने तुरंत कहा था - "नीला, इसलिए नीला - क्योंकि उस नीले आसमान के नीचे ही दुनिया के सारे रंग, सारे फूल, सारी खुशबू है, और सारी हवाएं मौजूद रहती है और उस आसमान को पार करके बाहर जाना किसी के बस में नहीं है" - हालांकि विज्ञान तो यह भी कहता है कि आसमान नीला नहीं है, परंतु क्योंकि नीला आसमान हमारा विश्वास और आस्था है और हमें सदियों से यही सिखाया गया है कि आसमान नीला होता है - इसलिए मुझे नीला रंग बहुत पसंद है, मरने पर नसों के साथ काया भी नीली पड़ जाती है, जिंदगी का जहर पीते - पीते हम इतने मजबूत हो जाते हैं कि हमारे भीतर का लाल खत्म हो जाता है और वह नीले में तब्दील हो जाता है - इसलिए मुझे नीला रंग बहुत पसंद है और जब भी मैं कोई नीली चीज देखता हूं तो मुझे सब कुछ नीला - नीला - नीला नजर आता है - नदियाँ हो, समुद्र हो, पहाड़ हो, क्षितिज या फिर अपनी आंखों का पानी - मुझे सब नीला नजर आता है - जब तक पूरा नीला ना पड़ जाऊँ तब तक जीने का हौंसला बना रहे यह मैं अनजान शक्ति से प्रार्थना करता हूँ, मज़ेदार यह है कि कहते है - वह शक्ति भी नीले आसमान के पार ही है
क्या तुम्हें किसी नीली आँखों वाली लड़की की कहानी मालूम है या क्या तुम्हें नीला रंग पसन्द है
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