वर्चुअल दुनिया से असली दुनिया में
•••••
इस वर्ष के आखिरी हफ़्ते में आखिरी यात्रा कर रहा हूँ और इस तरह की उबाऊ यात्रा में जब अपना कोई मिल जाता है तो सारी थकान भी दूर हो जाती है और खुशी का तो पूछो ही मत, लम्बी यात्रा कर एक और यात्रा पर पहुँचा तो खबर मिली, बस फिर क्या था - समय कम था, घूमे फिरे, शॉपिंग की, मिठाई ली, बढ़िया खाना खाया और जल्दी मिलने का वादा कर विदा हो गए, ये यहाँ प्रशिक्षण पर है और अपुन रास्ते की धूल फांकेंगे फिर से, पर उम्मीद है फिर दोस्त मिलेंगे किसी अड्डे या ठिये पर - जो मेरी ताकत है
ये जनाब है तो पटना के पर दक्षिण भारत में किसी बैंक में राजभाषा अधिकारी है - विजयवाड़ा नामक शहर में, बहुत सहज, नेकदिल है, खूब पढ़ते और लिखते है, युवा विलक्षण आलोचक की श्रेणी में है, देश के चुनिंदा अग्र पंक्ति के साहित्यकार है, और बहुत साफ़ बोलते है - इसलिये मेरे लाड़ले है, लम्बे समय से फेसबुक से जुड़े थे, रोज बात न हो तो चैन नही पड़ता हमें, इनकी शादी में ना जाने पा का अफ़सोस था, आज मिलकर थोड़ा गिल्ट कम हुआ, पर अभी बहु से मिलना बाकी है - सो जनाब ने वादा किया है कि घर लेकर आयेंगे
Khushbu Thakur तुम्हें खूब मिस किया हमने, जल्दी आओ अब घर
खूब जियो और ख़ुश रहो बिटवा, आज का दिन सार्थक बनाने को, जीवन का बेस्ट क्रिसमस था यह Mayank Manni Saroj
याद आते है अज्ञेय
"हम फिर मिलेंगे
किसी दूसरे शहर में
अजनबियों की तरह
और ताकते रह जाएंगे
एक दूसरे का मुंह"
***
"सुनो, जब कविता पढूँ तो अलग - अलग एंगल से बढ़िया फोटो खींच लेना, माइक कम पर चेहरा पूरा दिखें, पीछे का बैनर आ जाये, पर मंच के बाकी कोई कवि ना आये और हाँ, ये जो आठ - दस दर्शक बैठे है ना सोते हुए, उनके फ़ोटो कुछ यूँ खींचना कि हॉल भरा - भरा दिखें और बाकी वो जो सिडला बैठा है ना पीछे कोने पर उसका फोटो बिल्कुल भी नही आये यह ध्यान रखना "
Comments