बंकर में बकलोली ◆◆◆ किसी ने पूछा कि इस विचित्र समय में साहित्य समय का दर्पण है जैसी बात सीखाने वाले हिंदी के लेखक चुप क्यों है सीधा जवाब है - नौकरी, परिवार, पद, प्रतिष्ठा, पुरस्कार और प्रमोशन की होड़ में तलवे चाटना मजबूरी नही - मजबूती है और ये सब इसे अच्छे से जानते बुझते हुए निभा रहे है बाकी भाषाओं में तो संघर्ष ,गहरा प्रतिरोध है पर हिंदी का लेखक,कवि, कहानीकार , आलोचक और उपन्यासकार सबसे ज्यादा मक्कार और स्वार्थी है सिवाय अपने बंकरों में बकलोली के अलावा कुछ नही कर सकता, कबीर यात्रा के समापन पर दिल्ली विवि के एक प्रोफेसर सरोज गिरी ने पूरी जनता के समक्ष और देवी अहिल्या विवि की कुलपति रेणु जैन के सामने कंफेस किया कि हम नही बोल सकते, ना युवाओं से बात कर सकतें और ना लिख सकते हैं - हम डरते है क्योंकि नौकरी गई या कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा दिक्कत यह है कि हमने कॉलेज, विवि या स्कूल मास्टरों को, हिंदी विभागों के लोगों को साहित्यकार मान लिया है जो नौकरी में बने रहने और प्रमोशन के लिए लिखते, पढ़ते और शोध करते है, हवाई यात्राएँ करते है, इन्हें ही माइल स्टोन मान लिया है, कुछ घटिया स...
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