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Posts from 4 to 23 June 2020 Drisht kavi, khari khari

पूरा मुहल्ला रात को दो बजे इकठ्ठा हो गया जब कविराज की पत्नी की भयानक कराहने, चिल्लाने की और दहाड़े मारकर रोने की आवाज सुनी सबने तो
वर्मा जी ने धीरे से हिम्मत की भीड़ में - कविराज की श्रीमती से पूछने कि - " भाभीजी हुआ क्या , कोई चोर आया क्या "
जमा भीड़ को अपने पक्ष में देखकर भाभीजी पहले तो दहाड़े मारकर फिर से पाँच मिनिट रोई, फिर चिल्लाकर बोली डेढ़ बजे से ये पूछ रहें है -

" आवाज आ रही है, आवाज आ रही है, पता नही क्या हो गया, बार - बार चश्मा ठीक करते हैं, बाल सँवारते है ...आठ दिन हो गए अब "
भीड़ खिसकने लगी थी और कविराज बड़बड़ाये जा रहें थे - बरामदे में खड़े, "आवाज़ आ रही है ........."
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यादों की पोटली को सहेजकर रखिये - एक मुस्कान, एक संवाद या एक मुलाकात की पोटली जीवन को जीना सीखा सकती है - यह सूख गई या भीग गई तो सब बह जाएगा
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ग्रहण का शीदा दे दो
सफाई वाली जोर जोर से आवाज लगा रही है - झाँककर देखा तो उसके दोनो बच्चे भी थे साथ मे , दोनो के हाथ मे दो - दो बड़ी बोरियां भरी हुई , कचरे की गाड़ी पर आज अलग बड़ी बोरी थी भरी भरी सी
मैंने कहा - इन बच्चों को क्यो घसीट रही हो, ये पढ़ रहे है तो पढ़ने दो, ग्रहण तो अच्छा होता है और तुम खुद बारहवीं पास हो फिर ये क्यों
बोली - भैया, ग्रहण आदि कुछ नही होता, मुझे भी पता है और बच्चों को भी, पर क्या है ना - हमारी जाति में आज के दिन यानी ग्रहण के दूसरे दिन "ग्रहण का अनाज" मांगने की परंपरा है और इस बहाने एकाध - दो माह का राशन मिल जाता है, नगदी मिल जाते है ₹ 600-700 , बैठे बैठे का फायदा है
बच्चे देख और सुन रहें थे हमारा संवाद, मैंने बड़े वाले से पूछा - " ग्यारहवीं में क्या विषय है तेरा" तो बोला - साइंस मैथ्स
ब्राह्मणों के फैलाये इस जाल और अंधविश्वास में कब तक जीते रहेंगे कि ग्रहण अशुभ होता है और सब फेंक देना चाहिये , कुछ ब्राह्मण खुद भी शीदा वसूलते है - सब बेहद दुखी करने वाला है - घोर अवैज्ञानिक
सूर्य ग्रहण कल ही नही सदियों से लगा है हम सब पर - जातिगत फायदे कोई छोड़ना नही चाहता, कोई भी हो - बस गाली एक वर्ग को देंगे सब, शिक्षित कर दो दीक्षित कर दो, पर फायदे नुकसान के लिए सबसे बड़ी आड़ जाति है जो जाती नही भले ही दुनिया बदल जाये
[ बच्चों को भी जानते बुझते हुए उसी कीचड़ में धकेलेंगे हम तो जबकि निजी विद्यालयों में पढ़ रहे हैं - कृपया ज्ञान ना दें - हक़ीक़तें बहुत कड़वी है और कोई समाज भी मुक्त नही होना चाहता - परम्परा, जाति और संस्कृति से तो - क्या उम्मीद करें - सबको सब मालूम है पर जहां फायदा है, जहां किसी को गाली देना है, जहां नीचे रहकर लाभ लेना हो किसी को भी सब करने को तैयार है - बस बोलो मत किसी को ]
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सुबह नींद खुली तो कविराज ख़ुश हुए बोले - चलो बच गया दुनिया खत्म नही हुई , अब 11000 कविताएँ लिखने का जो अनुष्ठान बाकी था - वो शीघ्र ही पूरा कर लूँगा, विश्व पुस्तक मेले तक 11 नई किताबें और उन पर 44 समीक्षाएं आ ही जायेंगी
कवि भगवान को धन्यवाद देते हुए अनलॉक 1 में रजिस्टर खरीदने निकल गया
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अफसोस कि कुछ लोगों की लेखनी पर संदेह नही अब पक्का विश्वास हो गया कि ये वो नही, उनकी वाल का इस्तेमाल कर कोई और लिख रहा है
चलो जाले साफ हुए - छि
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हिंदी में कवि होने की न्यूनतम योग्यता - बाकी सब स्क्रूटनिंग के बाद -
1 - PRT, TGT or PGT, संविदा - अतिथि या माड़साब जो फर्जी ढंग से प्रथम श्रेणी में हिंदी में एमए हो या शोध भी कर लिया पर महाविद्यालय में प्राध्यापक ना बन पाएँ हो
2 - जो अपनी खुद की खराब और रिजेक्टेड किताबों को बरसो बरस फेसबुक पर चैंपते रहें हर पोस्ट के साथ
3 - इनबॉक्स में घुस घुसकर अमेजन या फ्लिपकार्ट या प्रकाशक के लिंक पेलते रहें
4 - निशुल्क लाईव आने को सदैव तत्पर हो
5 - कम से कम 5 कवयित्रियों को सम्पूर्ण रूप से तैयार किया हो ( कृपया सभी की सुधारी हुई एवं स्वयं उसके नाम लिखी प्रकाशित कविताओं की कटिंग, किताब और दिलवाए गए पुरस्कार की सत्यापित प्रति संलग्न करें - यदि इन 5 पर किसी और कवि ने दावा किया तो आपका आवेदन रद्द किया जाएगा )
और अंत में प्रार्थना
6 - जिनके लिए लिखने और पुरस्कार बटोरने की कोई उम्र ना हो और भले पुरस्कार में घटिया ट्राफी या ₹ 11/- नगद हो और अपने किराए से देश मे कही भी कभी जाने को तैयार हो
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मुश्किल लेकिन जरूरी सवाल हिंदी जगत से
कवि के रिटायर्ड होने और आखिरी पुरस्कार लेने की उम्र क्या हो, यह भी जरूरी रुप से पूछा जाने वाला सवाल है हर उस व्यक्ति से जो लेखक होने का दावा करता है और हर दम इसी के बल पर अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े पर सवार होता है - सबको बेवकूफ समझकर , फर्जी प्रतिबद्धताएं ओढ़कर घोड़े का भी चना चबैना खा जाता है
चूके जाने पर क्यों कवि डोलता रहता है यहाँ वहाँ - अपने पुराने लिखें को कैश कराता हुआ और अपने छर्रों पर दबाव बनाता है कि कुछ करवा दो, एकाध पुरस्कार ही दिलवा दो, नही तो रचना पाठ ही रखवा दो
प्रगतिशील और जनवादी या जन संस्कृति मंच टाईप लेखक संघों में दलित लोग कब काबिज होंगे अभी तो सब जगह बामणों, बणियों का कब्जा है
इसका जवाब मिलेगा क्या - नही, फिर भी पूछ रहा हूँ - अपने लेखक होने के मुगालते भी नही कुल मिलाकर फेसबुकिया है अपुन - अब इसलिए पूछ रहा हूँ - कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, यायावरी से लेकर सब कुछ लिख देने वाले अख्खड़ और अड़ियल, फेसबुक ना होता तो पता नही कहाँ पड़े होते बापडे, इतनी निर्लज्जता किसी महान साहित्यकार में नही थी - सनसनी पैदा कर रहें हैं पत्रिका बेचने के लिए या अपनी किताब की फोटो चैंपते हुए हाथ नही दुख गए इनके - उफ़्फ़
दर्जनों लोग पढ़ेंगे और कन्नी काट लेंगे और हो सकता है मुझे नकारात्मक और उद्दंड कहें - "की फर्क पड़ता है पाजी"- पर जो जवाब दे - वो हिम्मती और सच्चा लोकतांत्रिक बाकी तो सबका उधड़ा हुआ नंगा रूप सामने आ गया है - अब किसी के लिए ईमानदारी से सम्मान नही बचा दिल में, जो लोग निज जीवन मे ईमानदार नही, भ्रष्ट चापलूस और लिजलिजे है उनसे सुघड़ साहित्य की क्या अपेक्षा करना - सारे मुगालते दूर हो गए है मेरे कम से कम - विशुद्ध धँधा है धँधा
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"नमस्कार , सुबह सुबह आपका फोन आ गया अच्छा लगा, अभी कुल्ला ही कर रहा था"- लुंगी की गठान बांधते हुए कविराज का मन मुदित हुआ
"जी, आपको क्या लगता है रामचन्द्र शुक्ल से निराला बड़े कवि है - बस मन मे आया तो पूछ रही थी" - कवयित्री बोली
"असल मे देखिये शुक्ल जी और निराला की परंपरा में हिंदी साहित्य का अनुशीलन ....
कविराज बहुत देर तक बोलते रहें - करीब आधे घँटे तक निर्बाध ढंग से , सब गिना डाला उन्होंने, उधर कवयित्री भी लोकल ही थी, अपनी गली के नुख्खे वाले जिजामाता कान्वेंट में हिंदी की टीजीटी थी 3750/- प्रतिमाह पर, लिहाजा हाँ हूँ करती रही
अचानक बोली - "अच्छा जी, बहुत शुक्रिया टाईम पास हो गया - हुआ क्या बिजली का बिल 22000 आ गया था इस बार, गीता के पापा दफ्तर चले गए, सो मैं बिजली आफिस आ गई सुबह से, यहाँ लम्बी लाईन थी तो सोचा आपसे बात कर लूँ साहित्य पर , अब काम हो गया है, बाय बाय" फट से फोन कट गया
कविराज सोच रहें थे - ये साला रामचन्द्र शुक्ल ने कविता लिखी क्या और वो भी निराला के सन्दर्भ में, मैं क्या - क्या बोल गया बै आधे घँटे तक - भक्क़ साली .....
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मैं - कैसे है कविराज
कविराज - ठीक हूँ और आप
मैं- ठीक ही हूँ, दो दिनों से उमस बहुत है और काम नही कर पा रहा
कविराज - ओह, होल्ड करिये - आपको उमस पर लिखी 21 कविताओं की छोटी सी श्रृंखला सुनाता हूँ, 39 मिनिट में पूरी सुन पायेंगे - बस एक मिनिट डायरी निकाल लूँ
मैं - फोन कट और हवाई मोड़ पर
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1000 शब्दों की लिमिट हो जाये और अटैच करने की सुविधा तो फेसबुक और शानदार हो जाएगा - जिसको झेलना है वो अटैचमेन्ट खोलकर , घोलकर पी लें - किसने मना किया घोलचू क़ा घोल पीने से
अभी तो लोग 15000 - 20000 शब्द पेल देते है, 53 से लेकर 69 तक कविताएँ चैंप देते है और कुंठित, हकाले गए, खब्ती, खस्सी और विचारधारा के मारे अठियाये - सठियाये कवियों का पूछिये मत - जमकर पेलेंगे और फिर महिलाओं और "अंजू मंजू सीता गीता अनिता सुनीता" टाईप कवयित्रियों की सहानुभूति बटोरने को फ्रोजन शोल्डर के गुणगान वाली पोस्ट लिखेंगे
कहानीकार भी पूरी कहानी लिख देते है जब किसी भैंजी की प्रतिक्रिया या फर्जी स्तुति नही मिलती यहाँ चैंपने को तो , क्या करें इनका
नींद में बड़बड़ा रहा था - गुस्से में भी था, तकिया फाड़ दिया - हिंदी का दारुण पीजीटी, समृद्ध लेखक सह आलोचक रो रहा था - तेजी से - बीबी ने एक जमके रसीद किया तब चुप हुआ - कसम महाँकाल की
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रात के ढाई बजे है, अभी नागिन को देखा, फिर याद आया - यह तो बरसों से साथ थी - ध्यान अभी गया
शुक्र है कि पहचान लिया ...
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मजदूर, किसान, बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, कैश ट्रांसफर, पीएम केयर फंड, बीस लाख करोड़, गर्भवती, नवजात शिशु, कुपोषण, पीपीई किट, टेस्टिंग, कोरोना के बढ़ते मरीज और भयावह मौतें, दवाइयों से लेकर डाक्टर, अस्पतालों की कमी , महँगाई आदि जैसे मुद्दों को "प्रायोजित चीनी आक्रमण से रिप्लेस" करने की बधाई नही लोगे महामात्य
यहाँ तक कि सुशांत की आत्महत्या को भी निपटवाने का खेल कर दिया - तुम्हारे अलावा किसी और के बारे में बात हो भी तो क्यों , किसी का नाम जनता में प्रचारित हो यह सच सह नही सकते , बोलो अंधेर नगरी के चौपट राजा
भारत ही नही विश्व मे गिरती साख को बचाने का उपाय खोजा, पिद्दी सा नेपाल मार गया हमे और अपनी मिट्टी और जमीन को छाती पर लगाये दिखा रहा दुनिया को, चीन आ गया घर मे, डंके बज रहे है 56 इंच के पर सहानुभूति बटोरने में कोई उस्ताद नही तुमसा, तुम दोनो का कोई तोड़ नही
और इसमें 138 करोड़ में से सिर्फ 20 ही कुर्बान हुए ना - चलता है, कोई दुख नही - कहाँ भुगतोगे - कोई तो हद होगी
कितने लद्दड़ और धूर्त हो यार, लभ यू हमेशा रहेगा तुम पर
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हमारे हिंदी के प्रबुद्ध भी लेखक भी चीन को गरियाने के बजाय कम्युनिस्टों को गरिया रहें है ये तो समझ है इन चड्ढी धारियों की , इन बेवकूफों को नही पता कि मोदी ने 2014 से जितना बढ़ावा चीन को दिया उतना किसी ने नही
दिमाग है नही, अक्ल है नही , कोरोना काल मे तो औकात दिखी ही थी पर कल से देख रहा हूँ तथाकथित फर्जी और कॉपी पेस्ट मारकर सालभर में 24 किताबों का कचरा छापने वाले कम्युनिस्टों को दोषी ठहरा रहें है
कसम से चड्ढीधारी लेखक विशुद्ध अक्ल के दुश्मन है और इनके सिपहसालार तो खूब झूले झूलें है , खूब गंगा आरती करवाई , खूब ठेके दिए, खूब रेपिड टेस्टिंग किट और पीपीई खरीदी और आज वही चीनी चपटे घर मे घुसकर लाठी बल्लम से मार गये हम लोगों को
एक असफल व्यक्ति है जिसे बेस्ट होने के मुगालते है और इसके इस कार्यकाल में देश त्रस्त है - जिससे एक मोर्चा नही सम्हल रहा - आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक या सामरिक - बस घँटे, थाली और झाँझ बजवा लो इसलिए देश के लोगों सफदर हाशमी का गीत याद करो - "पढ़ना लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों"
इनके सेनापति नागपुर में है या कहां है - आज बोले क्या कुछ , चार माह से वो भी गायब थे - कही दिखें नही बौद्धिक भी नही दिया
फर्जी डिग्री वालों को देश सौंपने से यही होता है - पर लगाओ नारा
आएगा तो ...
घर घर ...

और जवाब सुन लो - कोरोना , मोदी नही - समझे
कसम से कह रहा कि ये दुनिया में नेहरू और नेरुदा से ज्यादा यश कमाएगा और इसकी कीर्ति पताकाएँ तो ऐसी फहरेंगी ना भगवान कसम पूछो ही मत
एक बार कड़ी निंदा सुन लूँ तो झोला उठाकर चल दूँ
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एक बड़ा महत्वपूर्ण कार्य संपन्न होने जा रहा है दो दिनों में जिस पर मै तीन माह से लगा हुआ था. एक संस्था के 23 वर्षों का लेखा जोखा लिखना अपनी तरफ से सम्पन्न हुआ लगभग , अब आगे देखते है क्या होता है - यह बहुत मुश्किल उस सन्दर्भ में था कि यह उन दो युवा लोगो की तपस्या का जीवंत दस्तावेज है जिन्होंने ऐसे इलाके में 1997 में जाकर विकास की जोत जलाई थी, अलख जगाया - जहां कुछ नही था और तब से वे लड़ते भिड़ते हुए अपने मिशन और उद्देश्य में कामयाब हुए और आज वहाँ बदलाव दिखता है
इस बीच और दीगर सारे काम छूटे पर अभी आधा जून पड़ा है - कबीर कहते है ना
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय
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उसी के अंत में लिखे जा रहें हिस्से का एक अंश
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वो कहती है - सन्तुष्टि भाव चेहरे पर है - "कभी किसी को स्पष्टीकरण नहीं देना पड़ा और ना ही किसी के साथ प्रतिस्पर्धा में लगे रहे. हमने जो किया, हमने जो जिया वह लोगों के लिए था, हम अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते थे, सही गलत क्या है - वही करते थे और हर उतार-चढ़ाव में सक्षम रहे और जीते चले गए, सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि लगन, मेहनत, ईमानदारी, निस्वार्थ भाव, सेवा, दया, क्षमा, सरलता, सहजता, स्वधर्म, श्रद्धा, विश्वास और भक्ति भाव – ये हमारे लिए महज शब्द नहीं - बल्कि ग्रंथों का दिया हुआ वह तत्वज्ञान है जिसे हमने जीवन की हर सांस में जिया है और हर पल में लोगों को दिया है और आज हमारे लिए ये सारे शब्द जीवन की महती आवश्यकता बन गए हैं, हमारे लिए यही शक्ति है, यही स्रोत है - खुद को खोकर खुद को पाने का उत्सव है जीवन और अब हमारे रक्षा का दायित्व ईश्वर ने लिया है तो हम चाहते हैं कि अपने शेष जीवन में हम ईश्वर को याद करते हुए बचे हुए पलों में भी लोगों की सेवा और समर्पण में जीवन लगा दें"

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सबके मदद वाले, तनाव में फोन करने के, चाय पीने के मैसेज पढ़े और फिर आज दिन भर कवि ने जिले, प्रदेश और देश भर के 13 कवियों को और 39 कवयित्रियों को फोन लगाया - किसी ने उठाया ही नही - टूटूटूटू की आवाज आती रही
वो सुशांत की आत्महत्या के बाद तनाव में थे -छन्द और अतुकांत को बैलेंस करते हुए 16 कविताएँ पक्ष - विपक्ष में लिख डाली थी और सबके मेसेज पढ़े थे कि तनाव में हो तो कॉल कर लेना
"आज कॉल लगाये, पर साला हरामी लोग - सब ब्लॉक कर दिए है मेरे को - जिस दिन आत्महत्या करूँगा ना, इन सबके नाम सुसाइड नोट में लिखकर मरूँगा देख लेना - छोडूंगा नही किसी को भी और तो और वो जो रोज भाट्सअप पे सुबे पांच बजे ही फूल पत्ती भेज देती है उसने भी नी उठाया , 78 दिन में दो क्विंटल सब्जी खा गई मेरी भैंस कही की .... "
भुनभुनाहट जारी थी कवि की
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थोड़े दिन बाद हमारी लिस्ट में दोस्त नही ग्रुप ही होंगे सिर्फ ग्रुप और मरने पर शोक पत्र में लिखा जाएगा - "हमारे लोकप्रिय संदीप नाईक जो कि 1390042 फेसबुक ग्रुप के सदस्य और 21, 489 ग्रुप के एडमिन थे, का निधन पेज लाइक करते हुए कल रात हो गया जिनका लाईव उठावना ....."
इतनी बाढ़ आई हुई है कि समझ नही आता
● मनोविज्ञान वाले में जुड़ू या यौन हिंसा वाली बहनों के साथ
● नाभिकीय विखंडन में जुड़ू या जैविक टमाटरों के साथ
● ढोल - ताशे वाले के साथ जुड़ू या गणगौर की मेहंदी वाले ग्रुप के साथ
● दुनिया के नाटे लोगों की नैसर्गिक दिक्कतें या ट्रम्प के दस साला भविष्य के अनुशीलन पर शोध दृष्टि के साथ
ऊपर से सबके नियम कायदे और संविधान इतने खतरनाक और भयावह है कि लगता है आइंस्टीन भी अपने दिमाग़ का 100 % इस्तेमाल कर लेता तो पल्ले नही पड़ता और एक दिन एकाउंट डिलीट कर हिमालय निकल जाता
भगवान, अल्लाह के नाम पर बख़्श दो बाबा, पेज लाइक करने से लेकर ग्रुप में जोड़ने से बख़्श दो - और भी गम है जमाने मे मुहब्बत के सिवाय - वैसे ही कुछ अपने मुंह फुलाकर पानी पूरी बन गए है इधर
आखिर निर्णय ले रहा
हटा, सावन की घटा ............
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● जब कोई कह रहा है कृपया समझाईये - अर्थात उसे मालूम है सब
● जब कोई कह रहा है मैं समझना चाहता हूँ - अर्थात वो आपको निहायत ही बेवकूफ मान चुका है
● जब कोई कहें यह सीखना चाहिए या सीखने की इच्छा है - अर्थात वह आपको लपेटे में ले रहा हैं
● जब कोई कहें अब सब समझ आ गया - अर्थात वह आपको अब झेल नही सकता
● जब कोई कहें इस पर पढ़ना चाहता हूँ, लिखना चाहता हूँ , व्यापक दृष्टि बनाना चाहता हूँ - अर्थात वह आपको सरेआम काट रहा है बोले तो भरे बाजार नंगा कर रहा है
● जब कोई कहे कि इस पर बहुत काम करने की अभी जरूरत है - अर्थात आप तो रहने ही दो, आपके बाप से नही होगा
और अंत में
● जब कोई कहें कि जल्दी ही इस पर भी बात करते है या कुछ काम करते है - अर्थात अब डिस्टर्ब मत करना
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आत्महत्या इलाज नही पर बहुत हिम्मत चाहिये करने के लिए
जीवन के मंच पर हम सब अभिनेता है और सबके जीवन मे ऐसे क्षण आते है जब हम हिम्मत ही नही जीवन भी हार जाते है और ठीक उसी समय मौत उकसाती है, पुचकारती है प्यार से, लालच देकर पुकारती है और यदि आप अकेले है, अपनों से दुखी है और कोई कंधा नही - जिस पर आप सिर टिकाकर अपनी बात कह सकें, अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकें या अपने बिखरे अस्तित्व और पहचान को खुद ही समेट ना सकें तो मौत के अलावा कोई विकल्प है क्या
किसी भयानक शोर में ऐसा कदम उठाया जाता है, भीड़ में ही अकेला हुआ जा सकता है और फिर से आस्था, विश्वास और हिम्मत बटोरकर खड़े होकर फंदे को चूमा जाता है
#सुशांत_सिंह_राजपूत - तुम मरें नहीं, अमर हुए हो, मुक्त हुए हो और अपना किरदार निभाकर यवनिका में चले गए हो - ख़ुश रहो, दोस्त जहाँ भी हो - अभिनय के मंच पर सदैव झाँकते रहना, अभी बहुत लोग पंक्तिबद्ध खड़े है , मैं मानकर चल रहा हूँ कि इतना ही रोल था तुम्हारा इस संसार में - बहुत जानदार अभिनय करके विदा हुए हो
मौत उत्सव है - देखो सब तुम्हारी बात कर रहें हैं, हर जगह उत्सव की बेला है और लोग उत्सुक है सब कुछ जानने को
***
"Days, Devil and Dehydration in Democracy - A book written by A Failed Prime Minister"
कोई छापेगा - ऑक्सफ़ोर्ड, हावर्ड, एस चाँदपाल, पेंग्विन जैसा भोत बड़ा परकासक - अपुन को हिंदी पट्टी का प्रकाशक नई मंगता है
[ कॉपी राइट मेरा हेगा - अमर्त्य सेन, अरुंधति बैन, ज्यां द्रे रिज़, अभिजीत बैनर्जी टाइप लोगों ध्यान रखना - इस विषय पर अपुन ईच लिखेगा, सिरसक चुराने की हिम्मत नई करने का - हवो कि नई ]
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सा विद्या या विमुक्तये
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यह सही है कि तमाम शोषण और नियमों को धता बताकर निजी स्कूल्स ने कुछ हद तक रोज़गार देने का काम किया है - मल्टीपरपज व्यक्ति रखें है जो पढ़ाने से लेकर संडास बाथरूम धोने, नगर निगम में पानी और हाउस टैक्स का बिल भरने से लेकर बिजली का बिल भरते है - मालिकों के कुत्ते घुमाते है और बच्चों को पढ़ाते भी है
स्कूलों ने अभी फरवरी से फीस ली है ऑन रिकॉर्ड - यह भी सच है कि 40 % के करीब फीस आई नही थी - अब गेहूँ , चना बिक रहा है तो फीस आने लगी है पर स्कूलों ने मास्टरों को फरवरी या मार्च के बाद तनख्वाह नही दी है यह भी सच है
अब सवाल है कि ये ऑन लाईन पढ़ाई की नौटँकी में सिर्फ मालिक सेठ लोग ही कमा रहे हैं - मास्टर घर बैठे हैं और उन्हें मालूम नही कि आगे क्या होगा
जाहिर है प्राथमिक से लेकर दसवीं तक सिर्फ नाटक चल रहे है स्कूल्स के, ट्यूशन के और कोचिंग के ऑन लाइन के नाम पर
मेरे शिक्षा में काम करने के 20 साला अनुभव पर कह सकता हूँ पिछला सत्र तो बर्बाद हुआ ही है, यह पूरा साल भी बर्बाद है - बच्चों को ना स्कूल भेजे जनवरी तक और ना ऑन लाईन की नौटँकी में शामिल करवाये और ना फीस भरें
बच्चों से स्वाध्याय करवाये और गिजु भाई बधेका, जॉन होल्ट, इवान इलीच और ओ'नील जैसे ख्यात शिक्षाविदो के "डीस्कूलिंग के सिद्धान्तो" के आधार पर बच्चों के साथ खुद मेहनत करें , मेरे बहुत सारे मित्र है - जिनके बच्चे कभी स्कूल नही गए पर वे जीवन मे बेहतर कर रहें हैं - उतने ही खर्च से उन्हें किताबें, शैक्षिक गतिविधि की सामग्री ला दें और उन्हें सशक्त बनाएं - 73 साल स्कूल चलाकर हमने समाज मे दंगों, लूटपाट, भेदभाव, जातिपाती के अलावा क्या दिया
एक साल करके देखिए - निकाल लीजिये स्कूल से और कोई पहाड़ नही टूटेगा , यदि ज्यादा ही दिक्कत होगी तो बहुत स्कूल्स है और फिर नाम मे क्या धरा है
याद रखिये घड़े में पानी उतना ही आएगा जितनी उसकी क्षमता है - चाहे समुंदर में रख दो भरने को या नल के नीचे
शिक्षा का मकसद जमीन तोड़ना और नया निर्माण करना है उपर से आये आदेशों का पालन करना या करवाना नही
बिस्मिल्लाह खान , अल्ला रख्खा साहब या ऐसे ही महान लोग डीपीएस, ज्ञानकुंज, लॉरेल, स्कॉलर, अरविंदो या कृष्ण मूर्ति, मिराम्बिका, सरदार पटेल, ऋषिवैली या किसी इंटरनेशनल स्कूलों में पढ़ते तो बाबू ही बनते
सोच लीजिये बच्चे का भविष्य तो बनेगा ही - वह घर सुरक्षित रहेगा, आपका आर्थिक बोझ कम होगा, और बहुत साधारण समझ के आदमी को भी शिक्षा अर्थात धँधा है यह मालूम है और सब करके भी बच्चों के अधिगम स्तर न्यून है - प्रथम से लेकर बाकी सब रिपोर्ट उठाकर देख लीजिए, उप्र में शिक्षक भर्ती के अनामिका शुक्ला का केस देखकर समझ जाईये कि हांडी का चावल कितना पककर सड़ गया है और बदबू मार रहा है
नोट - बकवास और अशैक्षिक लोगों के कमेंट सीधे डिलीट किये जायेंगे बगैर बहस के - जिनका ना स्कूल का अनुभव है ना पढ़ाने का और ना जिनके बच्चे इस समय स्कूल में है
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ये वो चुके हुए लोग है जो धन पिपासु हो गए है - हर गोष्ठी से विवि और मुहल्ले में मात्र 11/- लेने भी पूरी बेशर्मी से चले जातें हैं
खुद ही आगे रहने की हवस ने इन्हें यह दुर्गति दिखाई है
अपनी निकम्मी नालायक औलादों को साहित्य में स्थापित करना चाह रहे है जबकि औलादों का साहित्य तो क्या हिंदी से नाता नही है - जो अमेरिका पढ़कर आये 25 बरस वही रहें और नौकरी ना मिली तो बाप इन्हें ही हिंदी में स्थापित करने लग गए
स्मृति दंश से परेशान है इनके पास शेख चिल्ली नुमा कहानियों के अतिरिक्त कुछ नही अब
कई ऐसे है जो एनजीओ के चक्कर मे फंसकर फेलोशिप लेकर नई उम्र के लौंडो के निर्देशन पर लिख कर दे रहें है और रुपया पीट रहें हैं
कुल मिलाकर ये बुरी तरह से चूक गए है, इनकी कोई विचारधारा शेष नही बची है ये मोदी , प्रकाश करात से लेकर LGBTQ के साथ कम्फर्टेबल है
सब ऐसे नही है पर 98 % इसी तरह की गुटबाजी में है
तीखा लिखने की मुआफ़ी पर इससे बड़ी सच्चाई नही है, मैंने पकी उम्र के महिला पुरुषों को एकदम किशोर वय या युवाओं के साथ इसी माध्यम पर उलझते देखा है - जबरन
कुछ बूढों ने दूसरों बूढ़ों को अपनी चरण वंदना के लिए गुलाम बनाकर रखा है , बल्कि कुली भी और ये कुली इन्हीं खप चुके हुओं को ईश्वर, इष्ट और प्रातः स्मरणीय कहते है
कुछ धनपशु इन्हें चारा डालकर मछलियां फँसाते रहते है - ये धन पशु गाहे बगाहे हाट बाजार लगाकर इनकी कठपुतलियां बनाकर नचाते है
#कविता_नोट्स में मैंने दो साल पहले लिखा था कि एक समय के बाद इन्हें घर बैठना चाहिए पर ये ढीठ कहाँ मान रहें, उपर से फतवे जारी कर खुद को श्रेष्ठ साबित करने के मूर्खतापूर्ण फतवे जारी करते है
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सुबह से सात फ्रेंड रिक्वेस्ट आ चुकी थी - पाँच महिलाओं की थी, उन पांचों और कवि के बीच औसतन 200 के ऊपर कॉमन फ्रेंड्स थे हरेक में
हर बार कवि उन पांचो की प्रोफाइल खोलकर और चित्र देखने की कोशिश करता पर सब " साली लॉक थी " कुछ दिख नही रहा था - कुछ भी नही
आखिर तंग आकर उसने छन्द और अतुकांत पर लिखने का निर्णय लिया और एक बूढ़े रिटायर्ड वामपंथी कवि के चंगुल में फंस गया जो अभी अभी बड़ा सा फतवा देकर किसी सांस्कृतिक नगर के ठिये पर भिन्नाया हुआ बैठा था
इधर पाँचों लॉक में बंद युवा कवयित्रियों के चेहरे सपने में दिखते - उधर छन्द की बहस में उलझा उस बूढ़े के उलाहने सहता - आखिर उसने तय किया कि वो अब महिलाओं की प्रोफाइल को बगैर जाँचें स्वीकार कर लेगा - अवसाद में अपने आप से बोला " हर औरत सुंदर और हर कवयित्री भली ही होती है " - और मुस्कुरा दिया
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भारत को असली खतरा तो संविधान से है*
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मंचीय कवि भोत परेसान हेंगे , इस्मार्ट फोन, जूम, गूगल मीट भी नी आता चलाना और वीर रस की कविताएं किसको सुनाये, घर मे सुनाते है तो औलादें आँख दिखाती है और बीबी बेलन

आज फोन करके कोटा की मशहूर महान और दिलों की रानी, बरसों से मंच की मोमबत्ती रही "चंचला नखराली" को फोन करके बोले " अगर वेक्सीन नही बन रही है तो कोरोना दिखने वाला चश्मा ही बना दो मोदी जी - हम तो चप्पल से ही मार देंगे "
तालियाँ और वाह वाह सुना नही तो चार माह से कब्ज हो गई साली, उधर कवयित्री बोली घर मे रखें रखें लक्मे का मेकअप बॉक्स सूख गया, मोहल्ले में जाती हूँ तो लोग चेहरा देखकर डर जाते है ...
दुख सबको माँजता है
* शीर्षक की पंक्ति शायद जगदीश सोलंकी की प्रसिद्ध कविता की है
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करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
सोच रियाँ हूँ कि आत्म निर्भर बनने के लिए घर से सप्लाय शुरू कर दूँ - केक, पास्ता से लेकर #संदीप_की_रसोई के आयटम
शुद्ध देशी घी में शाकाहारी केक बनाये हैं - मोई जी, अमित भाई और निर्मला बैन के लिए - कम से कम 20 लाख करोड़ के पैकेज का 0.5 % ही इस गरीब को धँधा शुरू करने को दे दें
सच में किसी को जरूरत हो तो तीन घँटे पहले ऑर्डर दें , प्रति केक की कीमत ₹ 500 /- मात्र
गरीब को काम दें और मदद करें, आपका देश शीघ्र ही हिन्दू राष्ट्र बनेगा - यह वरदान है
[ नोट - ये सब आरक्षित है - बोलें तो बिक गए विधायकों की तरह ]
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हेलो, आज आपका फोन आ गया, मैं तो धन्य हो गया
जी, आप शर्मिंदा कर रहें हैं - असल में कल ही 5555 कविताओं का अनुष्ठान पूरा हुआ,सोचा आपको भेज दूँ, आप फेसबुक पर रोज़ दो दर्जन कविताएँ शेयर करते रहेंगे तो सारी पढ़ी जाएगी और जो कमेंट आएंगे उससे फीडबैक मिल जायेगा तो छपवाने में सुविधा रहेगी
जी , जी, अवश्य - एक बार पॉलिसी बाज़ार डॉट कॉम से बीमा करवा लूँ और इम्युनिटी की दवाएँ स्टॉक कर लूँ - फिर बताता हूँ आपको , धन्यवाद बहनजी कहकर कविराज ने फोन काट दिया
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मध्यप्रदेश में अभी कुछ शासकीय कर्मचारियों से बातचीत हुई जिसमें सभी प्रकार के और सभी वर्ग के कर्मचारी थे [ यहां वर्ग से आशय प्रथम द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों से है ] सभी की तनख्वाह में से एक निश्चित प्रतिशत काट कर के पीएम केयर फंड में रुपया जमा हुआ है
उदाहरण के लिए महाविद्यालय में पढ़ाने वाले प्राध्यापको से ₹ 25 से 40000/- काटा गया है - अब बताइए पूरे मध्यप्रदेश में कितने प्राध्यापक होंगे और इसका हिसाब किया जाए तो पीएम केयर फंड में कितना पैसा इस प्राध्यापकों ने दिया होगा - यहाँ तक कि छोटे कर्मचारियों का भी वेतन काटा गया है और इसकी किसी के पास व्यवस्थित जानकारी नही है
इस देश के जागरूक नागरिक होने के नाते हम यह मांग करते हैं कि पीएम केयर फंड का हिसाब सार्वजनिक किया जाए और पूरी पारदर्शिता के साथ देश को बताया जाए कितना पैसा खर्च हुआ , कितना पैसा आया और किस मद में खर्च हुआ
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एक वेबिनार सुन रहा हूँ, सब लोग stigma और भेदभाव पर बात कर रहे हैं, लेकिन कोई बता नहीं पा रहा है - ये सब हो कहाँ रहा है, Stigma का अर्थ नही मालूम किसी को, इसके व्यापक मायने और प्रभाव क्या है, किसी ज्ञानी ने अनुरोध किया था कि मेरे होने से उन्हें ताकत मिलेगी, अब हिंदी में कोई पूछ रहा तो उसे कुछ लोग अंग्रेजी में डांट रहें है - सब सूट पहनकर बैठे है और पता नही क्या बकलोली कर रहें है
पीछे से कभी मिक्सर की आवाज आती है, कभी कोई महिला चिल्लाती है - मोटर बंद कर दें रानी टँकी भर गई, कोई बच्चा रोता है उसे पास्ता चाहिए - गिलकी नही खायेगा, एक बुढ़िया कराहती है इन्सुलिन लिए आधा घण्टा हो गया - कोई खाना परोस दें अब तो, एक लड़की कपड़े सुखाते हुए नजर आ जाती है कभी अचानक बरामदे में
Stigma और भेदभाव पर वेबिनार ढाई घँटे से चले जा रहा है , मैं अब बाहर हो गया हूँ - मेरी ताकत खत्म हो गई है
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कोरोना से लड़ाई में क्या हुआ - समझिये -
● गरीब, निम्न आय वर्ग के लोग और मजदूर मरें
● प्रशासनिक अधिकारी मरें
● पुलिस के जवान और थानेदार स्तर तक के अधिकारी मरें
● सेना के जवान और अधिकारी मरें
● डॉक्टर्स, नर्स, पैरा मेडिकल स्टॉफ मरा जो अस्पताल और सड़क पर काम कर रहा है
● आम लोग मरें जो नौकरी या छोटा - मोटा धँधा कर रहें है
● काम वाले दिहाड़ी मजदूर मरें कामवाली बाइयाँ मरी
● पत्रकार ग्रसित हुए , एनजीओ के लोग संक्रमण में आये जो सड़कों पर काम कर रहें हैं
यानि वो लोग मर रहें हैं जो सड़क पर है, फील्ड में है, अस्पताल में है, व्यवस्था में हैं, पैदल चल रहें हैं
अब सवाल
● कोई विधायक, सांसद, मंत्री मरा - नही जी
● कोई बड़ा प्रशासनिक अधिकारी या संविधानिक पद पर बैठा व्यक्ति मरा - नही जी
● कोई न्यायाधीश या बड़ी फिल्मी हस्ती - नही जी
● कोई राजदूत या देश विदेश के बड़े उच्चाधिकारी - नही जी
● कोई सम्पादक - नही जी
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सीधी सी बात है भैया - कि जे सब लोग घर में हैं - आराम से और खूब टसुए बहा रहें है, और लिखकर, लड़कर, कॉपी पेस्ट कर, पढ़कर योजनाएं और नीतियां बना रहे हैं, आने वाले आगे के समय के समीकरण सुलझा रहें है, आपदा में अवसर भुनाने में लगें हैं और कोई नही मर रहा , ना संक्रमित हो रहा - अपवाद छोड़ दीजिए - गिनाइए मत
पर जो कोरोना की लड़ाई लड़ रहे हैं - वे ही सच्चे योद्धा है और ये ही तथाकथित लोग कोरोना के मरीज को इतना आतंकित कर दुष्प्रचारित कर दिए है कि मानो मरीज ने खुद कोरोना को पीले चावल देकर बुलाया हो
किसी के मरने की दुआ नही कर रहा, ना कोई मंशा है - पर थोड़ा समझना चाहिए हमें कि इस संजाल के जाल के मूल में कौन है और उनपर कितना असर है कोरोना का , ज्ञानीजन, सुधिजन तो वेबिनार में कमा ही रहें हैं और रोज - रोज कविता, कहानी से लेकर पर्यावरण, आर्थिक- सामाजिक और राजनैतिक विश्लेषण कर ही रहें हैं, वर्चुअल रैलियां हो ही रही है शानदार, पर वो जिसके लिए ये सारा प्रपंच है - वो तो सिर्फ चिता पर अकेला मौजूद है - जीवन की अंतिम घड़ी में उसके सगे - संबंधी छूकर उसे विदा भी नही दे सकते , मुंह मे गंगाजल देना तो दूर
जीवन में त्रासदी और किसे कहते है
एक राष्ट्र का नीचतम चरित्र और क्या हो सकता है कि सबको मरने के लिए छोड़ दिया है
अरे माई बाप, यही करना था तो काहे 70 दिन भूखा रखा, भरी धूप में पैदल चलवाया, पेट भर के ही मरने देते - तुम्हारा जनसँख्या कम करने का, शहरों की गंदगी अर्थात "मजदूरों" को हकालने का निहितार्थ यूँही पूरा हो जाता - बल्कि और जल्दी हो जाता, लोकतंत्र की जय जय करने वालों शर्म मगर तुमको आती नही
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अब जरूरत नही कि कम्युनिटी मेडिसिन की पढ़ाई -
● प्राथमिक कक्षाओं से आरम्भ हो, हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी में गम्भीर पाठ या पूरक किताबें हो, स्नातक स्तर पर अलग से समाहित किये जायें इसके विषय
● मेडिकल के छात्रों को गम्भीरता से पढ़ाया जाये, पोस्ट ग्रेज्युट कोर्स में इसकी सीट्स में बढ़ोतरी हो, मेडिकल कॉलेज में इन विभागों को मुख्य धारा में लाया जाये - अभी तो दलितों जैसी स्थिति है इन विभागों की
● हर अस्पताल में इसका एक पीजी रेजिडेंट डाक्टर नियुक्त हो जिले से ब्लॉक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक
● सभी विभागों में खासकरके जनता और सर्विस डिलेवरी वाले विभागों में इस पाठ्यक्रम में प्रशिक्षित डिप्लोमाधारी की नियुक्ति हो
● सार्वजनिक सेवाओं में एक डेस्क बनाया जाए
● मीडिया के पाठ्यक्रम में भी यह शामिल हो ताकि रिपोर्टिंग और तकनीकी पक्षों से मीडिया वाकिफ हो - यूँ तो मीडिया ब्रह्मा से ज्यादा विद्वान और सरस्वती से ज्ञानी है फिर भी
● यही समय है जब इनपर ठहरकर बात की जाए और निर्णय लेकर क्रियान्वित की जाये
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God at Work - Unlock 2
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जय कोरोना मैय्या , जाओ यहाँ से, पटना से टरो तो चमकी बुखार को अवसर मिलें
आज से 21 दिन उपवास रखूंगा और सारे कवियों के लिए मन्नत कर रहा हूँ
उद्यापन के समय 500 लीटर सोमरस का भोग लगाऊंगा और अपनी अपनी प्रियेस्ट के साथ 151 जोड़ो को मद्यपान सहभोज के लिए आमंत्रित करूँगा
और इस अवसर पर भव्य काव्य गोष्ठी होगी कविता, ग़ज़ल , नवगीत, नज्म , मंचीय, दहाड़ कविता, छंद, मुक्तक, हाईकू, गद्य कविता, यानि सबका पाठ होगा और सबको सुनना अनिवार्य होगा
जय कोरोना मैय्या - सबका भला कर, तोहार परम भक्त नीतीश कुमार को जीतवा दें तो, साल में एक माह की कोरोना अवकाश और तोहार पटेल से ऊंची प्रतिमा गांधी मैदान पटना, मिथिला, भोजपुरी, मगध,नालंदा, तक्षशिला इलाकों और पूरे बिहार में लगवा देंगे
[ नीतीश कुमार , कल अमित जी शाह भाई के वर्चुअल रैली के बाद प्रार्थना में तल्लीन होते हुए ]
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तीन दिन पहले से घोषणा करने और तीन दिन तक हर घँटे रिपीट पोस्टर चैंपने के बाद के आखिर आज जब कवि डियो छींटकर लाईव करने बैठा तो बाट जोहता रहा - बार बार पूछता रहा " सब लोग आ गए, सब लोग आ गए " 4, 5, 6 पर आंकड़ा पहुँचता और फिर शून्य हो जाता , अब कवि शुरू कैसे करें - रोज वह सबको यही बोलते सुन रहा था
आखिर पंद्रह मिनिट बाद अचानक पत्नी मोबाइल के कैमरे के सामने आ गई और बोली " किस कलमुंही का इंतज़ार कर रहें हो - जल्दी से खत्म करो और मोबाइल दो, युट्युब पर कुलचे बनाना सीखना है - हां नई तो सुबु से दस बार प्रैक्टिस कर वही कविताएँ सुना सुनाकर पका दिए है - और फिर हमारे भजन मंडल का तम्बोला है लाइव , अब छोड़ो मोबाइल "
जो दो चार आये थे गलती से लाईव देखने - चंडी भवानी का लाईव रूप देखकर RIP बोलकर खिसक लिए
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है नीतीश कुमार के बिहार की कोरोना मैय्या
दिल्ली में प्रवेश करो और सबको ज्ञान दें वहाँ मोदीजी, केजरीवाल, स्मृति देवी, माँ निर्मला से लेकर देश भर के सांसद, राष्ट्रपति, एम्स के डॉक्टर और सुप्रीम कोर्ट के सब पूजनीय तुम्हारी पूजा के लिए बेताब है
फिर गुजरात होते हुए मप्र आओ, हम सब तब तक गरबा बना लेंगे और बढ़िया सी डीजे पर थिरकने वाली धुनें भी
बिहार में भोजपुरी वाले यदि गाने बनाएंगे तो बहुत गरबर हो जाएगा जी और इधर आओगी तो प्रसाद में ड्राय फ्रूटस , कीवी टाईप फ़ल, मोटी दक्षिणा और ब्राह्मणों को बढ़िया सूट भी मिलेंगे
है मैय्या, मेरे को तो बस पास करवा दें, डेढ़ सेमिस्टर और बचा है लॉ का - फिर बढ़िया वाली कहानी की किताब छपवाएँगे झकास फोटू हेंगे मेरे पास , ढेरो कहानियाँ है कि कैसे रामप्रसाद और दुलारी को बच्चा नही हो रहा था और जब उन्होंने मुम्बई से सुपौल पैदल जाने की मन्नत मांगी तो दुलारी ने भरी सड़क पर 45 डिग्री की गर्मी में खूबसूरत लड़के को जन्म दिया और वे सुख रूप घर पहुँचे - पैदल पैदल , घर जाकर उन्हें 28 किलो पीडीएस का राशन मुफ्त में मिला और इस तरह से उन्होंने अब पूजा करवाई है
है मैय्या यहाँ आओ वाया दिल्ली - हम सब अधीर भाव से पलक पाँवड़े बिछाये इंतज़ार कर रहें है - अब रामायण महाभारत भी खत्म हो गये है - आओ माते - स्वागत है
नोट - उत्तर प्रदेश मत जाना अभी वहाँ देवाधिदेव विराजमान है अभी तो मामला जमेगा नही, प बंगाल भी वहाँ भी एक पहले से है 'फूल' फॉर्म में
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लॉक डाउन खुला तो कस्बे का कवि पाजामे का नाड़ा बांध कर एक बड़ा सा कटहल लेकर अपनी प्रियेस्ट कवयित्री के घर चला गया और बोला - "इधर से निकल रहा था तो सोचा आपको भेंट देता चलूँ - मिठाइयों की दुकानें बन्द है अभी "
" शुक्र है कुछ तो काम की चीज लाये आप, आपकी लम्बी घटिया कविताओं और वाट्सएप कचरे से तो यह भारी कटहल बेहतर है - और बाय द वे आपको 60 दिन मेरा चेहरा देखा नही तो चैन नही पड़ा क्या " - कवयित्री मुस्कुरा रही थी - "और सुनो, कल पाइनापल लेकर मत आ जाना - वरना यही दरवज्जे पर बैठकर छिलवा लूँगी - हाँ के दे रई हूँ ....."
कवि को लगा कि कटहल छीलकर कांटों वाला सारा कचरा उसके मुंह पर फेंक दिया हो मानो
***
 बहुत सुंदर गद्य लिखते हो तुम "
" भाषा ही नही आती, मेरे शिक्षक, मित्र और बल्कि छात्र भी यही कहते है कि हिंदी ही नही आती मुझे "
" नही, नही वो बात तो ठीक है बस यूँही कह दिया, बुरा मत मानना - जो कहते है ना कि हिंदी नही आती उन्हें भाषा का अर्थ ही नही मालूम " वो कह रही थी
" अर्थात, तो भाषा का अर्थ क्या है " वो पूछ रहा था
" भाषा मतलब वो लिख पाना जो दिल को छू जायें, सीधा समझ आये - हिंदी सही टाईप करना और हिज्जे सही लिखना भाषा नही - यह तो कोई भी प्रूफ रीडिंग वाला टाइपिस्ट कर लेगा या हिंदी का मास्टर जो सारी उम्र छोटे बच्चों की गलतियां सुधारते हुए अंत मे पगला जाता है पर कभी वो नही लिख पाता जो उसे ही छू जाये "
वो समझा कर चली गई - उसके हाथ में एक फूल देकर
***
रात भर से बारिश हो रही है, इधर पहली बार वर्षों में देखा कि जून के पहले हफ्ते में पानी आ गया, बचपन मे 7 जून का इंतज़ार रहता था पर धीरे धीरे जून अंत और फिर जुलाई की आदत पड़ गई थी
गर्मी की दो माह की छुट्टी से पेट ना भरता और सरकारी स्कूल की छत को निहारते कि कब टपके और माड़साब छुट्टी कर दें, आठवी तक आते - आते 5 भवन बदले मेरी स्कूल ने और हम हर बरसात में बिल्डिंग ढह जाने की कामना करते थे, नई जगह शिफ्ट होने में अगस्त निकल जाता - रज्जब अली मार्ग का स्कूल टूटा, फिर राजवाड़ा, आलोट पायेगा के कमरे गिरे, 'सब जेल' में फिर से कैदी आये तो हम बाहर हुए , सुतार बाखल में बांस गिरे, नई बिल्डिंग के पतरे उड़े - बरसात में नाली से उमड़े कीचड़ का सड़क पर लोटना और उस पानी मे छपाक छपाक जाना - आना कितना सुहाना था और फिर झड़ी लगने की छुट्टी अलग
विज्ञान भी कितना साहित्यिक है - "निसर्ग" , तूफान को इतना सुंदर नाम देने की हिम्मत कम से कम साहित्य तो नही कर सकता, नए शब्द भी गढ़ता है "अम्फन", "सुनामी" - तूफान हो या पुच्छल तारों के नाम या किसी विषाणु के नाम
तेज बारिश हो रही है - भविष्यवाणी थी कि मुंबई गुजरात से होते हुए अब यह निसर्ग मालवा से आज गुजरेगा, अभी आठ बजे नही है और रात भर से जाग कर निहार रहा हूँ, सब धुल गया है, साफ़ हो गया है, पत्ते हरे हो गए है, आज गमलों में पानी देने का काम बच गया है पर बाकी दूसरे काम बढ़ गए है
बारहों मास प्रिय है पर वर्षा ऋतु सबसे प्रिय है लगता है नेह की बूंदों को अँजुरी में भरकर किसी नदी में उंडेल दूं कि बह ना जाये व्यर्थ में - सोया नही रात भर , बहुत से फोन आये, सन्देश पड़े रहें जवाब के इंतज़ार में - पर मैं पहली बारिश में बूँदों से बात करता रहा कि कैसे बीतें आठ माह
बारिश आंसूओं को ओझल कर देती है
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अप्प भुक्तभोगी बनो
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केजरीवाल कह रहे है कि कोरोना के लक्षण सामान्य है घर पर ही ठीक हो जाओ
नीतीश कुमार जी को चुनाव दिख रहा है
योगी जी के यहाँ हर पांचवा प्रवासी कोरोना ग्रस्त है फिर भी घर रहिये
मप्र में शिवराज जी की गुड़ बुक के चमकते हीरो इंदौर कलेक्टर ने 19 फीवर क्लिनिक खोल दिये है - जाईये बुखार नपवा लीजिये और दवा लेकर आईये
अभी गूगल किया तो बेंगलोर, मैसूर और इंदौर में कोविड के इलाज के लिए यह टेक्निक अपनाई जा रही है - यह जानकारी मिली
क्या कोई कम्युनिटी मेडिसिन का डाक्टर, प्राध्यापक या ज्ञानी बता सकता है कि ये फीवर क्लिनिक का क्या अर्थ है - घर ही नाप लें बुखार - अब अरबों स्वाहा करके घर, गांव या मुहल्ले में चार पांच तो साक्षर मिल ही जायेंगे सही सलामत आंखों के साथ जो उपर नीचे होते पारे की रीडिंग पढ़ लें, क्या यह शासकीय आदेश है या स्थानीय लॉलीपॉप, इसका बजट और व्यवस्था क्या है और दैनंदिन जाँचें और नियमित ओपीडी और अस्पताल का क्या
उधर श्रद्धेय ने कह ही दिया है कि कोरोना के संग जीना सीख लें
बहरहाल, अब दस्त क्लिनिक, उल्टी क्लिनिक, सर्दी क्लिनिक, खांसी क्लिनिक से लेकर बाकी सारे क्लिनिक खुलेंगे या मोहल्ला क्लिनिक जैसा कुछ एडहॉक व्यवस्था खोलकर झुनझुना दे रहें है जनता को और परम ज्ञानी केजरीवाल को यह श्रेय ना देकर हमारे प्रदेश के नौकर शाह सच में "गुड़ बुक" में डटे रहना चाहते है
कोरोना क्या - क्या ना करेगा, यह देखने के लिए अभी ज़िंदा हूँ

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