सही है साईबाबा भगवान् नहीं है और आप भी तो नहीं है शंकराचार्य
असली दिक्कत आपको यह है कि वहाँ शिरडी में अभी किसी ने 350 किलो सोने का रथ चढ़ाया और हर साल वहाँ की आय 5000 करोड़ के ऊपर जाती है।
आप लोगों ने घटिया राजनीती करके और अपने मठों में काले कारनामे करके जो रूपया उड़ाया है उससे तो अब श्रद्धा ही ख़त्म हो गयी अपनी दुकानदारी बंद होते देख कैसे आप बिलबिला गए है। आपमे तो रामदेव वाला "हूनर" भी नहीं है कि धर्म की आड़ में दवा बेच दें या काले पीले धन की दलाली करें
सही साईबाबा भगवान् नहीं है पर आप एक बार उनके जैसा फकीरी जीवन जीकर तो दिखाओ कसम से हम सारे देश के लोग आपका भी मंदिर बना देंगे
और आप ही क्यों ये जलन तो दूसरे मुल्ला और तमाम पिताओं और माताओं (Fathers/ Mothers/Brothers of Churches) को भी होती है जो मस्जिदों, चर्च में बैठकर अपने अपने राम गुनते रहते है।
सही है अब आप लोग चूक गए हो गुरु तो बुढापे में धन और सोने की चिंता सता रही है। धन्य हो हिन्दू धर्म के सबसे बड़े गुरुवर !!!
आईये थोड़ा और गहराई में जाए, जैसे सत्य साईं बाबा से लेकर इंदौर के नाना महाराज तरानेकर, गोंदवलेकर महाराज तक इंसान थे और अब देवता बन गए है, क्योकि उनके पुन्य कर्म ऐसे थे कि वे आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय रहे, महाराष्ट्र से लेकर अन्य राज्यों में सूफी परम्परा और भक्तिकालीन कवियों को यथा तुकाराम, ज्ञानदेव. रुकमाबाई, तिरुवल्लूर, आदि संतों को लोगों ने संत का दर्जा दिया, मदर टेरेसा को तो बाकायदा पॉप जान पाल ने संत घोषित किया जो हमने सामने देखा है . इनके सार्थक काम ही थे जो आम और दबे-कुचले लोगों को इन महान लोगों ने समाज में इज्जत दी और इन्हें कुछ करने के लिए मानवीय गरिमा देकर प्रेरित किया. आने वाले समय में श्री श्री रविशंकर से लेकर हमारे मालवे के पंडित कमल किशोर नागर जी भी भगवान् होने वाले है क्योकि मंदिर तैयार है और बाकी सब व्यवास्था भी है तो आप क्या कहेंगे शंकराचार्य ?
एक बार पुरी ईमानदारी से आप चारों शंकराचार्य मिलकर बैठे और और विचारे कि आपके मठों में क्या हुआ, आपने क्या जन कल्याण किया, कितने स्कूल खोले या कितने आदिवासी बच्चों का सेबड़ा पोछा या किसी गरीब को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाई फिर आप हमें सिखाएं कि कौन भगवान है और कौन नहीं. पर सबसे बड़ा सवाल है कि आप सब शंकराचार्य एक साथ बैठ पायेंगे............और अभी सिंहस्थ आ रहा है देखते है कि आप लोग कितना जन कल्याण करते है या सिर्फ अपने अखाड़ों में दंड पलते रहेंगे और प्रशासन के लिए रोज़ नया सर दर्द पैदा करेंगे ?
यही हालत चर्च की भी है और यही मस्जिदों की भी, ये सब धर्म गुरु कभी एक नहीं होते और हमेशा रूपये के मक्कड़ जाल में फंसे रहते है और नित नए फतवे जारी किया करते है जिससे आम लोगों को सिवाय तकलीफ के कुछ नहीं होता, क्योकि आम आदमी ना हिन्दू है ना मुस्लिम या कैथोलिक वो तो जैसे तैसे इस महंगाई के जमाने में अपने जीवन की गाडी हाँक रहा है बस !!! हाल ही में स्वर्ण मंदिर में अकालियों के दो गुटों में दिन दहाड़े शस्त्रों से होती लड़ाई का आँखों देखा हाल टीवी पर देखा ही था, जैनियों में श्वेताम्बर और दिगम्बरों की खूनी होली मैंने मक्सी में देखी है, कहाँ तक बात करूँ बस आप अपने दिन निकालिए और प्रभु से प्रार्थना करिए कि आपको शांति मिले और सबका कल्याण हो.
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