हम सब अपने बनाये हुए जाल में किसी चूहे की भांति फँस जाते है, एक ऐसे जाल में जो किसी भी प्रकार का खतरा दिखने पर अपनी मरम्मत करता है और अंत में जाल के उस छेद को भी बुर देते है जो हमें भागने में मदद कर सकता था और बेहतर जीवन जीने को सक्षम बना सकता था साल 2020 एक ऐसा ही छेद था पर हम फिर फँस गए है और हमारे अस्तित्व पर संकट गहरा गया है, आईये हम कुछ करें ताकि इस जाल को काटा जा सकें हिम्मत नही कि कह सकूँ साल 2021 की मंगल कामनाएँ , फिर भी दोस्तियां, यारियां, दुश्वारियाँ, दुश्मनियाँ बनी रहें - संवाद बना रहे स्नेह, दुलार, सम्मान और दुआएँ [ तटस्थ ] [*बुर का यहां अर्थ है 'भरना' - जैसे गढ्ढे को बुरना - मालवा में इस्तेमाल होता है बहुतायत में ] *** "कितनी कविताएँ छपी पिछले बरस"- मैंने पूछ लिया लाईवा से " सत्रह हजार थी कुल - जिसमे से मैंने पत्नी को ग्यारह हजार लाइव के माध्यम से सुनाई, बाकि किसी ने घास नहीं डाली, दो हजार नौ सौ बारह संपादकों को भेजी थी - बस तीन छपी , पांच हजार के वीडियो बनाकर यूट्यूब पर डाले - नौ लोगों ने देखें और दो लाईक भी आये...." " चुप कर बै , मैंने ...
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