हम काले है तो क्या हुआ
◆◆◆
कई लोगों से मिला जिनके फोटो फेसबुक पर एक दम गौर वर्ण के थे और जब मिला तो काले - महिलाएं तो ठीक उसमें पुरूष भी शामिल थे और उम्रदराज अधेड़ पुरुष भी जब पूछा कि ऐसा क्यों तो "बोले ब्यूटी एप से हो जाता है"
कई बार आप मित्रों से मिलते है तो फोटो खींचते है, अक्सर लोग कहते है फेसबुक या इंस्टा पर मत डालना, आप ऐसे ही डाल देते हो - मतलब ? अरे यार फोटो डालने के पहले उस पर काम करना होता है थोड़ा - चाहे जो थोड़े ही डालते है
बहुत दुख होता है, अरे भाई इस सबकी जरूरत क्या है - जैसे है - वैसे रहें - ज्यादा बेहतर वही है , फिर हमारे यहां तो कृष्ण को भी काला कहा गया है रसखान और सूरदास ने कितना सुंदर लिखा है कृष्ण और उनकी माँ के साथ हुई रंग की बहस को - बाल सुलभ बहस को - फिर हम तो कृष्ण को भगवान मानते है ना
मेरा घर मे अभी भी नाम काळ्या यानि काला ही है क्योकि अपने घर मे सबसे काला हूँ पर अच्छा लगता है, हमारे एक मित्र का नाम कालूराम है पर उसे कालूराम कहो तो मिर्च लगती है - के आर कहो तो ख़ुश , मतलब क्या दिक्कत है यार - नाम मे क्या रखा है
फोटो जैसे हो वैसे लगाओ ना - क्या दिक्कत है -आपको कौनसा ब्यूटी कॉन्टेस्ट जीतना है या गोरे होने का नोबल पुरस्कार, काला एक रंग है जो त्वचा में एक पिगमेंट के कारण रिफ्लेक्ट होता है, बल्कि भारत जैसे देश मे काला रंग ही सबसे मुफ़ीद रंग है जीने को - जीवन मे अभी तक बहुत गोरे लोगों को काले काम करते देख रहा हूँ, अपने साथ ही में काम कर रहें गोरे लोगों को मन में घटियापन और ओछापन लिए हुए, बारहों मास - चौबीस घण्टों षड्यंत्र रचते हुए और दुनिया को नष्ट करते हुए - इन जैसे गोरे लोगों ने ही दुनिया को जीते जी नरक बना डाला है , इनके भी काले - गोरे धन्धों और चरित्र को देखा है नजदीक से और यह कह सकता हूँ कि हम काले कुटिल लोग ही ठीक है इन मक्कारों से, ब्रिटेन, अमेरिका का गोरापन क्या है इतिहास और वर्तमान इसका साक्षी है ही
क्या हमारे सारे दक्षिण भारतीय मर जाये, क्या अफ्रीकन मर जाये या वे सभी लोग मर जाये जो काले है - और क्या गोरे रंगभेदी लोग अपनी आँखों की पुतलियों को फोड़ दें, बाल जला दें अपने ... और फिर जलवायु, वातावरण, काम की परिस्थितियां या जेनेटिक विरासत का क्या
हमारे यहां तो गोरा करने का एक भरा पूरा उद्योग है जो इस घृणित मानसिकता पर ही जिंदा है - कभी लोगों को वास्तविक जीवन में जाकर एकदम से देख लीजिए बगैर मेकअप के तो आप औचक रह जाएंगे और सच मे दिल से घृणा करने लगेंगे और तब समझ आएगा कि ये सौंदर्य प्रसाधन में अरबों रुपये क्यों लगे हुए है और FMCG का यह व्यवसाय कितना प्रभावी है बाज़ार में
मुझे तो फोटो को गोरा करना आता भी नही ना कोई एप है मोबाइल में
***
हू किल्ड जेसिका लाल V/S हू रिलिज्ड श्री मनु शर्मा जी
◆◆◆
कल श्री मनु शर्मा जी को 19 अन्य अच्छे और भले कैदियों के साथ रिहा कर दिया गया
कारण था - अच्छा आचरण - मतलब यह कि वह लॉ ग्रेज्युएट था, उसने 2006 से तिहाड़ में कई कैदियों को पढ़ाया लिखाया और दीक्षित किया, किसी से झगड़ा नही किया उन्होंने - कितने सज्जन है बोलो
कारण कि जेसिका लाल की बहन ने उसे माफ़ कर दिया था कि वह 14 साल की सजा भुगत चुका है
कारण कि उसका नाम समीक्षा समिति ने 2006 से छठवीं बार अनुशंसित किया था, आखिर छठवीं बार मेहनत रंग लाई और वह 1 जून को छूटा जेल से
14 साल बहुत होते है बस निर्भया के आरोपी थोड़े ब्रूटल हो गए थे , ऐसे ही मजे लेते - लोहे के रॉड की जरूरत नही थी - तंदूर का इस्तेमाल करना था सालों को - उसे भूनते तो मजा आता, वरना वे भी सब भी भले आचरण के कारण छूट जाते - भला बताओ 8 साल तो निकल ही गए थे, हां एक बात -साले मजदूर टाईप थे - हरामी कही के,लॉ कर लेते तो सुविधा हो जाती
जेल में भी भले काम होते है और पढ़ना पढ़ाना बहुत जरूरी है भले ही लॉक डाउन में शिक्षा गलीज़ स्तर पर रहें और प्राथमिकता नही बन पाएं , ना 73 वर्षों में बन पाई है
श्री मनु शर्मा जी घर है अब और सारे टैग हट गए है -पार्षद, विधायक का टिकिट मिलेगा कही से - है कोई उदार मना
"क्षमा वीरस्य भूषणम" - याद आती है अपनी लॉ की पाठ्य पुस्तकें - जहाँ लिखा है करोड़ों विचाराधीन कैदी बगैर चार्ज शीट, ट्रायल - यहाँ तक कि बगैर एफआईआर के जेलों में बरसों से सड़ सड़कर मर गए है या अपनी बारी पर मौत का इंतज़ार कर रहे है
काश कि कोई अदालत, कोई समीक्षा समिति इनके एक भी बुरे काम ही बता देती तो इन्हें मरते समय प्रायश्चित करने में आसानी होती कि इसलिए मर रहा हूँ मैं
जेसिका लाल - अमर रहो, बेटियों से जग रोशन है बस अब इंतज़ार है मुझे निर्भया की माँ के वर्जन का कि वो क्या कह रही है इस पूरी भलाई के संसार और प्रक्रिया पर
मीडिया साला फिर निकम्मा साबित हुआ - श्री मनु शर्मा जी कल ही घर पहुंच गए थे आज हमें मालूम पड़ रहा है और जेल की भलाई के सद्कार्यों की कोई बाइट भी नही ना ही श्री मनु शर्मा जी से एक्सक्लूसिव बातचीत सुना पाया अभी तक - उफ़्फ़
***
हिंदी में दो नए शब्द जोड़ने के लिए मुझे नोबल दिया जाए
◆ प्रियेस्ट - यह कवि अपनी प्रिय कवयित्री के लिए प्रयोग करते है भले ही वो कूड़ा कचरा लिखें और अपनी प्रियेस्ट कवयित्री की हर बात की तारीफ के लिए ही मानो इनका जन्म हुआ है
◆ तुमनली - अपने दिमाग़ का जितना भी कूड़ा कचरा हो - इस नली से बाहर उंडेल दो संसार के अबोध प्राणियों के लिए - जिसे यूट्यूब कहते है, इन दिनों सब लोग यही कर रहे हैं - कुछ लोग जब सफल नही हुए बेचने में तो बैठ गए घर द्वारे - अब नया एक्सप्लोर कर रहें हैं
कौन अनुशंसा कर रहा है नोबल या ज्ञानपीठ के लिए
***
मोदी सरकार ने मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों और गुरुद्वारों को दुकानों में तब्दील कर देने में कोई कोताही नही बरती , कांग्रेस ने धर्म के नाम पर दंगे फसाद करवाये यह विदित ही है और इस हिन्दू वादी सरकार ने तो एकदम सब पारदर्शी कर धन्धे को ओपन ही कर दिया
दुकानों के साथ ही बंद किया था, दुकानों के साथ ही खोल दिया है, जैसी तैयारी व्यापारी कर रहें खोलने के पहले - वैसे ही मुल्ला और पंडित कर रहें है
ग्राहकों का इंतज़ार दोनों को है
अब भी नही समझे !
***
WHAT'S MATURITY
Excellent Definitions provided by Buddhist Lamas
◆◆◆
● Maturity is: when you stop trying to change others; instead, focus on changing yourself.
● Maturity is: when you accept people as they are.
● Maturity is: when you understand everyone is right in their own perspective.
● Maturity is: when you learn to "let go"
● Maturity is: when you are able to drop "expectations" from a relationship and give for the sake of giving.
● Maturity is: when you understand whatever you do, you do for your own peace.
● Maturity is: when you stop proving to the world, how intelligent you are
● Maturity is: when you don't seek approval from others.
● Maturity is: when you stop comparing with others.
● Maturity is: when you are at peace with yourself.
● Maturity is: when you are able to differentiate between "need" and "want" and are able to let go of your wants & last but most meaningful
● You gain Maturity when you stop attaching "happiness" to material things
I wish some of us could really understand including me, things would have been better - Let's try out
***
" मेरे सिर्फ तीन बार लाईब आने से भोत लोगों को दिक्कत हो री हेगी और जो बड़े बूढ़े रोज रोज जां वां आ रिये उनका कुछ नई - बस ,भगवान करें मेरे कूँ कोरोना हो जाये और मैं खत्म हो जाऊं, अब कबि भी कवुता नई लिखूँगा "
ये सुसाइड नोट लिखकर कवि फंदा टाईट कर रहे थे कि उनकी प्रियेस्ट कवयित्री का फोन आ गया- बोली " आज 1 जून है बाजार खुल गया है, चलो मैचिंग के पोलके और पेटीकोट का कपड़ा ले आये "
कविराज ने फंदा फेंका और नाड़ा बांधते बोलें "हवो तैयार हो जाओ आ रियाँ हूँ"
***
अब्बी अब्बी परम पूज्य अमित जी भाई शाह ने अमेरिकन पुलिस वाले डेरिक चौविन को फोन करके बोला
" भाई तू तो इधर आ जा, पत्नी ने भी छोड़ ही दिया है , उम्र में 70 के नीचे ही होंगे, वंदे भारत अभियान के फ्लाईट से आ जा, मप्र में विधायक का टिकिट देता हूँ और छह महीनों बाद राज्यसभा में सीधे इंट्री - भोत जरूरत है भाई - आ जा , हमारे इंदौर वाले भजन गायक अकेले पड़ गए है थक भी गए है - तेरी इंटर्नशिप हो जायेगी "
[ अस्थाई पोस्ट ]
***
अमेरिका में रंगभेद के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे है यह सिर्फ रंगभेद की बात ही नही वहाँ के लोगों की ट्रम्प के ख़िलाफ़ बगावत है जो वे पिछले चार वर्षों से इसकी मूर्खता झेल रहे और हर स्तर पर नागरिक गर्त में चले गये - you can say it Mutiny
हमारे यहाँ उम्मीद मत करिए, दलित आदिवासी मरते रहेंगे - ऊना हो या विदर्भ, छग हो या उड़ीसा - हम लोग कुछ नही बोलेंगे क्योकि हम सबको सदियों से यह सब देखने समझने की आदत है - अपने प्रधान के लोग जब मन्दिर बनाकर पूजा करने लगें तो क्या, आप जाति और बाकी सब मुद्दे तो भूल ही जाइए - भूखे है तो रोटी भी नही मांग सकते बगावत कभी नही होगी यहाँ और भक्त दोनो ओर है, दलित आंदोलन भी किनके हाथों में है यह समझना होगा, 73 साल से तो हिन्दू मुस्लिम में उलझा रखा है क्या खाक बगावत करेंगे - एक जेपी आंदोलन हुआ था निकला कौन उसमें से लालू, पासवान जैसे नगीने, आपातकाल के बाद क्या हुआ - दक्षिणपंथ ही संगठित हुआ ना - हम लोग गणेश जी को दूध पिलाने लायक है बस - बाकी तो किसी लायक नही
इस बीच मायावती, कन्हैया से लेकर चंद्रशेखर रावण, जिग्नेश सब गायब है - इसलिए पूरी ताकत से कह रहा कि इन दो लोगों के निर्णयों के ख़िलाफ़ कोई नही बोलेगा - जब हाई कोर्ट बेशर्मी से कहें कि अपराधी PMCareFund में मोटा हर्जाना भरें तो कुछ और बचता है क्या हमारे लिए
मालवा में कहते है निसडल्ले बन गए है
***
हिसाब करने से पहले उन जख्मों को तसल्ली से याद करना जरुरी है जिन्होंने नासूर दिए थे गहरे और रिसते हुए, उस सबको संजीदगी से याद किये बिना हिसाब करने का कोई अर्थ नहीं है जीवन में
चुन चुनकर हिसाब लो उन सबसे जो हाथों में सिर्फ नमक लिए खड़े थे, जिन्होंने रिश्तो, दोस्ती की आड़ में भावनाओं के पुल बनाकर तुम्हे मथ डाला इतना कि निकले जहर को तुम्हे ही पीना पडा और जाहिर है अमृत पान वो डकार कर चले गए और आज उसी बुनियाद पर तुम्हारी राह का काँटा बनाकर खड़े है, ले लो पूरा हिसाब ले लो, बस मत भूलो उन जख्मों को जो नासूर बनकर अभी भी सड-गल रहे है जगह-जगह……
प्यार तभी हो सकता है जब आप गहरी घृणा को अपनाने के लिए तैयार हो……
[ रिपोस्ट ]
***
कल खेल में हम हो ना हो
◆◆◆
कोरोना ने देश ही नही दुनिया के परिदृश्य से मानवता को नष्ट किया है, इस समय हर जगह नेतृत्व की कमी और मौजूदा नेतृत्व का निरंकुश हो जाना बेहद खतरनाक है, एक पूरी पंक्ति विश्व नेताओं की लगभग अंधी हो गई है जिनमे ना दूरदृष्टि है और मिशन की भावना, "अर्थ" - प्रमुख और सर्वोच्च प्राथमिकता की भावना से ओत - प्रोत ये अग्रिम पंक्ति के ये लोग बेहद कपटी, धूर्त, चालाक और मानवता के दुश्मन साबित हुए है
इन्होंने ना वैश्विक बंधुत्व के दायित्व निभाये और ना ही इस हेतु काम करने वाली संस्थाओं को आगे बढ़ने दिया - एमनेस्टी का दफ्तर आज तक भारत मे नही है - यह मात्र एक उदाहरण है , विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्या हालत हो गई है - यह सभी देख रहें है
ट्रम्प, जीनपिंग, शिंजो आबे, किंग जॉन, मोदी और शाह का तोड़ कही नजर नही आ रहा - ये लोग आपदा में अवसर खोजकर सामरिक ठिकानों पर ध्यान दे रहें हैं; जब लोगों की मूल जरूरतों पर बात होनी चाहिये - तब ये लोग सीमाएँ बढ़ाने में और एक दूसरे पर आक्रमण करने के नाटक रचाकर दुनिया के गरीब - मजलूमों का ध्यान भूख से हटाकर थोथे देशप्रेम और राष्ट्रवाद पर केंद्रित करना चाहते है
दूसरा, इस समय सबकी चुप्पी खतरनाक है, तमाम वामपंथी और कांग्रेस से लेकर बाकी विपक्ष नाकाम है - बल्कि पिछले 6 वर्षों में इनकी चुप्पी से ही हालात ये बनें है और जो बाकी थोड़े बहुत सूझबूझ वाले लेखक, कवि या बुद्धिजीवी थे - वे बेशर्मों की तरह पुरस्कार बटोरने से लेकर सरकारों के अघोषित एजेंडे पर काम करते रहें हैं, इन लाचार बूढ़ों और लम्पट लोगों ने युवाओं को इस्तेमाल किया बुरी तरह से और अपने माउथ पीस बनाये और ये कम्फर्ट जोन में रहकर गुलछर्रे उड़ाते रहें; अब दुविधा यह है कि वहाँ तो श्वेत - अश्वेत स्पष्ट है - यहाँ भी दलित - सवर्ण भी स्पष्ट है पर दक्षिण में योजनाबद्ध तरीकों से सायास विलोपित हो गए वामपंथी और कांग्रेसी " हिंदुओं" को कैसे अलग करें
और यह अभी और बढ़ेगा आने वाले दो तीन माह में ही - प्रवासी मजदूर जो पलायन की पीड़ा झेलकर आये है, जब बड़े शहरों से लौटे लोग गांवों की सामंतवादी प्रवृत्तियों पर सवाल उठाएंगे और लड़ेंगे, बड़े शहरों के एक्सपोजर लिए लोग जब अब अपने सरपंच से योजनाओं के लाभ से लेकर व्यवस्थाओं के लिए बातें करेंगे , जमीन के असमान वितरण की बात करेंगे या अपना हक़ मांगेंगे तो जाहिर है गांवों - कस्बों में संघर्ष होगा और हिन्दू - मुस्लिम, दलित - सवर्ण और महिला - पुरुष यानी जेंडर आधारित हिंसा, अपराध बढ़ेंगे; चोरी, लूट, डकैती, बलात्कार आदि का ग्राफ निश्चित ही बढ़ेगा और यह देखने के लिए लम्बा इंतज़ार नही करना पड़ेगा
मप्र जैसे राज्य में अभी 26 पदों के लिए विधान सभा, फिर नगरीय निकायों और अंत में सुशासन की इकाई ग्राम पंचायतों में भी चुनाव होंगे - जिसमे ये बड़े शहरों से लौटे हुए प्रवासी लोग बड़ा रोल अदा करेंगे और सारी जद्दोजहद अब शुरू होगी
देखिये कैसे एक अदृश्य विषाणु सिर्फ मौत का तांडव नही कर रहा - बल्कि पूरे सामाजिक , राजनैतिक और आर्थिक ताने बाने को बदल रहा है और दुर्भाग्य से हमारे सारे लीडरान और बुद्धिजीवी इस सब पर विचार तो कर रहें हैं पर लाचार है
यदि आप कुछ कहेंगे तो उजबको की तरह से पूछेंगे कि मोदी का विकल्प क्या पप्पू है , वे ये भूल जाते है कि Who after Nehru, Indira, Rajiv and Atalji वाली प्रश्न पूछने की एक मूर्खता भरी परम्परा यहाँ है पर जनता ने हमेशा सही और योग्य विकल्प चुना है - हर तरह के तानाशाह और कुपढ़ के खिलाफ
बहरहाल, अनलॉक 1.0 का मजा लीजिये और मदारी के तमाशे का इंतज़ार करिये
***
Comments