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Showing posts from August, 2009

डॉक्टर संजय भालेराव और चेन्नई का सफर

चेन्नई यानि की मद्रास से मेरा बहुत पुराना रिश्ता है मुझे याद पड़ता है १९८२ में पहली बार अपना राष्ट्रपति पुरस्कार लेने गया था बड़ा सा मैदान था किसी क्रिश्चियन संस्था में कार्यक्रम था । जाने के पहले हम लोगो ने सोचा यहाँ तक आए है तो तिरुपति बालाजी भी हो चले। सो वहा भी चले गए थे तब तमिलनाडु में ऍम जी रामचंद्रन का शासन था और अमूमन पुरे तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध अपने शबाब पर था । हम लोग तिरुपति में सबको देखकर कबीट कबीट चिढा रहे थे क्योकि दक्षिण में तिरुपति में बाल देने का रिवाज है और हमारे लिए यह आश्चर्य जनक था क्योकि महिलाओं को बाल देते कभी देखा नही था। खूब मार खाई थी फ़िर हमारे स्काउट मास्टर ओंम प्रकाश जोशी ने पुलिस थाने में जाकर बताया की ये बच्चे राष्ट्रपति पुरस्कार लेने आए है तब कही जाकर तमिलनाडु पुलिस ने हमें एक विशेष वन में बिठाकर नीचे ले जाकर छोड़ा। आठ दिन में उस लंबे मैदान में समय कब निकल गया पता ही नही चला हां आज पहली बार कह रहा हूँ कि मेघालय कि एक लड़की मेरी जोसफ से पहली बार मिला था और शायद जिसे पहली नज़र का प्यार कहते है हुआ था । जाते समय बहुत रूअंसासा हो गया था और ...

एक संभावनाशील प्रशासनिक अधिकारी की असमय मौत यानि कि एक सपने का खत्म हो जाना

आज ही दिल्ली से लौटा हू दिल्ली के तीन दिन बेहद थकाऊ थे, ना मात्र काम के हिसाब से, बल्कि सूअर बुखार और चिपचिपी गर्मी के कारण , ये तीन दिन मेरे लिए बहुत ही उबाऊ थे । एक साक्षात्कार के सन्दर्भ में राजीव गाँधी फाउंडेशन दिल्ली में गया था । पद चूकि बहुत आकर्षक था इसलिए चला गया था । वह पहाड़गंज के एक होटल में रुका था हालांकि एसी लगा था फ़िर भी गर्मी इतनी खतरनाक थी कि बताया नही जा सकता मेरे चेहरे पर निशान पड़ गए। साक्षात्कार में दो दिन की प्रक्रिया थी चयन होने की पुरी उम्मीद है पर मामला रुपयों पर आकर रुकेगा वैसे भी दिल्ली के हालात देखकर मुझमे हिम्मत नही है की मै वहा जाऊ और काम करू । पता नही क्या होगा , हां यदि आठ लाख का पैकेज मिला तो हिम्मत जुटाई जा सकती है क्योकि मेरा मानना है कि पैसा छठी इन्द्री है जो पाँच इन्द्रियों को नियंत्रित करता है , खैर जो होगा देखेंगे..... इस बीच मोहित का फ़ोन आना दिल्ली में सबसे सुखद था , "बिल्कुल रेगिस्तान में पानी मिलने के जैसा" । उस दिन १० तारीख को जब मै लौटने ही वाला था कि उसका फ़ोन आ गया। मैंने कुछ पूछा नही सिर्फ़ पूछा कि कैसे हो बेटू । फ़िर वो बोला...

प्रमोद उपाध्याय का गुजर जाना यानि कि हिन्दी के नवगीत में एक और शून्य का उपजना

आजकल बहादुर के फ़ोन आते ही डर लगने लगता है कि पता नही किसके मौत का पैगाम दे रहा हो । ऐसा ही कुछ आज हुआ दोपहर में बैठा कुछ काम कर रहा था कि उसका फ़ोन आया दिल धक्क से रह गया कि हो न हो मेरे अपने शहर में कुछ गंभीर हो गया है । जैसे ही फ़ोन उठाया वह बोला भाईसाहब एक बुरी ख़बर है मैंने कहा कि साला अब क्या हो गया , तो बोला कि प्रमोद का कल रात बारह बजे इंदौर में देहांत हो गया में चौक गया कि ये सब क्या हो गया, कहा तो वो भोपाल आने वाला था मुझसे हमेशा कहता था कि संदीप तेरे पास आकर रहूँगा और में हंसकर टाल देता था। देवास हमारा अपना कस्बा था जहा मै पढ़ा लिखा और सारे संस्कार लिए। लिखना पढ़ना मेरे अन्दर डालने वालो मे राहुल बारपुते, कुमार गन्धर्व, विष्णु चिंचालकर "गुरूजी", बाबा डिके, कालांतर मे जीवन सिंह ठाकुर डॉक्टर प्रकाश कान्त , प्रभु जोशी और मेरे अज़ीज़ दोस्त बहादुर पटेल और मनीष वैद्य का नाम लिए बगैर सब व्यर्थ हो जाएगा। बाद मे पता चला कि नईम और भी दीगर लेखक थे जो राष्ट्रीय स्तर पर नाम और काम के कारण जाने जाते थे। प्रमोद उपाध्याय उसी गाँव के थे, जहा मेरी माँ ने सन सत्तर के दशक मे ब...

एक मज़ेदार साक्षात्कार अविनाश के मोहल्ला के सौजन्य से

-आपके यहां टीवी पर एक एड चल रहा है जर्नलिस्ट बनने के लिए। कैसे आवेदन करना होगा? -आप कहां से बोल रहे हैं? -लखनऊ से। -आपका नाम क्या है? -मेरा नाम दीपक है। -आप अपना नंबर जरा बताएंगे? -मेरा नंबर है- ......... -आप लखनऊ से ही बोल रहे हो? -हां, आजकल लखनऊ आया हुआ हूं। -आप कहीं काम कर रहे हो इस समय? -हां, मैंने काम किया हुआ है। -कहां? -कई जगह, एमएच1 न्यूज में काम कर चुका हूं, एस-1 चैनल में भी रहा हूं। -अच्छा, तो आप ऐसा कीजिए कि अपना सीवी channelconnectnetwork@gmail. com This e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it पर भेज दें। -इसमें और क्या औपचारिकताएं होंगी? -अभी हम लोग कोर्स कराकर ट्रेनीज रिपोर्टर के रूप में अप्वाइंट कर रहे हैं। कोर्स का कुछ फी है। आप ट्रेनीज रिपोर्टर को स्ट्रिंगर कह सकते हैं। -लेकिन हम तो सीनियर पोस्ट पर काम किए हैं। -हां, वो तो ठीक है। मैंने इसीलिए आपको अपना सीवी भेजने को कहा है। जैसे ही कुछ होता है, आपको काल चला जाएगा। -आपके यहां शायद ब्यूरो चीफ या स्टेट हेड बनने के लिए जगह खाली चल रही है? -नहीं-नहीं, उसके लिए हमारा दूसर...

दो सुहाने दिन बर्बाद हो गए...... ज़िन्दगी के

आज दोस्तों का दिन है और मैंने योजना बने थी पिछले रविवार को कि आज वन विहार जायेंगे क्योकि में जनता था कि आज दोस्ती का दिन है और वह खूबसूरती से मनाएंगे पर कहा हो पता है सब सोचा हुआ ? कल रात को भी साडी योजना बन गई थी कि आज सुबह उठकर बढ़िया नाश्ता करेंगे और फ़िर वन विहार जायेंगे और फ़िर पुरा दिन ऐश ही होंगी वावेस और विंड पर दारू बियर बस ऐश ही ऐश .......... सुबह ऐसी अपशगुनी होगी मुझे पता नही था पुरा दिन बर्बाद हो गया बल्कि पुरे दो दिन बर्बाद हो गए में यहाँ रुका था कि चलो इसके साथ एक अच्छा दिन बीतेगा पर हम शायद ज्यादा उम्मीद करते है ......... एक कहावत यद् आ गई कि " करेले को घी में घोलो या शक्कर में वो कड़वा ही रहता है " पुरा दिन सोता रहा फ़िर पढ़ाई का नाटक करता रहा फ़िर टेस्ट का बहाना करता रहा जब मेरे दो फ़ोन आए तो कहने लगा कि मुझे परेशानी हो रही है पर थोडी देर बाद कोई महिला मित्र का फ़ोन आया तो उठकर देर तक बातें करने लगा फ़िर जब मैंने कहा कि बहार चलना है तो बोला कि मुझे पढ़ना है आख़िर में ही बाहर चला गया........ बाहर बढ़िया माहौल था मैंने एक बर्गर खाया और दारू का सामान ले कर आ गया......

My Mother was the Best in the World

Last Sunday 26 July 09, Mom has completed one year of her death.............. Do I really feel about her as she is not with us/me?No way I always feel her beautiful and omnipresence every where in my heart in my life and in my all belongings.......... She was a Pride Mom for me as every one knows that the Lord Almighty could not be every where, hence, he made Mothers on the earth. My Mom was not only a mom but she was a live story of struggles and Success. She was the II number girl child of her parents, 7 brothers and sisters. She passed her Metric Exam and got into the job as the family conditions were not very sound and in the mean time she lost her father too. Mr Narayan dharmadhikari was a typical brahminical character and was working in lower court of Mandleshwar, situated on the banks of river narmada. Mom brought out the family and worked hard she used to walk 40 to 50 KM per day in different villages so as to serve for her job. there were no mass transport available and hence ...

माँ का होना , न होना और ज़िन्दगी का ख़तम हो जाना

माँ का नही होना जैसे खलता ही नही है अभी पिछले हफ्ते ही एक साल पुरा हो गे उसे गए हुए , में ही तो गया था हरिद्वार में उसकी अस्थिया लेकर गंगाजी में , पर क्या सचमुच माँ चली गई है मैंने तो एक अस्थि अपने पास रख ली थी ताकि वो सारे योग क्षेम अपने ऊपर लेती रहे जसी पिच्च्ले बरस तक लेती रही थी अस्पताल की उस कोठारी में भी जिसे वार्ड कहते है । माँ के बारे में लिखना बहुत ही कष्टप्रद है मेरे लिए बस एक ही अफ़सोस होता है की मेरे जैसे कमीने के सपनो में एक भी बार नही आई तुम माँ ............ क्यो? में जानता हू कि तुम मरने के पहले मेरे बारे में क्या सोच रही थी क्या क्या हुआ था उन पन्द्रह दिनों में और उस सुयश अस्पताल ने सिर्फ़ अपयश ही दिया मुझे ज़िन्दगी भर के लिए में अभी भी रातो में चौककर बैठ जाता हू कि मैंने तुम्हारा खून कर दिया न में डाक्टर को इजाज़त देता ऑपरेशन कि न तुम्हे उस मेडिकल तंत्र का शिकार होना पड़ता । पुरी लम्बी रातो में कितना बोलती थी तुम माँ अपने बारे में पापा के बारे में रिश्तेदारों के बारे में , अपनी बहनों के बारे में किस किस को यद् नही किया तुमने और किस किस से नाते नही निभाए तुमने पर क्या...

दोस्ती का दिन .......... किन दोस्तों के नाम????

दुनिया भर में आज का दिन दोस्ती का दिन कहलाता है । कहते है की अमेरिका में किसी व्यक्ति को शनिवार के दिन फाँसी दे दी गई थी उसके दोस्त ने रविवार के दिन अपने दोस्त की याद में आत्महत्या करली तब से अमेरिकन सरकार ने अगस्त माह के पहले रविवार को दोस्ती के नाम घोषित कर दिया है और दुनिया भर में ये दिन दोस्तों के नाम कर दिया गया है। मुझे लगता है की सिवाय मुर्ख बनने और बनाने के इस बाज़ार ने हमें कुछ दिया नही है, पिता दिन, माँ का दिन , शिक्षक दिवस प्रेम का दिन और दोस्तों का दिन......... बहरहाल दिन है तो संदेश भी आएंगे और जवाब भी देना होंगे वरना कंजूस की उपाधि से विभूषित कर दिए जायेंगे । अपने दोस्तों के बारे में सोचता हू तो इतना याद आता है की एक लिस्ट बने जायेगी तो शायद वेब पेज पर जगह कम पड़ जायेगी और फ़िर भी लिस्ट अधूरी रह जायेगी । स्कूल के दोस्त , कॉलेज के दोस्त , नौकरी धंधो के दोस्त, अपने सुख दुःख दर्द के दोस्त, और वो लोग जो इस राह में मिले और न जाने कहा बिछड़ गए आज याद आ रहे है। एक बार में इंदौर के एक मनोचिकित्सक के पास गया था की मुझे सब भूलना है ताकि एक नए सिरे से अपनी ज़िन्दगी की शुरुआत कर सकू ...

प्यासी बंजर धरती -किसका पेट भरे , भूखे प्यासे बच्चे खेती कौन करे, इनको जीना कौन सिखाये????

हाल ही में हरदा के अंदर के गाँव में गया था वहाँ एक गाँव बदझिरी देखा वह के बच्चो की हालत बहुत ही ख़राब थी , शर्म तो आती है बहुत अपने आप से पर क्या करू ऐसे देश में जहा बच्चो को सरकारी आंगनवाडी के सड़े गले कीडो मकोडों वाले भोजन पर निर्भर रहना पड़ता हो वह किसका देश और कैसा देश किसके नौनिहाल और कैसा भविष्य ..... स्वदेश फ़िल्म का गीत गूंज रहा था कानो में " ये जो देश है मेरा स्वदेश है मेरा........." हालत सुधरने के बजय बिगड़ते जा रहे है दिनों दिन ................