Professional goals are temporary but personal loss is permanent
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2014 से अभी तक की उपलब्धि यह है कि 80 करोड़ से ज़्यादा गरीब गुर्गों उर्फ़ वोट बैंक को घर बैठे राशन फ्री में बाँटना पड़ रहा है
और 80 करोड़ से ज़्यादा मक्कार और लोभी लालची लोग यह नही समझ रहें कि सब चुनाव की माया है जो इस देश मे रोज़ होते रहते है
अभी गुजरात, दिल्ली और हिमाचल में हुए, 2023 में मप्र, राजस्थान में होंगे और 2024 में देश भर में
मध्यम वर्ग मेहनत कर टैक्स भरें और माले मुफ्त ये उड़ाये - इससे बड़ी मूर्खता कोई सत्ताधीश कर सकता है, कितनी अक्ल है यह स्पष्ट है
रोज़गार ना देकर पाँच किलो की रेवड़ी बाँटना ही असली राम राज्य है मित्रों, किसान करें मेहनत और ये बाँटे मुफ़्त
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नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान
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◆ देश मोदी नही अम्बानी अडाणी चला रहे है
◆ नोटबन्दी, जीएसटी किसान, छोटे व्यापारी, मजदूर, युवा, और संघर्ष कर रहे लोगों को मारने के लिये थी
◆ कोरोना का डर नही यह भारत जोड़ो यात्रा का डर है, सरकार डरी हुई है
◆ मीडिया डरपोक है जिसकी लगाम सरकार के हाथ में है
◆ हिंदुस्तान में नफ़रत का नही, प्यार का माहौल है, लोग नही मीडिया और सरकार लड़वाती है - डर से मुक्ति पाना ही होगा
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हरियाणा में राहुल का 22 मिनिट का भाषण सुनिये दिमाग़ के पुर्जे खुल जायेंगे, और अब जिस तरह से 56 इंच की सरकार डरी है और लोग जिस निर्भीकता से जुड़ रहें हैं वह कोरोना का भय तो पैदा करेगा ही
एक डरपोक और कारपोरेट की गुलाम सरकार रोज़गार, सुख, शांति और अमन चैन देने के बजाय कोरोना का ख़ौफ़ हर बार दिखाकर यदि लोगों के मुद्दों से भागे तो उसे दब्बू और कायर ही कहना चाहिये - जरूर देखिये सुनिये और गुणिये
https://www.youtube.com/watch?v=bhws9QqCJFs
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कल से टाल रहा था कि कुछ ना बोलूं पर अभी Shashi Bhooshan की एक पोस्ट पर चंदन पांडे और शशि की बहस पर यह कमेंट किया
हमारे शोषण उर्फ़ सोशल सेक्टर में भी कई बद्री पड़े हैं - जिन्होंने लाल गमछा पहन कर अपने कैरियर की शुरुआत की थी और आज पूंजीवाद के प्रबल समर्थक हैं, शिवराज, रमणसिंह, मोदी या अम्बानी अडाणी के गुलाम और चाटुकार है - इनके पास हजारों एकड़ जमीन है, अरबों का माल दबाकर स्वयंभू कुलपति, कुलाधिपति और साहित्यकार बन गए, इन जैसे लोगों से क्या बात करने का जिनकी औकात सिर्फ ₹2 से बढ़कर कभी नहीं रही जिंदगी में, हम भूखे हैं नंगे हैं , लड़ते है, आम लोगों के साथ ही हम, आज भी बगैर छत के हैं, सड़क पर हैं और फ़िर भी हम हैं - ना हमें किसी पुरस्कार की लालसा है और न किसी स्वीकारोक्ति की, किसी तिवारी, जोशी या लाला की तरह बेगैरत नही हम, भाड़ में जाओ सालों - तुम क्या जानो विचारधारा क्या होती है , बहरहाल , वह कमेंट पढ़िये
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पोस्ट अच्छी है शशि, यही प्रश्न बद्री नारायण से भी पूछे जाए, गीतांजलि श्री से भी और उन तमाम 10 लोगों से भी जो ऑस्कर की अंतिम दौड़ तक पहुँचे और Embryo अंडे ने किसी और ही के साथ मिलकर बना लिया
पर इस तरह से किसी से प्रश्न पूछना तो अच्छी बात है, उसके पहले जवाब के बाद ट्रोल करना गलत है और फिर कोई तुम कोई पीएचडी की मौखिकी तो नही ले रहें चंदन की
मैं कोई जवाब देने वाला नही हूँ इसलिए टेंशन नही है, सवाल यह भी है कि तुम्हे इससे करना क्या है, कल दिनेश कुशवाह से भी बात की तुमने
सीधी सी बात है बद्री संघी है और उसको पुरस्कार मिल गया - खत्म, तभी न जेएनयू से लौट आया था, अब तो राजेश जोशियों जैसों को मोदी सम्मानित कर दें तो तमाम प्रलेस जलेस वाले हिमालय चले जायेंगे बस
रजनीगंधा याद ही होगा - सारे वही धूप सेंक रहे थे दिल्ली की सर्द सुबह में क्या बामण और क्या लाला
काहे स्वयम्भू मॉरल पुलिसिंग कर रहे जबकि सारे लोग ट्रक भरकर बधाईयाँ दे रहे, बुजुर्ग महिलाएँ तक अहो अहो कर लोट हो रही है और आलूओं का अपना ही स्वैग है, विवि के प्राध्यापक तक नत मस्तक है, बद्री में इन्हें सत्ता तक जाने का पुल नजर आ रहा, कुलपति बनवायेगा लागे है बनारस से दिल्ली तक के कॉलेज मास्टरों को
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"आप जा रहें क्या बन्नी - गुजरात में, बुलावा आया या नही" - आज फुर्सत मिली बड़े दिनों बाद तो लाईवा को पुचकारा मैंने
"अरे, मुझे तो नही मालूम नही, क्या है वहाँ, कोई कवि गोष्ठी है क्या" - लाईवा चहक उठा था मेरा फोन पाकर
"नही रे, कुछ खास नही, वार्षिक पशु मेला है, इन दिनों उन्नत नस्लें आती है वहाँ पशुओं की", जैसे तुम लोगों के लिट् फेस्ट होते है इन दिनों हर गली - मुहल्ले में, वैसे ही ये पशु मेले भी शुरू होते है और फिर फाग में जाकर पुष्कर के गधे मेले से समाप्त होते है, सोचा तुम्हे बुलावा आया हो" - यह कहकर फोन काट दिया मैंने
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