"सुना आपकी 14 पेज में कविताएं छपी है गोबराँचल के ताज़ा अंक में "- वे दिख गए बाज़ार में परवल खरीदते हुए तो मैंने सहज ही पूछ लिया "घोर कलयुग है भैया, भेजी तो कविताएँ ही थी - सम्पादक ने किसी लौंडे को दे दी तो उसने मेरी गद्य कविताओं का अपने ही साथ हुआ साक्षात्कार बनाया और आलूचना, सॉरी आलोचना के रूप में छाप दिया और ऊपर से हिंदी के बहिष्कृत लेखकों के वर्जन डालकर 14 पेज रंग डालें " कविराज रो रहें थे प्रलाप अभी पूरा नही हुआ फिर बोले " और तो और, ससुरा प्रकाशक बड़े वाला निकला - वो पत्रिका का प्रमोशन इन जड़ बुद्धिहीन प्राध्यापको और उस लौंडे के नाम एवं फोटुओं से पेल रहा है - हतो भाग्यम , हतो चिंता " कोरोना के मरीज का भी दर्द इतना ना होता होगा - उन्हें हाँफता हुआ छोड़ घर लौट आया मैं - मस्तराम का नया अंक लेकर बाज़ार से #दृष्ट_कवि *** मप्र में अपराधों की सँख्या भयानक बढ़ गई है, शिवराज सरकार का पूरा ध्यान सत्ता, मन्त्रिपदों की बंदर बाँट में और दो लोगों को साधने में लगा है मज़ेदार यह है कि जो गिरगिटी पुलिस कल तक कमलनाथ सरकार में शिवराज और भाजपा की विरो...
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